भारत की ग्रामीण महिलाओं को देश की असली वर्किंग वुमन कहा जाता है.आखिर इसमें सच्चाई भी है क्योंकि देश में एक ग्रामीण पुरूष की तुलना में एक ग्रामीण महिला लगभग दोगुना खेती का काम करती है. इसके अलावा भी उन्हें घरेलू काम करना पड़ता हैं. इसके बावजूद उन महिलाओं को कभी खेती करने का श्रेय नहीं दिया जाता है और वे हमेशा हाशिए पर रही हैं. खेती का बहुत काम करने के बाद भी उन्हें कभी किसान नहीं माना गया . लेकिन कुछ महिलाओं ने इस भ्रांति को तोड़कर खुद को बतौर सफल किसान साबित किया है, इसमे राजस्थान की संतोष देवी हैं जिनके पति के पैसे से कभी घर- परिवार चलाना मुश्किल था लेकिन आज तीस लाख रुपये की सालना कमाई कर रही हैं..
जिले के सीकर में झुंझुनूं-सीकर राजमार्ग से गांव में प्रवेश करते हैं तभी रास्ते में गांव बेरी नजर आता है. विपरीत भौगोलिक परिस्थितियों और सिंचाई के लिए सीमित पानी के बावजूद आपको अनार, मौसमी, नींबू और सेब के फलों से भरे बाग दिखाई देंगे.इस बाग की मालकिन संतोष देवी हैं. उनकी सफलता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वे साल भर में महज पांच बीघे जमीन से अनार, मौसमी नींबू और सेब की बागवानी और पौध नर्सरी से करीब 30 लाख रुपये कमा लेती हैं., उन्हें यह सफलता आसानी से नहीं मिली है. इसके लिए उन्होंने दिन-रात मेहनत की और आज वह इस मुकाम पर पहुंची हैं. इस महिला किसान की यह सफल बागवानी कड़ी मेहनत, समर्पण और जुनून का सबूत है.
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संतोष देवी बचपन से ही खेती से जुड़ी रही हैं, लेकिन साल 2008 में उन्होंने उन्नत खेती की ओर कदम बढ़ाया. संतोष देवी के पति सीकर जिले में होमगार्ड का काम करते थे. इससे उन्हें महीने में महज तीन हजार रुपए ही मिल पाते थे, जिससे परिवार का गुजारा मुश्किल से हो पाता था. इसलिए उन्होंने अपने पैरों पर खड़े होने की ठानी. इसके बाद एक कृषि अधिकारी की सलाह पर उन्होंने अपने नजदीकी गांव करौली में अनार का बाग देखा और फिर खुद अपने खेतों मे अनार बाग लगाने की शुरूआत कर दी. आज उन्होंने अपने 5 बीघे के खेत में सेब, अनार व मौसमी व नींबू के बाग लगा रखे हैं, बागवानी के साथ साल भर में 80 हजार नर्सरी पौध भी बेचती हैं, जिससे उन्हें एक साल में 20 लाख की कमाई हो जाती है और फलों से 10 लाख रुपए की कमाई होती है.
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सन्तोष देवी के पास कम जमीन है,ऐसे में उन्होंने सघन बागवानी की तकनीक अपनाई है. सघन बागवानी के तहत उन्होंने अपने 5 बीघा खेत में हरिमन 99 समर एप्पल के 200 पौधे लगाए हैं , अनार की सिंदूर किस्म के 350 पौधे,..मौसमी के 150 पौधे और अमरूद-नींबू भी लगा रखे हैं .वह बताती हैं कि सघन बागवानी में पौधों की देखरेख का खासा ख्याल रखा जाता है . पौधों को पानी ड्रिप इरिगेशन तकनीक से दिया जाात है .इसके लिए पौधो के चारों तरफ तीन फीट का घेरा बनाया जाता है. पौधों के सही विकास के लिए कच्ची फुटान पर ही कटिंग कर दी जाती है . जिससे फलों के आकार में जबरदस्त वृद्धि होती है. गर्मी में सेब के एक पौधे से 40 से 50 किलों, एक अनार के पौधे से करीब 40-50 किलो फल मिल जाते हैं, वहीं मौसंबी के पौधों से 30-40 किलो फल प्रति पौधा मिल जाता है.
संतोष देवी बताती हैं कि वो खुद ही घर की चीजों को इस्तेमाल कर जैविक खाद तैयार करती हैं और इन जैविक खादों के प्रयोग से पौधों को सभी पोषक तत्व मिल जाते हैं जिससे पौधों को बेहतर बढ़वार में मदद मिलती है. वो कहती हैं कि अगर खेत में रासायनिक दवाओं का इस्तेमाल किया गया तो फ़सल और हमारी सेहत दोनों पर ही बुरा असर पड़ेगा . इसीलिए कीटों से बचाव के लिए वो जैविक कीटनाशक का ही इस्तेमाल करती हैं, जिसको बनाने के लिए गौमूत्र, नीम के पत्ते, निंबोली, बेल पत्र, धतूरा और लहसुन-हल्दी का इस्तेमाल करती हैं .
किसान संतोष देवी ने प्रकृति प्रेम की एक अनूठी मिसाल पेश की हैं. संतोष देवी ने 2017 में अपनी बेटी की शादी में आने वाले प्रत्येक बाराती को दो-दो पौधे दिए, वही दहेज में 551 पौधे दिए. संतोष देवी ने कहा कि दहेज देने से तो कोई फायदा नहीं होगा. मगर दहेज में पौधे देंगे तो पर्यावरण भी ठीक रहेगा और राज्य की धरती भी हरी-भरी रहेगी. वे कहती हैं पेड़ हैं तो कल है.संतोष देवी नए जमाने की किसान हैं. खेती में पारम्परिक तरीकों के साथ-साथ हाईटेक तरीके भी अपना रही हैं. उन्हें केन्द्र और राज्य सरकार से कई सम्मान और पुरस्कार भी मिल चुके हैं.वह बताती हैं कि अपने लड़के और लड़कियों को कृषि के कार्यो के बारे में ट्रेंड करती हैं औऱ बाग में हर काम में शामिल करती हैं, जिससे कि वह खेती से जुड़े रहें..
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