धान की कटाई के बाद खेतों में बची रहने वाली पराली पंजाब सहित देश के कई राज्यों के लिए एक बड़ी समस्या बनी हुई है. देश के ज्यादातर किसान रबी की फसल लगाने के लिए पराली को आग के हवाले कर देते हैं. इससे न सिर्फ बड़े स्तर पर प्रदूषण होता है, बल्कि मिट्टी की उपज शक्ति भी कम हो जाती है. लेकिन इससे भी बड़ी परेशानी है कि आखिर इस बची हुई पराली का निपटान कैसे किया जाए? इसी को लेकर बिहार के रहने वाले एक शख्स ने एक नया और अनोखा समाधान निकाला है. इससे न केवल पर्यावरण को बचाने में मदद मिल रही है, बल्कि किसानों को भी इससे फायदा हो सकेगा. बिहार के रोहतास जिले के बभनी गांव के रहने वाले निवासी दिनेश कुमार सॉलिड ईंधन बना रहे हैं. आइए जानते हैं उनके इस सफर की कहानी.
पराली से ईंधन बनाने की ओर रोहतास जिला ने भी तेजी से कदम बढ़ाना शुरू कर दिया है. युवा इंजीनियर दिनेश कुमार की सोच ने न केवल पराली से हरित ईंधन तैयार हो रहा है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण के साथ तीन सौ लोगों को रोजगार भी मिल रहा है. युवा इंजीनियर दिनेश कुमार अपने गांव के अलावा करूप और बरांव गांव में बायोमास ब्रिकेट प्लांट (ईंधन वाली ईंट) लगा कर लगभग 15 हजार टन ईंधन उत्पादन कर हरित ईंधन को बढ़ावा दे रहे हैं.
इनके उत्पाद की मांग सुधा डेयरी, मदर डेयरी से लेकर गोदरेज एग्रोवेट और प्लाईवुड उद्योग के लिए राज्य से बाहर तक है. दिनेश कुमार बताते हैं कि ब्रिकेट एक नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत है, जो फसल अवशेष, वन अवशेष, जल में उगने वाले पौधे के कचरे से प्राप्त होता है. उन्होंने कहा कि इससे पर्यावरण भी प्रदूषण से मुक्त रहता है. साथ ही इसका उपयोग ताप ईंधन के रूप में या बॉयलर चलाने के में हो रहा है.
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दिनेश कुमार ने मां दुर्गा बायो फ्यूल्स के नाम से वर्ष 2021 में ईंधन बनाने का प्लांट लगाया था. तब उन्हें यह पता नहीं था कि इसकी इस मांग कदर बढ़ेगी कि उन्हें अन्य दो जगहों पर अधिक क्षमता के प्लांट लगाने पड़ेंगे. दिनेश प्लांट स्थापित कर गांवों में पर्यावरण संरक्षण के लिए न केवल किसानों को प्रेरित कर रहे हैं बल्कि उन्हें खेती के साथ अतिरिक्त आमदनी भी करा रहे हैं.
उन्होंने बताया कि करगहर प्रखंड में 40-50 किलोमीटर की दूरी में लगभग चार हजार किसान से पराली की खरीद कर वार्षिक रूप से लगभग 10 हजार टन बायोमास ब्रिकेट का उत्पादन किया जा रहा है. इस वर्ष उत्पादन बढ़ाकर 15 हजार मीट्रिक टन कर दिया गया है. उत्पादित बायोमास ब्रिकेट को औद्योगिक उपयोग के लिए कोयले के हरित विकल्प के रूप में सुधा डेयरी, मदर डेयरी और गोदरेज एग्रोवेट और प्लाईवुड उद्योगों को बेचा जा रहा है. इसके अलावा आसपास के लगभग तीन सौ लोगों को रोजगार भी उपलब्ध कराया जा रहा है. साथ ही पराली बेचने वाले किसानों को ढाई रुपये प्रति किलो और कुट्टी, भूसी, खुदी पहुंचाने पर साढ़े तीन रुपये प्रति किलो देते हैं.
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