आज भी ज्यादातर लोग खेती को मुनाफे वाला नहीं काम मानते हैं. लेकिन उत्तर प्रदेश के बाराबंकी के एक किसान ने इस सोच पर झुठलाया है. जिले के पलहरी गांव के रहने वाले किसान आनंद मौर्य प्राकृतिक खेती से मुनाफा कमा रहे हैं. आनंद सहफसली खेती करते हैं और इससे उनको सालाना लाखों रुपए की कमाई होती है. पहले आनंद मौर्य वकालत करते थे, लेकिन साल 2021 में उनके पिता का निधन हो गया. इसके बाद उनकी जिंदगी बदल गई. वो खेती से पूरी तरह से जुड़ गए और आज लाखों की कमाई कर रहे हैं.
खेती से होती है लाखों की कमाई-
आनंद मौर्य एक हेक्टेयर जमीन में 4 तरह की फसलें उगा रहे हैं. इसे सहफसली खेती कहते हैं. 4 साल पहले आनंद मौर्य ने खेती की शुरुआत की थी. इस साल वो अभी धनिया, पात गोभी, लहसुन और मिर्च की सहफसल खेती कर रहे हैं.
इस सीजन में आनंद ने अब तक 60 हजार का धनिया बेच चुके हैं. इसके बाद पात गोभी भी अच्छी रेट में बिकेगी. इसके बाद मिर्च भी तैयार हो रही है. मिर्च की खेती से लगातार 4 से 5 महीने तक फायदा मिलता है.
आनंद मौर्य एक हेक्टेयर में सहफसली खेती से सालाना 10 लाख रुपए तक की बचत करते हैं. वो अब पूरी तरह से खेती ही करते हैं और इसे फायदे का बिजनेस मानते हैं.
15 हजार की नौकरी करते थे आनंद-
आनंद मौर्य ने एलएलबी की डिग्री हासिल की है. वो इस वकालत की प्रैक्टिस भी करते थे. इसके साथ ही वो 15 हजार रुपए की प्राइवेट नौकरी भी करते थे. लेकिन इससे घर चलाना मुश्किल था. इसमें उनका मन भी नहीं लगता था. इस बीच साल 2021 में उनके पिता का निधन हो गया. इसके बाद आनंद ने पूरी तरह से खेती का रूख किया. इससे पहले वो खेती में पिता की मदद करते थे. लेकिन कभी खेती से जुड़ने का नहीं सोचा था.
प्राकृतिक खेती की ली थी ट्रेनिंग-
इसके बाद आनंद ने खेती का नया तरीका सीखने की पूरी कोशिश की. उन्होंने चेन्नई और कई दूसरी जगहों पर ट्रेनिंग ली. आनंद ने प्राकृतिक खेती की ट्रेनिंग ली. इसके बाद आनंद ने सहफसली खेती के बारे में किसानों को बताने भी लगे. अब इस खेती से आनंद मौर्य को बहुत फायदा हो रहा है. वो इस खेती से सालाना 10 लाख की बचत कर रहे हैं. उनका कहना है कि पात गोभी और मिर्च से ही 4 महीने में ढाई से पौने तीन लाख तक की कमाई हो जाएगी.
आनंद जैविक एक हेक्टेयर में 4 सहफसली खेती करते हैं. खेती के लिए वर्मी कंपोस्ट का इस्तेमाल करते हैं. वो घन जीवामृत के जरिए फसलों को अच्छी तरह से पोषक प्रदान करते हैं. जिसकी वजह से उनकी लागत भी कम होती है.
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