एमएसपी कमेटी के सदस्य ने रखा फसलों के रिजर्व प्राइस का प्रस्ताव, क्या मंजूर करेगी सरकार? 

एमएसपी कमेटी के सदस्य ने रखा फसलों के रिजर्व प्राइस का प्रस्ताव, क्या मंजूर करेगी सरकार? 

MSP: क‍िसान नेता और एमएसपी कमेटी के एक सदस्य ने कमेटी के चेयरमैन को पत्र ल‍िखकर क‍हा है क‍ि न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी की बजाय फसलों के र‍िजर्व प्राइस की व्यवस्था हो. उससे कम पर देश में कहीं पर फसलों की खरीद न हो. कमेटी में शाम‍िल अर्थशास्त्री और नौकरशाह पचा पाएंगे ऐसी मांग.  

Advertisement
एमएसपी कमेटी के सदस्य ने रखा फसलों के रिजर्व प्राइस का प्रस्ताव, क्या मंजूर करेगी सरकार? क्या एमएसपी के मुकाबले ज्यादा प्रभावी होगा र‍िजर्व प्राइस (Photo-Kisan Tak).

कृष‍ि क्षेत्र में बड़ा बदलाव लाने के ल‍िए केंद्र सरकार द्वारा बनाई गई एमएसपी और क्रॉप डायवर्स‍िफ‍िकेशन कमेटी में फसलों के दाम को लेकर घमासान होने के आसार हैं. इसके सदस्यों में ज्यादातर ऐसे हैं जो नहीं चाहते क‍ि क‍िसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की लीगल गारंटी म‍िले. खासतौर पर अर्थशास्त्री और नौकरशाह. कुछ क‍िसान नेता भी इसके व‍िरोध में हैं. इस बीच कमेटी के एक सदस्य कृष्णवीर चौधरी ने एक ऐसा दांव चल द‍िया है, ज‍िससे क‍िसानों का भला हो सकता है. चौधरी ने फसलों का र‍िजर्व प्राइस तय करने की ल‍िख‍ित तौर पर मांग उठाई है. उनके पत्र पर कमेटी के चार सदस्यों के हस्ताक्षर भी हैं. उन्होंने यह पत्र कमेटी के चेयरमैन संजय अग्रवाल को सौंप द‍िया है. चौधरी पुराने क‍िसान नेता हैं और भारतीय कृषक समाज नामक संगठन चलाते हैं. 

कमेटी में उनके इस दांव की जानकारी म‍िलने के बाद 'क‍िसान तक' ने उनसे बातचीत की. चौधरी ने कहा क‍ि उन्होंने एमएसपी कमेटी के सदस्य के तौर पर कमेटी में फसलों के रिजर्व प्राइस का प्रस्ताव रखा है. जो 23 फसलें एमएसपी में कवर्ड हैं उनकी कहीं भी र‍िजर्व प्राइस से नीचे खरीद न हो. उससे कम पर खरीदने वालों के ख‍िलाफ जुर्माना लगाने का प्रावधान हो. फसलों की गुणवत्ता के ह‍िसाब से दाम तय करने के ल‍िए ग्रेड‍िंग की व्यवस्था पहले से ही है उसे कायम रखा जाए. ऐसा होगा तब जाकर क‍िसानों की स्थ‍िति बदलेगी. 

इसे भी पढ़ें: Wheat Procurement: गेहूं खरीद का लक्ष्य पूरा हुआ तो क‍िसानों की जेब पर फ‍िर लगेगा झटका 

र‍िजर्व प्राइस क्यों? 

देश के अध‍िकांश क‍िसान संगठन सरकार से एमएसपी की लीगल गारंटी देने की मांग कर रहे हैं. एमएसपी से कम दाम पर खरीदने वालों पर जुर्माना लगाने की मांग कर रहे हैं. आपकी र‍िजर्व प्राइस वाली मांग भी ऐसी ही द‍िख रही है. स‍िर्फ नाम र‍िजर्व प्राइस रखने का फायदा क्या है? इस सवाल के जवाब में चौधरी ने कहा क‍ि इससे दो बड़े फायदे होंगे.

