सफेद धोती-कुर्ता, सर पर गमछा, आंखों में चमक, भारतीय किसान का ज़िक्र हो तो कुछ ऐसी ही तस्वीर ज़हन में आती है. इस तस्वीर में हम भारत की झलक देखते हैं क्योंकि किसानों को देश की रीढ़ माना जाता है. मगर इस सब के बीच महिला किसानों का कोई ज़िक्र नहीं होता. भारत में महिलाएं हमेशा से ही खेती में शामिल रही हैं. बीज बोने से लेकर कटाई तक, खेती से जुड़ा हर वो काम जो पुरुष करते हैं, इनमें महिलाओं का बराबर का योगदान होता है.
नीति आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 80 प्रतिशत महिलाएं कृषि से जुड़ी हैं. वहीं ऑक्सफैम इंडिया की रिपोर्ट कहती है कि देश की 60 से 70 फीसदी फसलों के उत्पादन के लिए महिला किसान ज़िम्मेदार हैं. इसके बावजूद उनकी मेहनत अनदेखी रह जाती है और खेती को पुरुष प्रधान ही माना जाता है.
इसी सोच को बदलने की एक कोशिश की है धर्मपाल सत्यपाल ग्रुप (डीएस ग्रुप) ने. डीएस ग्रुप ने कृषि में महिला किसानों के महत्वपूर्ण योगदान को उजागर करने के लिए 2023 में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर '#SaluteTheFarmHER' अभियान शुरू किया था. इस अभियान का उद्देश्य ग्रामीण महिलाओं की पहचान की कमी को दूर करना है जो भारत की कृषि अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं.
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डीएस ग्रुप के कॉरपोरेट मार्केटिंग के जनरल मैनेजर सचिन शर्मा के मुताबिक, 2023 में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर ग्रुप ने लोगों की मानसिकता को बदलने और महिला किसानों को सामने लाने की एक पहल शुरू की. उन्होंने अपने कैंपेन, सैल्यूट द फार्म हर, में मीडिया से सहयोग मांगा और सभी पत्रकारों से गुज़ारिश की कि वो खेती से जुड़ी हर खबर में महिला किसानों की तस्वीरों का इस्तेमाल करें. 50 से ज़्यादा पब्लिकेशन्स इस मुहिम का हिस्सा बने और 80 से ज़्यादा स्टोरीज़ 7 करोड़ लोगों तक पहुंचीं. कंपनी के मुताबिक नतीजा ये हुआ कि एक साल के भीतर इंटरनेट पर महिला किसानों का रेप्रेसेंटेशन मात्र 8 प्रतिशत से बढ़कर 37 प्रतिशत हो गया.
सचिन शर्मा ने बताया, अपनी महत्वपूर्ण भूमिका के बावजूद, कृषि में ग्रामीण महिलाओं पर अक्सर ध्यान नहीं दिया जाता है. दर्शकों में जागरूकता बढ़ाकर और इन महिलाओं को सशक्त बनाकर डीएस ग्रुप सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय क्षेत्रों में सकारात्मक बदलाव लाने के साथ उनके प्रयासों को स्वीकारना और सराहना चाहता है.
शर्मा ने कहा कि डीएस ग्रुप हमेशा से महिला किसानों को पहचान दिलाने के लिए काम करता रहा है. अब तक कंपनी देश के 12 कृषि प्रधान राज्यों में 24000 से ज़्यादा महिला किसानों को सपोर्ट कर रही है. इसके अलावा ग्रुप ने अपनी कृषि आधारित आजीविका परियोजनाओं के माध्यम से महिला किसानों के साथ हाथ मिलाया है, जो महिला किसान, व्यवसाय मालिक और कुशल कृषि मजदूरों को जन्म देती है.
इस पूरी मुहिम में कुछ दिलचस्प कहानियां भी सामने आईं. सचिन शर्मा ने बताया, कई दिलचस्प कहानियां हैं. एक कहानी पुष्पा देवी की है, जो झारखंड की एक किसान हैं. पुष्पा देवी ने अपनी खेती को एक तरह से नया जीवन दिया. नई तकनीकों और बेहतर गुणवत्ता वाले बीजों के बारे में जानकारी हासिल की और एफपीसी के माध्यम से बाजार तक पहुंचने में भी सक्षम हुईं. डीएस ग्रुप ने उनको कृषि विज्ञान केंद्र से जुड़ने में मदद की और ज़िला प्रशासन तक पहुंचने में उनका समर्थन किया.
शर्मा ने बताया, नतीजा ये हुआ कि उनकी आय में काफी वृद्धि हुई. जहां पहले वो सालाना 15,000 रुपये कमाती थीं, अब ये बढ़कर 45,000 हो गया है. उनकी सफलता ने अन्य किसानों को FPO यानी किसान उत्पादक संगठन की मदद से इसी तरह की तकनीकों को अपनाने के लिए प्रेरित किया है. हमारा लक्ष्य महिला किसानों को सशक्त बनाना और उनकी आय को बढ़ाना है.
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