भारत में कृष‍ि क्षेत्र की तरक्की का लीडर है ICAR, लेक‍िन चुनौत‍ियों के बीच खड़े हैं कई सवाल

भारत में कृष‍ि क्षेत्र की तरक्की का लीडर है ICAR, लेक‍िन चुनौत‍ियों के बीच खड़े हैं कई सवाल

ICAR Foundation Day: ब्रिट‍िश हुकूमत के दौरान 16 जुलाई 1929 को इंपीरियल काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च नाम से हुई थी आईसीएआर की स्थापना. हर‍ित क्रांत‍ि के सहारे भारत को भुखमरी से बचाने में ICAR का अहम योगदान. इसके बावजूद इस संस्थान पर हैं कई सवाल और चुनौत‍ियों से न‍िपटने का काम. 

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भारत में कृष‍ि क्षेत्र की तरक्की का लीडर है ICAR, लेक‍िन चुनौत‍ियों के बीच खड़े हैं कई सवालआईसीएआर के बारे में जान‍िए (Photo-Kisan Tak).

भारत में हरित क्रांति लाने और उसके बाद कृषि क्षेत्र में लगातार विकास करने में अपनी अहम भूमिका न‍िभाने वाला भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) आज अपना 95वां स्थापना द‍िवस मना रहा है. कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग के तहत आईसीएआर एक स्वायत्तशासी संस्था है. इसे ब्रिट‍िश हुकूमत के दौरान बनाया गया था. आजादी से पहले 16 जुलाई 1929 को इसकी स्थाप‍ना हुई थी. तब इस सोसाइटी का नाम इंपीरियल काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च था. रॉयल कमीशन की कृषि पर रिपोर्ट पर सोसाइटी रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1860 के तहत आईसीएआर को रज‍िस्टर्ड क‍िया गया था. इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है. कृष‍ि क्षेत्र में इसके पुराने काम का कोई सानी नहीं है, लेक‍िन अब इसका कामकाज पहले की तरह नहीं रहा है, जबक‍ि इसके सामने जलवायु पर‍िवर्तन जैसी कई चुनौत‍ियां भी बढ़ी हैं. इसमें र‍िसर्च से ज्यादा अब स‍ियासत घुसी हुई है और इसके वैज्ञान‍िक क‍िसानों की बजाय न‍िजी कंपन‍ियों के ह‍ितों को पूरा करने के ल‍िए ज्यादा काम कर रहे हैं. 

पीछे मुड़कर देखें तो आईसीएआर की र‍िसर्च और टेक्नोलॉजी से कृष‍ि क्षेत्र ने काफी तरक्की की है. साल 1950-51 में हम मुश्क‍िल से 50 म‍िल‍ियन टन खाद्यान्न उत्पादन करते थे लेक‍िन अब यह बढ़कर 330 लाख टन हो गया है. उत्पादन साढ़े छह गुना बढ़ गया है. बागवानी फसलों का 10.5 गुणा, दूध उत्पादन 10.4 गुणा, मछली उत्पादन 16.8 गुणा और अंडा उत्पादन 10.4 गुणा बढ़ा है. लेक‍िन, अब इसे डायनेमिक, लीन और एफिशिएंट ऑर्गनाइजेशन बनाने के ल‍िए इसमें बड़े पैमाने पर सुधार की कोश‍िश हो रही है. आईसीएआर को तर्कसंगत बनाने की बात की जा रही है. इसके ल‍िए एक कमेटी गठ‍ित की गई है. इसका मतलब यह है क‍ि सरकार खुद मानती है क‍ि अब आईसीएआर का स‍िस्टम एफिशिएंट नहीं रह गया है.

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सबसे बड़ा कृष‍ि नेटवर्क

आईसीएआर के अधीन 111 र‍िसर्च संस्थान और 71 कृषि विश्वविद्यालय हैं. लगभग हर प्रमुख फसल के ल‍िए अलग र‍िसर्च इंस्टीट्यूट हैं. इसल‍िए दुनिया के सबसे बड़े राष्ट्रीय कृषि सिस्टम में गिना जाता है. लेक‍िन इसके सामने यह भी सवाल है क‍ि कृष‍ि क्षेत्र में इतनी तरक्की के बावजूद क‍िसानों की दशा नहीं सुधरी है. क‍िसानों की आत्महत्या का स‍िलस‍िला अब भी जारी है. आईसीएआर ने उत्पादन बढ़ाने वाली पॉल‍िसी पर काम क‍िया लेक‍िन उसमें क‍िसानों का ह‍ित कैसे सधेगा इस पर वो मौन रहा. इसका एक्सटेंशन स‍िस्टम ध्वस्त हो चुका है इसल‍िए र‍िसर्च का फायदा आम क‍िसानों तक नहीं पहुंच रहा. आईसीएआर का काम कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा का है, ज‍िसका 2023-24 का बजट 8808 करोड़ रुपये का है. इसके बावजूद आईसीएआर से कोई ऐसा बड़ा र‍िसर्च नहीं न‍िकलकर आया ज‍िसने कृष‍ि क्षेत्र में क्रांत‍ि ला दी हो. 

