दूधारू पशुओं में कृत्रिम गर्भाधान तकनीक AI (Artificial Insemination) के जरिए कम दूध देने वाले पशुओं से नस्ल सुधार कर अधिक दूध उत्पादन प्राप्त करना आज एक सामान्य प्रक्रिया हो गई है. अब यह तकनीक मधुमक्खियों के लिए भी विकसित की गई है. इस तकनीक को किसी वैज्ञानिक ने नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के हरख ब्लॉक के दरावपुर गांव के युवा किसान अजीत कुमार ने विकसित किया है. उनका दावा है कि इस तकनीक से मधुमक्खियों के एक बक्से में मधु उत्पादन 30 से 35 प्रतिशत तक बढ़ जाता है. अजीत कुमार के इस नवाचार ने मधुमक्खी पालन में एक नई क्रांति की संभावना को जन्म दिया है. उनका कहना है कि अगर इस तकनीक को भारत सरकार समर्थन देती है और इसे बड़े पैमाने पर लागू किया जाता है तो भारत जल्द ही दुनिया के अग्रणी मधु उत्पादक देशों में शामिल हो सकता है. इसके साथ ही, मधु की गुणवत्ता में भी सुधार होगा, जिससे किसानों की आय में कापी वृद्धि हो सकेगी.
इनोवेटिव युवा किसान अजीत कुमार द्वारा विकसित की गई यह तकनीक मधुमक्खियों के प्रजनन में सुधार लाकर उत्पादन को बढ़ाने पर आधारित है. जिस प्रकार पशुओं में उच्च गुणवत्ता वाले कृत्रिम गर्भाधान तकनीक का उपयोग करके अधिक उत्पादन देने वाले पशु तैयार किए जाते हैं, उसी तरह इस तकनीक में मधुमक्खियों का चयन करके मधुमक्खियों की उन्नत नस्ल तैयार की जाती है. इससे न केवल शहद उत्पादन में वृद्धि होती है, बल्कि मधुमक्खियों की गुणवत्ता में भी सुधार होता है, जिससे वे लंबे समय तक टिकाऊ और अधिक उत्पादक होती हैं. बी-कीपर अजीत कुमार ने किसान तक को बताया कि इस चयन प्रक्रिया को तीन चरणों में पूरा किया जाता है. सबसे पहले अधिक उत्पादन देने वाली मधुमक्खी कालोनियों से उच्च उत्पादकता वाले लार्वा का चयन किया जाता है. इसके बाद स्वस्थ कालोनियों में कृत्रिम गर्भाधान करके उच्च उत्पादकता वाली रानी मधुमक्खियां तैयार की जाती हैं. इस प्रक्रिया के तहत स्वस्थ और दोषरहित लार्वा को रानी कोशिकाओं में स्थानांतरित किया जाता है ताकि नई हेल्दी रानी मधुमक्खियाँ उत्पन्न हों. इसके बाद पुरानी रानी को हटाकर कॉलोनी को नई रानी बनाने के लिए प्रेरित किया जाता है.
अजीत कुमार ने बताया कि जिन किसानों ने इस तकनीक का उपयोग किया, सामान्य प्रक्रिया में जिन किसानों का एक बक्से से 25 से 28 किलो तक शहद उत्पादन होता था, लेकिन वे बी-कीपर अब कृत्रिम गर्भाधान तकनीक के उपयोग से प्रति बॉक्स 35 से 36 किलो तक शहद उत्पादन करने लगे हैं. इस तरह 30 से 35 प्रतिशत तक अधिक उत्पादन मिल रहा है.अजीत कुमार ने बताया की सामान्य प्रजनन प्रक्रिया में मधुमक्खियों की आनुवंशिक विविधता में कमी आ सकती है जिससे उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता घट जाती है. जिससे मधुमक्खियों मेंउत्पादन क्षमता कम हो जाती है. जबकि, कृत्रिम गर्भाधान तकनीक से उच्च गुणवत्ता वाली रानी मधुमक्खियां तैयार की जा सकती हैं और इस तकनीक से पैदा हुई मधुमक्खियों में अधिक शहद उत्पादन और रोग प्रतिरोधक क्षमता वाले गुण विकसित होते हैं.
अजीत कुमार ने मात्र 16 वर्ष की उम्र में पांच बॉक्स से मधुमक्खी पालन की शुरुआत की थी और आज वे लगभग 2000 बॉक्स तक पहुंचा चुके हैं. कोरोना महामारी के दौरान 2021 में उनके उत्पादन में गिरावट आई, जिसके कारण उन्हें नई तकनीक की खोज करने की प्रेरणा मिली. उन्होंने ऑनलाइन माध्यम से अमेरिका और चीन के मधुमक्खी पालकों से संपर्क कर प्रशिक्षण प्राप्त किया और 2022 में भारत में पहले कृत्रिम रानी गर्भाधान लाइव की स्थापना की. उन्होंने बताया कि एक बॉक्स से 50 किलो तक शहद का उत्पादन होता है. हर साल लगभग 200 टन शहद का उत्पादन कर रहे हैं, जिससे उन्हें लाखों रुपये की आमदनी हो रही है. उनके इस नवाचार ने कई अन्य लोगों को भी रोजगार प्रदान किया है. वे विभिन्न फ्लेवरों में शहद का उत्पादन करते हैं, जिसमें लीची, शीशम, नीम, बबूल और तुलसी जैसे फ्लेवर शामिल हैं.
अजीत कुमार को उनके इस उत्कृष्ट कार्य के लिए उत्तर प्रदेश के राज्यपाल अन्नदीबेन पटेलन ने सम्मानित किया है. राज्यपाल ने अजीत कुमार को राजभवन में बुलाकर इस तकनीक के बारे में विस्तार से जानकारी ली. अजीत कुमार ने बताया कि अगर सरकार और अन्य कृषि संस्थान इस तकनीक को बढ़ावा देते हैं, तो भारत का मधु उत्पादन वर्तमान 62 हजार टन से बढ़कर चीन के 4 लाख 58 हजार टन के बराबर हो सकता है.अजीत कुमार का कहना था कि भारत सरकार इस तकनीक को अपनाती है और इसे मधुमक्खी पालकों तक पहुंचाती है, तो यह न केवल मधु उत्पादन में वृद्धि का कारक बनेगी. बल्कि किसानों की आर्थिक स्थिति में भी सुधार होगा. उच्च गुणवत्ता वाले मधु की मांग अंतरराष्ट्रीय बाजार में बढ़ेगी, जिससे निर्यात के अवसर भी बढ़ेंगे. इससे भारत आने वाले समय में मधु उत्पादन में अग्रणी देश बन सकता है और मधुमक्खी पालन को एक स्थायी और लाभकारी व्यवसाय के रूप में स्थापित किया जा सकेगा.
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