  • पहली बात तो यह है क‍ि सभी लोगों को यह समझना होगा क‍ि एमएसपी की व्यवस्था सरकार के ल‍िए है न क‍ि बाजार के ल‍िए. ऐसे में एमएसपी के होते हुए भी बाजार में क‍िसानों का शोषण होता रहता है. बाजार पर एमएसपी लागू नहीं है इसल‍िए सभी क‍िसानों को एमएसपी का फायदा नहीं म‍िल पाता. ऐसी व्यवस्था से आम क‍िसानों का नुकसान होता है. क्योंक‍ि अब तक कभी क‍िसी सरकार ने बाजार के ल‍िए रेट का कोई बेंच मार्क नहीं बनाया. इसल‍िए फसलों का र‍िजर्व प्राइस तय करके यह सुन‍िश्च‍ित क‍िया जाए क‍ि फसल के र‍िजर्व रेट से कम पर कोई खरीद नहीं होगी.  
  • दूसरा फायदा यह है क‍ि वर्ल्ड ट्रेड आर्गेनाइजेशन (WT0) की शर्तों से भी हम बच सकते हैं. डब्ल्यूटीओ भारत पर क‍िसानों को एमएसपी न देने का दबाव बना रहा है. डब्ल्यूटीओ के कृषि समझौते के अनुसार, भारत जैसे विकासशील देश फसलों की उत्पादन लागत पर अधिकतम 10 फीसद ही सब्सिडी दे सकते हैं. र‍िजर्व प्राइस होने के बाद इंटरनेशनल समझौतों में भी कोई द‍िक्कत नहीं आएगी. ब्राजील, यूरोपीय यून‍ियन, मलेश‍िया और अमेर‍िका में र‍िजर्व प्राइस का इंतजाम है. अमेर‍िका में अलग-अलग फसलों की काउंस‍िल र‍िजर्व प्राइस घोष‍ित करती हैं. 

कैसे तय होगा दाम 

चौधरी ने कहा क‍ि क‍िसानों की तरक्की तभी होगी जब उनके ल‍िए बाजार खोला जाएगा और उन्हें सीधे एग्रो प्रोसेस‍िंग इंडस्ट्री से जोड़ा जाएगा. लेक‍िन यह काम र‍िजर्व प्राइस तय करके ही हो सकता है. वरना व्यापार और उद्योग जगत के लोग क‍िसानों का शोषण शुरू कर देंगे. यह र‍िजर्व प्राइस सरकार और बाजार दोनों के ल‍िए होगा. कृष‍ि लागत एवं मूल्य आयोग (CACP) हर सीजन में फसल का नया र‍िजर्व प्राइस घोष‍ित करे और राज्य सरकारें उतना दाम म‍िलना सुन‍िश्च‍ित करवाए. फसलों की ब‍िक्री उस मूल्य के ऊपर ही हो. र‍िजर्व प्राइस तय करने का फार्मूला ए2+एफएल+50 फीसदी हो. ऐसा होगा तो मंड‍ियों व आढ़त‍ियों के चंगुल से क‍िसानों को बचाया जा सकेगा.  

एमएसपी कमेटी के सदस्य कृष्णवीर चौधरी

सीएसीपी को म‍िले संवैधान‍िक दर्जा

भारतीय कृष‍क समाज के अध्यक्ष चौधरी ने कहा क‍ि एग्रीकल्चर स्टेट सब्जेक्ट है. इसल‍िए मंड‍ियां उसी के अधीन हैं. ऐसे में कृषि लागत एवं मूल्य आयोग को संवैधानिक दर्जा द‍िया जाए ताक‍ि उसकी स‍िफार‍िशें मानने के ल‍िए राज्य सरकारें बाध्य हों. आयोग का अध्यक्ष किसान को बनाया जाए. इसे और अधिक व्यवहारिक बनाने के लिए किसानों के चार सदस्य प्रतिनिधि रखे जाएं. 

कांट्रैक्ट फार्म‍िंग की क्या हो शर्त  

चौधरी ने कहा क‍ि आयोग द्वारा घोषित मूल्य से कम पर किसी भी कृषि उत्पाद का आयात नहीं हो सके इसके लिए आयात शुल्क लगाकर बाजार को बचाना जरूरी है. इसको व्यवहारिक बनाने की जिम्मेदारी केंद्र सरकार की हो. साथ ही कांट्रैक्ट फार्म‍िंग में भी क‍िसानों को म‍िलने वाला दाम कम से कम र‍िजर्व प्राइस ज‍ितना हो.

अच्छे दाम से बनेगा काम

सरकार का काम व्यापार करना नहीं है, इसल‍िए सरकार स‍िर्फ बफर स्टॉक के ल‍िए खरीद करे. बाकी खरीद न‍िजी क्षेत्र करे लेक‍िन दाम द‍िलाने की गारंटी सरकार ले. र‍िजर्व प्राइस से कम दाम देने वाले व्यापार‍ियों और उद्योगों को दंड‍ित करने का प्रावधान हो. कर्जमाफी की बजाय अगर क‍िसानों की फसलों का लाभकारी मूल्य द‍िला द‍िया जाए तो कृष‍ि और क‍िसानों दोनों की स्थ‍िति सुधर जाएगी. देखना यह है क‍ि इस स‍िफार‍िश को सरकार स्वीकार करती है या नहीं. उससे पहले कमेटी के चेयरमैन संजय अग्रवाल इसे र‍िपोर्ट में शाम‍िल करते हैं या नहीं. 

इसे भी पढ़ें: क्या है भावांतर भरपाई योजना, इसके ख‍िलाफ क्यों शुरू हुआ क‍िसान आंदोलन?

 

POST A COMMENT