कई जगहों पर किसान पारंपरिक खेती छोड़कर औषधीय खेती की तरफ रुख कर रहे हैं. ऐसे ही एक किसान मध्य प्रदेश के सागर जिले हैं, जो अश्वगंधा की खेती से लाखों की कमाई कर रहे हैं. इतना ही नहीं, इस युवा किसान से प्रेरणा लेकर गांव के 30 किसान भी अश्वगंधा की खेती शुरू कर दी है. चलिए आपको प्रशांत पटेल नाम के इस किसान की कहानी बताते हैं.
सागर के रहली ब्लॉक के रजवास गांव के किसान प्रशांत पटेल 4 एकड़ में अश्वगंधा की खेती कर रहे हैं. उन्होंने अक्टूबर के महीने में फसल लगाई थी. इस महीने में ये फसल तैयार हो जाएगी. अश्वगंधा की फसल तैयार होने में 4-5 महीने का वक्त लगता है. प्रशांत ने बताया कि इस फसल को जमीन की खुदाई करके निकाला जाता है. इसमें करीब 8 से 10 नोज पानी देना पड़ता है. उन्होंने बताया कि अश्वगंधा की खेती समय-समय पर निराई-गुड़ाई की जरूरत होती है.
एमपीसीजी डॉट एनडीटीवी डॉट इन की रिपोर्ट के मुताबिक प्रशांत ने बताया कि पिछले साल उन्होंने 7 डिसमिल में अश्वगंधा की खेती की थी. जिससे उनको 96 हजार रुपए का मुनाफा हुआ था. प्रशांत ने बताया कि एक एकड़ में 25 हजार रुपए की लागत आती है, जबकि इससे करीब एक लाख रुपए की कमाई हो जाती है.
प्रशांत पटेल ने जब पहली बार अश्वगंधा की खेती की तो उसने उनको अच्छा-खासा मुनाफा हुआ. जिससे गांव के किसान खासे प्रभावित हुए. युवा किसान से प्रेरणा लेकर गांव के करीब 30 किसान अश्वगंधा की खेती कर रहे हैं.
अश्वगंधा की खेती बीज या नर्सरी रोपण करके किया जा सकता है. इसके लिए मिट्टी का पीएच मान 7 से 8 होना चाहिए. गर्म प्रदेशों में अश्वगंधा की बुआई होती है. इसके लिए 500 से 750 मिलीमीटर बारिश की जरूरत होती है. पौधे को बढ़ने के लिए पर्याप्त नमी का होना जरूरी है.
अश्वगंधा की खेती के लिए प्रति हेक्टेयर 10 से 12 किलो बीज की जरूरत होती है. इसके बीज का अंकुरण 7 से 8 दिन में हो जाता है. अश्वगंधा को कतार विधि और छिड़काव विधि से लगाया जा सकता है. कतार विधि में पौधे के बीच 5 सेंटीमीटर और 2 कतार के बीच 20 सेंटीमीटर की दूरी होनी चाहिए. जबकि छिड़काव विधि में बीजों को खेतों में छिड़काव कर दिया जाता है.
अश्वगंधा की खेती के लिए भुरभुरी और समतल जमीन की जरूरत होती है. सबसे पहले खेत को 3-4 बार जुताई करके भुरभुरा कर देना चाहिए. इसके बाद अश्वगंधा की रोपाई करनी चाहिए.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today