गांव-कस्बों में रहने वाले तो हरियाली से घिरे रहते ही हैं, लेकिन जरा उनके बारे में सोचिए जो शहरों में रहते हैं. जगह को लेकर हर तरह से कॉम्प्रोमाइज करते हैं. हरियाली देखने की, बिखेरने की, ताजा फल सब्जियों के स्वाद लेने की कसक दिल में ही रह जाती है. बड़ी-बड़ी अट्टालिकाओं से घिरे शहरों में रहने वाले ज्यादातर लोगों की यही कहानी है. जहां कभी बड़े बंगलों में होने वाले गार्डन की जगह अब तरह-तरह की गाड़ियों ने घेर ली है. अब ऐसे शहरी लोग, भला हरियाली से नाता जोड़ें तो कैसे जोड़ें?
संजय राठी जो लखनऊ उद्यान विभाग में काम करते थे, उन्होंने ऐसे वंचित शहरियों की हरियाली की इस कसक को पूरा करने का जबर्दस्त उपाय खोज निकाला है. इसी क्रम में घर के कचरे को गमले में खाद बनाने की तकनीक विकसित की है. उसी गमले में पौधे उगा रहे हैं, जिससे एक ही स्थान पर समाधान निकाला गया है. यह खोज सिर्फ खुद तक सीमित नहीं है, बल्कि बड़े पैमाने पर यह एक खूबसूरत लाभकारी व्यवसाय बन गया है.
संजय राठी ने एक नई तकनीक का उपयोग करके ड्रम को उन्नत तरीके से वर्टिकल गमला बनाया है, जिससे शहर में घर से निकलने वाले कचरे की समस्या को सुलझाया जा सकता है. इस गमले में एक तरफ खाद बनती है और दूसरी तरफ पौधे उगते हैं. संजय राठी ने एक 4 फीट ऊंचे ड्रम का उपयोग किया है, जिसमें खाद के लिए बीच की जगह बनाई गई है और गमले के चारों ओर पौधे उगाए जा सकते हैं.
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ये गमले वेस्ट पाइप या वेस्ट ड्रम से बनाए जाते हैं, जो घरों में प्रयोग की जाने वाली वस्तुओं से तैयार होते हैं. इसके अलावा, ये गमले बड़े ड्रम से बने होते हैं, जिनमें किचन के कचरे से आर्गेनिक खाद बनती है. इन गमलों में उगाई गई खाद से सब्जियां और फूल उगाए जा सकते हैं. इनमें सीजनल सब्जी और ऑर्नामेंटल पौधे उगाए जा सकते हैं और 44 स्क्वायर फीट गमले के आकार में 70 पौधे उगाए जा सकते हैं.
संजय राठी के अनुसार, ड्रम के बीच इस प्रकार का प्लास्टिक पाइप लगा दिया गया है, ताकि कोई भी किचन से निकले 2 किलो तक का किचन वेस्ट उसमें प्रति दिन डाल सके. इसके साथ ही, उसमें एक बैक्टीरियल कल्चर छिड़का जाता है, जिससे किचन वेस्ट धीरे-धीरे खाद में बदलता जाता है. कुछ ही दिनों बाद ऑर्गेनिक खाद भी तैयार की जा सकती है, जिसे अपने गमलों में इस्तेमाल करके, स्वस्थ ताजा सब्जियां और फूल उगाए जा सकते हैं.
संजय राठी लखनऊ में इस तरह के हाईटेक जमाने के गमलों की एक वर्कशॉप चलाते हैं, जहां अधिकतर वेस्ट मैटेरियल से गमले और उसके अंदर डालने वाले मीडियम तैयार किए जाते हैं. स्पेशल गमलों में, इस स्पेशल खेती के लिए आपको मिट्टी की भी ज़रूरत नहीं पड़ेगी, बल्कि प्लाइट और वर्मीकुलाइट के साथ कंपोस्ट के मिश्रण से वे इसके लिए स्पेशल मीडियम भी तैयार करते हैं.
दरअसल इस तरह की ऑर्गेनिक खेती घर के अंदर कर आप सब्जियों के पैसे बचा सकते हैं. घर में हरियाली ला सकते हैं, कचरा घर में ही निपटा कर पर्यावरण को मदद पहुंचा सकते हैं. साथ ही अगर ऐसे गमलों के निर्माण को व्यावसायिक रूप देना चाहते हैं, तो इससे अच्छी कमाई भी कर सकते हैं. एक से डेढ़ लाख रुपयों से इस काम को शुरू कर, आप कई गुना लाभ कमा सकते हैं.
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संजय राठी के अनुसार वह घर से निकलने वाले वेस्ट मैनेजमेंट पर आधारित इस विधि पर यह खुद काम कर रहे हैं. उनका मानना है कि घरो में या आस-पास खाली जगह न होने के कारण लोग शाक-सब्जी और फूलों को नहीं लगा पा रहे हैं. ऐसे में यह विधि या मॉडल इसका एक सबसे बढ़िया विकल्प है जो वेस्ट मैनेजमेंट और अर्बन ऑर्गेनिक फार्मिंग को एक नई राह देता है. इससे आम शहरियों का भला हो, स्वच्छ भारत निर्माण का रास्ता मज़बूत हो और साथ ही पर्यावरण दुरुस्त रखने में भी मदद मिले, उस ओर कदम बढ़ाया जा रहा है.
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