
Success Story: यूपी के कुशीनगर में आत्मनिर्भर होती ग्रामीण महिलाओं की सफल कहानी आज हम आपको बताने जा रहे है, जो घर बैठे कमाई कर रही हैं. दरअसल, कुशीनगर में महिलाएं केले के पेड़ के रेशे (Banana Fiber) से सेनेटरी पैड, आभूषण बना रहीं हैं. इस रेशे से महिलाएं गुलदस्ता, पावदान, योगा मैट, वाल हैंगिंग व तमाम तरह के सजावटी प्रोडक्ट भी बनाती हैं. ये उनकी आमदनी का एक अच्छा जरिया बन गया है. इंडिया टुडे के किसान तक से बातचीत में संस्था की प्रमुख महिमा बंसल ने बताया कि चार महीने पहले हम लोगों ने 'जनार्दन प्रसाद मेमोरियल सोसाइटी' के माध्यम से संस्था बनाकर इस काम की शुरूआत किया था. जहां कुशीनगर जिले में करीब 300 ग्रामीण महिला इस रोजगार से जुड़ी हुई है. महिलाएं केले के पेड़ के रेशे से सेनेटरी पैड और आभूषण बना रहीं हैं. इस रेशे से महिलाएं गुलदस्ता, पावदान, योगा मैट, वाल हैंगिंग, प्लाई बोर्ड समेत कई आइटम बना रही है. जिसकी बाजार में बहुत अधिक डिमांड है.
उन्होंने बताया कि सेनेटरी पैड की डिमांड एनजीओ के जरिए सप्लाई की जा रही है. वहीं रोटरी क्लब के द्वारा बड़े पैमाने पर सेनेटरी पैड को खरीदा जा रहा है. क्योंकि रोटरी क्लब गांवों में फ्री कैंप लगाकर महिलाओं को फ्री में सेनेटरी पैड देते है. इस सेनेटरी पैड की खासियत के बारे में महिमा बंसल ने बताया कि इसको महिलाएं दोबारा इस्तेमाल कर सकती है. वहीं इस सेनेटरी पैड का मांग दक्षिण भारत के केरल में ज्यादा हैं.
ये उत्पाद ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरह से बिक रहे हैं. उन्होंने बताया कि हमारा पहला सेंटर गोरखपुर के कुसम्ही में हैं. दरअसल भारत के ग्रामीण इलाकों में Mansure के दौरान Hygiene यानी साफ सफाई को लेकर महिलाएं जागरूक नहीं है ऐसे में केले के रेशे से बने खास तरह के सेनेटरी पैड की मांग यूपी के कई जिलों में बढ़ रही है. वहीं मध्य प्रदेश के जबलपुर में भी हम लोगों ने अपनी यूनिट का विस्तार किया है. वहीं लखीमपुर, गोरखपुर और कुशीनगर में यह संस्था ग्रामीण महिलाओं को रोजगार के साथ आय का बड़ा जरिया बन गई है. जहां आज करीब 900 महिलाएं काम कर रही हैं.
महिमा बंसल बताती हैं कि हमारे एनजीओ का सालाना टर्नओवर लगभग एक करोड़ के करीब है. वहीं आभूषण और घरेलू सजावटी प्रोडक्ट (हैंडीक्राफ्ट) से साल में 30 लाख की कमाई हो रही है. उन्होंने बताया कि ग्रामीण महिलाओं के बैठे ऑर्डर के हिसाब से भुगतान किया जाता है. एक महिला 5 से 7 हजार रुपये प्रति माह के बीच कमाई कर लेती हैं. क्योंकि सारा काम ऑर्डर के हिसाब से होता है. महिमा ने बताया कि ग्रामीण महिलाएं के सामने सबसे बड़ी समस्या है कि वो देश के बड़े शहरों से सीधे जुड़ नहीं पाती, इसलिए हमारी संस्था उनको आगे बढ़ाने का काम कर रही है. ये उत्पाद ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरह से बिक रहे हैं.
केला फाइबर के बारे में महिमा कहती हैं, “यहां के किसानों द्वारा केले की कटाई के बाद, जिन केले के पेड़ों को कचरा समझ कर फेंक दिया जाता था, अब हम उन्हीं का सही तरीके से उपयोग कर रहे हैं.” उन्होंने बताया कि केले के पेड़ के तने से फाइबर बनाया जाता है. एक मशीन के जरिये, तने के दो भाग किये जाते हैं और उससे सारा रस निकाला जाता है. इसके बाद, रस निकाले हुए तने को छांव में सुखाया जाता है, फिर उससे रेशा यानि फाइबर तैयार किया जाता है. इस पूरी प्रक्रिया से निकले हुए कचरे को कम्पोस्ट खाद के रूप में उपयोग में लिया जाता है.
केले के तने से फाइबर बनाने की मशीन खरीदी और फाइबर तैयार करना शुरू किया. केला फाइबर, धागे के समान ही होता है, जिसका इस्तेमाल कर, वह कारपेट, बैग, टोपी और घर के सजावट की कई चीजें बनाती हैं. तैयार उत्पादों को रंगने के लिए, केले के तने से निकलने वाले रस का इस्तेमाल किया जाता है. वहीं यूपी सरकार ने 'वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोजेक्ट' (ओडीओपी) के तहत शामिल किया है. आज सैकड़ों हुनरमंद महिलाओं को उनके उत्पाद की मार्केटिंग का एक बड़ा प्लेटफॉर्म दे रहा है.
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