पशुपालन हमारे देश में सालों से चलता आ रहा है. खेती के साथ पशु पालना ग्रामीण क्षेत्रों के किसानों की अतिरिक्त आय का जरिया था, लेकिन पिछले कुछ सालों से इस फील्ड में उतर कर अच्छी खासी कमाई भी देखी गई है. पशुपालन की सफलता को देखते हुए अधिकांश लोग अच्छी-खासी नौकरी छोड़कर इसे अपनाया और तगड़ा मुनाफा भी कमाया. इसी तरह एक कहानी इंदौर के रहने वाले अंकित जैन की है. अंकित बताते हैं कि उन्होंने साल 2016 में 07 गायों से डेयरी की शुरुआत की थी आज उनका सालाना टर्न ओवर डेढ़ करोड़ से भी अधिक है.
अंकित इंदौर के गुलावट गांव से आते हैं. वे भी हर किसी की तरह नौकरी का प्लान कर रहे थे लेकिन उनकी दिलचस्पी हमेशा से ही खेती और पशुपालन में रही है. अंकित बताते हैं कि साल 2016 में उन्होंने गिर नस्ल की 7 गाय पाली और छोटे पैमाने में डेयरी की शुरुआत की जिससे उन्हें फायदा समझ में आया. इंदौर के करीब होने का कारण उन्हें अच्छा बाजार मिल गया. उसके बाद उन्होंने अपना बिजनेस बड़ा करने का फैसला किया और आज उनके बाड़े में 165 के करीब गौवंश हो गए हैं.
अंकित बताते हैं कि सात गायों से शुरू हुई डेयरी में आज 165 गौवंशों तक पहुंच गई है. इनमें से करीब 80 गायें दूध भी देती हैं. उन्होंने बताया कि रोजाना उनके यहां 520-550 लीटर होता है.
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दूध बेचेने के अलावा वे दूध प्रोसेस कर कई मिल्क प्रोडक्ट बनाते हैं जिनकी बाजार में अच्छी कीमत होती है. इन सब को मिलाकर सालाना डेढ़ करोड़ रुपये का रेवेन्यू जेनरेट होता है. इसमें खान-पान, रखरखाव, दवाएं और लेबर का खर्च अलग करने के बाद हर साल 25-30 लाख रुपये की बचत होती है.
अंकित अपनी डेयरी से निकलने वाले हर प्रोडक्ट का बखूबी इस्तेमाल करते हैं. मिल्क प्रोडक्ट्स बनाने के साथ ही डेयरी से निकलने वाले गोबर का भी अच्छा इस्तेमाल किया जाता है. वे बताते हैं कि गोबर से ऑर्गेनिक खाद और जैव ईंधन भी बनाते हैं. अंकित बताते हैं कि उनके डेयरी में लगी मशीनें इन्हीं ईंधन से चलती हैं जिससे बिजली की भी बचत होती है. पशुओं को खिलाने के लिए अनाज बाजार से खरीदने की बजाय खेत में ही उगा लेते हैं. अंकित बताते हैं कि पशुओं के खान-पान में महीने का खर्च करीब 5 लाख रुपये आता है.
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