बिहार अब मशरूम उत्पादन का एक बड़ा केंद्र बनकर उभर रहा है. यह खेती कम लागत और ज्यादा मुनाफे की वजह से किसानों के लिए फायदेमंद साबित हो रही है. खासतौर पर बिहार की महिलाएं अब इस क्षेत्र में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रही हैं और आत्मनिर्भर बन रही हैं. मशरूम उत्पादन के साथ-साथ मधुमक्खी पालन भी महिलाओं के लिए आमदनी का अच्छा जरिया बनता जा रहा है. इस हम बात करेंगे दो ऐसी महिलाओं की, जिन्होंने अपनी मेहनत और जज्बे से ना सिर्फ खुद को सक्षम बनाया, बल्कि दूसरों को भी रोजगार देने का काम किया.
मुंगेर जिले के टेटिया बम्बर प्रखंड के तिलकारी गांव की यशोदा देवी एक सामान्य गृहिणी थीं. लेकिन उन्होंने कुछ अलग करने का सपना देखा. साल 2010 में उन्होंने मात्र 500 रुपये से मशरूम की खेती शुरू की. शुरुआत छोटी थी, लेकिन उनके हौसले बड़े. यशोदा ने ‘आत्मा’ योजना के तहत "तिलकारी खाद्य सुरक्षा समूह" बनाया और दूसरी महिलाओं को भी प्रशिक्षण देना शुरू किया.
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आज वे जैविक खेती, मधुमक्खी पालन और आधुनिक तकनीक वाली खेती कर रही हैं. उनके काम से ना सिर्फ उन्हें आर्थिक आज़ादी मिली, बल्कि गांव की कई महिलाएं भी आत्मनिर्भर हो गईं. यशोदा देवी आज महिला सशक्तिकरण की मिसाल बन चुकी हैं.
एक और प्रेरक उदाहरण हैं बंदना कुमारी, जो खेती से जुड़ी समस्याओं को खुद सुलझाने में यकीन रखती हैं. शादी के बाद जब वे अपने ससुराल पहुंचीं, तो वहां की पथरीली जमीन और सिंचाई की समस्या से जूझना पड़ा. एक दिन उन्होंने देखा कि चूहे धान की बर्बादी कर रहे हैं. उन्होंने एक अनोखा जुगाड़ निकाला – मोटर में पंखा लगाकर धान को तेजी से तैयार करने का तरीका खोज निकाला.
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इस तकनीक से जहां पहले दिनभर लगता था, अब सिर्फ कुछ घंटे में धान तैयार हो जाता है. जब उन्होंने इसे एक कृषि प्रदर्शनी में दिखाया, तो महिंद्रा कंपनी के अधिकारियों ने उनकी तारीफ की और उन्हें 2012 में 51 हजार रुपये का नकद पुरस्कार देकर सम्मानित किया. इस सम्मान ने उन्हें खेती से और गहराई से जोड़ दिया. अब वे 50 बीघा जमीन पर खेती कर रही हैं और नए-नए प्रयोग करती हैं.
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