
कृषि क्षेत्र में बड़ा बदलाव लाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा बनाई गई एमएसपी और क्रॉप डायवर्सिफिकेशन कमेटी में फसलों के दाम को लेकर घमासान होने के आसार हैं. इसके सदस्यों में ज्यादातर ऐसे हैं जो नहीं चाहते कि किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की लीगल गारंटी मिले. खासतौर पर अर्थशास्त्री और नौकरशाह. कुछ किसान नेता भी इसके विरोध में हैं. इस बीच कमेटी के एक सदस्य कृष्णवीर चौधरी ने एक ऐसा दांव चल दिया है, जिससे किसानों का भला हो सकता है. चौधरी ने फसलों का रिजर्व प्राइस तय करने की लिखित तौर पर मांग उठाई है. उनके पत्र पर कमेटी के चार सदस्यों के हस्ताक्षर भी हैं. उन्होंने यह पत्र कमेटी के चेयरमैन संजय अग्रवाल को सौंप दिया है. चौधरी पुराने किसान नेता हैं और भारतीय कृषक समाज नामक संगठन चलाते हैं.
कमेटी में उनके इस दांव की जानकारी मिलने के बाद 'किसान तक' ने उनसे बातचीत की. चौधरी ने कहा कि उन्होंने एमएसपी कमेटी के सदस्य के तौर पर कमेटी में फसलों के रिजर्व प्राइस का प्रस्ताव रखा है. जो 23 फसलें एमएसपी में कवर्ड हैं उनकी कहीं भी रिजर्व प्राइस से नीचे खरीद न हो. उससे कम पर खरीदने वालों के खिलाफ जुर्माना लगाने का प्रावधान हो. फसलों की गुणवत्ता के हिसाब से दाम तय करने के लिए ग्रेडिंग की व्यवस्था पहले से ही है उसे कायम रखा जाए. ऐसा होगा तब जाकर किसानों की स्थिति बदलेगी.
इसे भी पढ़ें: Wheat Procurement: गेहूं खरीद का लक्ष्य पूरा हुआ तो किसानों की जेब पर फिर लगेगा झटका
देश के अधिकांश किसान संगठन सरकार से एमएसपी की लीगल गारंटी देने की मांग कर रहे हैं. एमएसपी से कम दाम पर खरीदने वालों पर जुर्माना लगाने की मांग कर रहे हैं. आपकी रिजर्व प्राइस वाली मांग भी ऐसी ही दिख रही है. सिर्फ नाम रिजर्व प्राइस रखने का फायदा क्या है? इस सवाल के जवाब में चौधरी ने कहा कि इससे दो बड़े फायदे होंगे.
चौधरी ने कहा कि किसानों की तरक्की तभी होगी जब उनके लिए बाजार खोला जाएगा और उन्हें सीधे एग्रो प्रोसेसिंग इंडस्ट्री से जोड़ा जाएगा. लेकिन यह काम रिजर्व प्राइस तय करके ही हो सकता है. वरना व्यापार और उद्योग जगत के लोग किसानों का शोषण शुरू कर देंगे. यह रिजर्व प्राइस सरकार और बाजार दोनों के लिए होगा. कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (CACP) हर सीजन में फसल का नया रिजर्व प्राइस घोषित करे और राज्य सरकारें उतना दाम मिलना सुनिश्चित करवाए. फसलों की बिक्री उस मूल्य के ऊपर ही हो. रिजर्व प्राइस तय करने का फार्मूला ए2+एफएल+50 फीसदी हो. ऐसा होगा तो मंडियों व आढ़तियों के चंगुल से किसानों को बचाया जा सकेगा.
भारतीय कृषक समाज के अध्यक्ष चौधरी ने कहा कि एग्रीकल्चर स्टेट सब्जेक्ट है. इसलिए मंडियां उसी के अधीन हैं. ऐसे में कृषि लागत एवं मूल्य आयोग को संवैधानिक दर्जा दिया जाए ताकि उसकी सिफारिशें मानने के लिए राज्य सरकारें बाध्य हों. आयोग का अध्यक्ष किसान को बनाया जाए. इसे और अधिक व्यवहारिक बनाने के लिए किसानों के चार सदस्य प्रतिनिधि रखे जाएं.
चौधरी ने कहा कि आयोग द्वारा घोषित मूल्य से कम पर किसी भी कृषि उत्पाद का आयात नहीं हो सके इसके लिए आयात शुल्क लगाकर बाजार को बचाना जरूरी है. इसको व्यवहारिक बनाने की जिम्मेदारी केंद्र सरकार की हो. साथ ही कांट्रैक्ट फार्मिंग में भी किसानों को मिलने वाला दाम कम से कम रिजर्व प्राइस जितना हो.
सरकार का काम व्यापार करना नहीं है, इसलिए सरकार सिर्फ बफर स्टॉक के लिए खरीद करे. बाकी खरीद निजी क्षेत्र करे लेकिन दाम दिलाने की गारंटी सरकार ले. रिजर्व प्राइस से कम दाम देने वाले व्यापारियों और उद्योगों को दंडित करने का प्रावधान हो. कर्जमाफी की बजाय अगर किसानों की फसलों का लाभकारी मूल्य दिला दिया जाए तो कृषि और किसानों दोनों की स्थिति सुधर जाएगी. देखना यह है कि इस सिफारिश को सरकार स्वीकार करती है या नहीं. उससे पहले कमेटी के चेयरमैन संजय अग्रवाल इसे रिपोर्ट में शामिल करते हैं या नहीं.
इसे भी पढ़ें: क्या है भावांतर भरपाई योजना, इसके खिलाफ क्यों शुरू हुआ किसान आंदोलन?
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today