केंद्र सरकार के द्वारा जैविक खेती और प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है. उत्तर प्रदेश में नमामि गंगे योजना के तहत 27 जिलों के दोनों किनारों पर 10 किलोमीटर के दायरे में जैविक खेती को प्रोत्साहन देने के लिए योजना 2019-20 में शुरू की गई थी, जिसका उद्देश्य रासायनिक खादों और जहरीली कीटनाशक की जगह उपज बढ़ाने और फसलों के संरक्षण के लिए पूरी तरीके से जैविक उत्पादों का प्रयोग सुनिश्चित करना है, जिससे लीचिंग रिसाव के जरिए रासायनिक खाद व कीटनाशक का जहर गंगा में घुल न सके.
शुरुआत में इस योजना का खूब तेजी से प्रचार-प्रसार किया गया. इसके लिए उत्तर प्रदेश में इस योजना के तहत 3309 क्लस्टर में 63080 हेक्टेयर क्षेत्रफल जैविक खेती का लक्ष्य निर्धारित किया गया. लेकिन, प्राकृतिक खेती के आगे अब उत्तर प्रदेश में जैविक खेती पीछे रह गई है. उत्तर प्रदेश में इस योजना को 2 सालों के इंतजार के बाद अब जाकर 55 करोड़ का बजट मिला है.
उत्तर प्रदेश के गंगा के मैदानी इलाके को दुनिया का सबसे उर्वरक इलाका माना जाता है. इसी के चलते जैविक खेती के लिए नमामि गंगे के तहत उत्तर प्रदेश में 27 जनपद को चुना गया. चुने हुए जनपदों में गंगा के किनारे के 10 किलोमीटर के दायरे में जैविक खेती को बढ़ावा देना है. हर साल आने वाली बाढ़ के कारण गंगा के किनारे का 10 किलोमीटर का दायरा पूरी तरीके से उपजाऊ रहता है. इसलिए किस्त क्षेत्र में जैविक खेती की सबसे ज्यादा संभावना भी है.
2019-20 से शुरू हुई नमामि गंगे के तहत जैविक खेती को बढ़ावा देने योजना पर काम तो तेजी से शुरू हुआ. 2 सालों तक इस योजना के लिए बजट की कोई कमी नहीं थी. लेकिन 2021 से लेकर 2022 तक योजना में बजट का सूखा रहा. अब 2 साल बाद नमामि गंगे योजना के लिए केंद्र सरकार से 33 करोड़ का और प्रदेश सरकार से 22 करोड़ का बजट मिला है.
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गंगा नदी के दोनों तटों पर हर साल बारिश के मौसम में बाढ़ का पानी काफी दूर तक फैला रहता हैं. इस वजह से दोनों किनारों पर 10 किलोमीटर तक यह क्षेत्र काफी उर्वरक हो जाता है. इसीलिए उत्तर प्रदेश में गंगा किनारे के 27 जनपदों को नमामि गंगे परियोजना के लिए चुना गया. सरकार के द्वारा गंगा किनारे के क्षेत्र में रासायनिक उर्वरक की जगह जैविक तरीके से खेती को बढ़ाया जाए जिससे गंगा में प्रदूषण कम होगा और खेती करने वाले किसानों की फसल लागत में कमी आएगी जिससे उनकी आय में इजाफा होगा.
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