कम नहीं हैं चुनौत‍ियां

दुन‍िया में मुख्य तौर पर 15 प्रमुख क्लाइमेटिक जोन होते हैं और ये सभी भारत में म‍िलते हैं. लेक‍िन, अब इन सभी में क्लाइमेट चेंज की चुनौत‍ियां बढ़ रही हैं. बार‍िश का पैटर्न बदल रहा है. क‍िसान कहीं पर ज्यादा बार‍िश का सामना कर रहे हैं तो कहीं पर सूखे का. कहीं बाढ़ आ रही है तो कहीं हीट वेव चल रही है. कहीं मौसम में बदलाव से पौधों पर नए कीटों का अटैक‍ बढ़ रहा है. इन चुनौत‍ियों से न‍िपटने के ल‍िए क्लाइमेट रेजिलिएंट और रोगरोधी फसलों की क‍िस्में व‍िकस‍ित करने की जरूरत है. ज‍िस पर आईसीएआर के कुछ संस्थानों के वैज्ञान‍िक काम कर रहे हैं. 

खराब होती म‍िट्टी और क‍िसानों का सवाल  

पूरी दुनिया में 50 तरह की मिट्टी पाई जाती है. उसमें से 46 तरह की मिट्टी हमारे भारत में मिलती है. इसके बावजूद हमारे सामने म‍िट्टी से जुड़ी हुई चुनौती खड़ी है. रासायन‍िक उर्वरकों के अंधाधुंध इस्तेमाल से म‍िट्टी की उर्वरता खत्म हो रही है. पर्यावरण प्रदूषण बढ़ रहा है. लेक‍िन, आईसीएआर क‍िसानों को यह समझाने में नाकाम रहा है क‍ि क‍िसानों को कब कौन सी खाद क‍ितनी मात्रा में डालनी है. 

नतीजा यह है क‍ि इस समय देश की 42 फीसदी जमीन में सल्फर की कमी है, 39 फीसदी में ज‍िंक कम है और 23 फीसदी में बोरॉन का अभाव हो गया है. ज‍िससे फसलों की गुणवत्ता पर असर पड़ रहा है. तीसरी समस्या यह है क‍ि क‍िसानों में स्ट्रेस बढ़ रहा है. खासतौर पर इनकम को लेकर. क‍िसान प्रोडक्शन कर लेते हैं लेक‍िन उन्हें दाम नहीं म‍िलता. इस व‍िषय पर भी अब आईसीएआर को काम करने की जरूरत है. 

ICAR और आगे का रास्ता

भारत के पास दुन‍िया की 2.3 फीसदी जमीन और 4 फीसदी साफ पानी है  लेक‍िन 18 फीसदी जनसंख्या है जो दुन‍िया में नंबर वन है. पशुधन हमारे पास दुन‍िया का 15 फीसदी हैं. इस मामले में भी हम व‍िश्व में नंबर वन हैं. इस बीच आज भी हम कई फसलों में व‍िश्व की औसत उत्पादकता से बहुत पीछे हैं. खाद्य तेलों के बड़े आयातक हैं.

फ‍िलहाल, देर से ही सही आईसीएआर के प्रबंधन की नींद खुली है और उसने डायरेक्टरों और व‍िभाग प्रमुखों के खाली पड़े पदों को प‍िछले छह महीने में लगभग भर द‍िया है, ताक‍ि कामकाज ठीक से हो सके. सरकार के न‍िर्देश पर वो अगले 25 साल के ल‍िए कृष‍ि क्षेत्र का रोडमैप बना रहा है. ताक‍ि भव‍िष्य की चुनौत‍ियों से न‍िपटने के ल‍िए हमारी नीत‍ियां और रणनीत‍ियां तय हो सकें. 

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