बुंदेलखंड की सूखी धरती पर अब किसान ऐसी खेती कर रहे हैं जिससे न सिर्फ उनकी किस्मत बदली है बल्कि दूसरे किसानों को भी उन्होंने नई राह दिखाई है. हमीरपुर जिले के एक किसान ने ड्रैगन फ्रूट की खेती शुरू की है. पाटनपुर के किसान ऋषि शुक्ला ने दूसरे किसानों से प्रेरित होकर ड्रैगन फ्रूट की खेती शुरू की. सबसे पहले ऋषि ने 2019 में केवल 100 पौधे लगाए लेकिन तापमान अधिक होने के चलते पौधे नष्ट हो गए. इसके बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी. फिर दोबारा से 300 पौधे लगाए जिसमें से 100 पौधे फल देने लगे.
किसान ऋषि ड्रैगन फ्रूट 400 रुपये किलो तक व्यापारियों को बेच रहे हैं. वहीं उनकी इस खेती को देखकर अब दूसरे गांव के किसान भी प्रेरित हुए हैं. जिला उद्यान अधिकारी आशीष कटिहार ने बताया कि ड्रैगन फ्रूट की खेती से न सिर्फ किसानों की आय बढ़ रही है बल्कि लोगों की इम्युनिटी भी बढ़ रही है. ड्रैगन फ्रूट खून बढ़ाने और कैंसर की रोकथाम में कारगर माना गया है.
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बुंदेलखंड की सूखी धरती में ड्रैगन फ्रूट और एप्पल बेर जैसे फलों की मदद से न सिर्फ किसानों की कमाई बढ़ी है बल्कि अब दूसरे किसान भी तेजी से इस तरह की खेती को अपना रहे हैं. हमीरपुर जिले में गेहूं और धान की फसल करने वाले किसान अब उद्यान विभाग के सहयोग से ड्रैगन फ्रूट की खेती से मोटा मुनाफा कमाने लगे हैं. जिले में 10 हेक्टेयर क्षेत्रफल में ड्रैगन फ्रूट की खेती हो रही है. परंपरागत खेती करने वाले किसानों ने अब अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए विदेशी फल और सब्जियों की खेती के तरफ कदम बढ़ाए हैं.
पाटनपुर गांव में 1 एकड़ क्षेत्रफल में विदेशी फल ड्रैगन फ्रूट की खेती शुरू करने वाले ऋषि शुक्ला ने बताया कि विदेशी फल की खेती से न सिर्फ उन्हें फायदा हुआ है बल्कि दूसरे किसानों की भी किस्मत बदली है. एक एकड़ से 200000 रुपये का खर्च आता है जबकि मुनाफा चार गुना तक होता है.
हमीरपुर जिले के पाटनपुर गांव के रहने वाले ऋषि शुक्ला ने बताया कि उन्होंने पहले अपनी जमीन पर वाला अमरुद और आम के बीच-बीच में खाली जमीन पर ड्रैगन फ्रूट के पौधे लगाए. इसके लिए उन्हें कृषि विज्ञान केंद्र से जानकारी मिली. एक वर्ष में एक बीघे में ढाई लाख के फलों का उत्पादन किया जबकि लागत केवल 40000 रुपये के आसपास रही. उन्होंने यह भी बताया कि गेहूं की फसल से एक बीघे में 15000 रुपये तक का उत्पादन मिलता है जबकि 4000 रुपये प्रति बीघा लागत आती है. बागवानी की फसल में एक बार में तीन-चार साल के लिए फुर्सत हो जाती है और लगातार उत्पादन मिलता रहता है.
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