बीमाधड़ी: प्राकृतिक आपदाओं से फसलों को होने वाले नुकसान की किसानों को आर्थिक भरपाई के लिए पीएम फसल बीमा योजना शुरू किया गया था.इसका फायदा कई किसान उठा भी रहे हैं, लेकिन कई किसान फसल बीमा कंपनियों के मकड़जाल में उलझे हुए हैं. फसल बीमा कंपनियों का ये मकड़जाल है ऐसा है कि किसानों बीमा का प्रीमियम तो चुकाते हैं, लेकिन मुआवजा के क्लेम तक किसानों को बीमा कंपनियां कोई दस्तावेज नहीं देती हैं. ये शिकायतें फसल बीमा कंपनियों के मकड़जाल में उलझे किसान करते आ रहे हैं. किसान तक की सीरीज बीमाधड़ी की इस कड़ी में बीमा कंपनियों की बीमा कंपनियों से दस्तावेज के लिए संघर्ष करने वाले किसानों पर रिपोर्ट...
महाराष्ट्र के हिंगोली जिले का गांव है ताकतोड़ा. गांव के ज्यादातर किसान सोयाबीन की खेती करते हैं. 2022 में भी सभी किसानों ने सोयाबीन बोई थी, लेकिन सितम्बर-अक्टूबर में बारिश के चलते फसल खराब हो गई. गांव के ही किसान नामदेव ने किसान तक से बातचीत में बताया कि हमारे अपने आंकलन के मुताबिक करीब 80 फीसद फसल खराब हो गई थी. फसल का सर्वे भी हुआ था. बीमा कंपनी तो नहीं आई, लेकिन कृषि विभाग ने अकेले सर्वे किया था. लेकिन सर्वे रिपोर्ट की कॉपी हमे कभी नहीं दी गई. सर्वे रिपोर्ट की कॉपी हासिल करने के लिए ही 23 दिसम्बर 2022 को करीब पांच हजार किसानों ने एक मोर्चा निकाला था. संबंधित विभागों के दफ्तर भी गए, लेकिन बावजूद इस सब के हमे सर्वे रिपोर्ट की कॉपी नहीं दी गई. इतना ही नहीं जब बीमा की रकम भी मिली तो किसी के खाते में 200 रुपये आए तो किसी के खाते में 1500 रुपये. यहां तक की कुछ किसान के बैंक खातों में तो 13 और 15 रुपये तक आए थे.
राजस्थान के टोंक जिले में डोडवाड़ी गांव के रहने वाले किसान गोपीलाल जाट ने खरीफ 2020 और 2021 के मुआवजे के लिए अब तक भटक रहे हैं. दोनों साल अधिक बरसात के कारण गोपीलाल की पूरी फसल खराब हो गई थी. गोपीलाल कहते हैं कि फसल खराब होने के 72 घंटे के अंदर ही उन्होंने एचडीएफसी इरगो कंपनी के टोलफ्री नंबर पर सूचना दे दी थी. इसके बाद ना तो बीमा कंपनी और ना ही सरकारी नुमाइंदा सर्वे के लिए आया. सर्वे रिपोर्ट मांगी तो वो भी नहीं मिली. उन्होंने टोंक में कृषि विभाग, बीमा कंपनी के आधिकारिक लोगों तक शिकायत पहुंचाई.
सुनवाई नहीं हुई तो कई बार जयपुर में कृषि आयुक्त से मिला. तब जाकर इसी साल 31 मार्च को एक पत्र एचडीएफसी इरगो बीमा कंपनी की ओर से जारी हुआ है. ये पत्र भी मुझे कुछ दिन पहले मिला. टोंक में बीमा कंपनी के लोगों के लिए लिखा गया है.जिसमें लिखा है कि 2020 में तो तिल, उड़द और मूंगफली के लिए बीमा किया है, लेकिन 2021 में किसान गोपीलाल जाट यानी मैंने कोई बीमा नहीं कराया. गोपीलाल कहते हैं कि इसी के चलते मैंने अब फसल खराबे की सूचना देना ही छोड़ दिया. हालांकि मेरा हर साल प्रीमियम कट रहा है. लेकिन जितनी भाग-दौड़ और खर्चा बीमा की राशि लेने में हो जाता है. उतना तो बीमा कंपनी से फसल का बीमा मिल ही नहीं पाता.
जींद हरियाणा के रहने वाले किसान सूरजमल की साल 2017 में कपास की फसल खराब हो गई थी. तीन एकड़ जमीन पर फसल लगी हुई थी. बारिश के चलते खराब हुई फसल का सर्वे करने के लिए बीमा कंपनी और कृषि विभाग ने मिलकर खेत का सर्वे किया. रिपोर्ट के मुताबिक दोनों ने माना कि किसान सूरजमल की 100 फीसद फसल पूरी तरह से खराब हो गई है. मौके पर ही सर्वे रिपोर्ट तैयार की गई. बीमा कंपनी और कृषि विभाग के साथ ही किसान सूरजमल ने भी सर्वे रिपोर्ट पर साइन किए. कई बार मांगने के बाद भी दोनों में से किसी ने भी किसान को सर्वे रिपोर्ट की कॉपी नहीं दी. जब किसान को बीमा कंपनी ने मुआवजा देने से इंकार कर दिया तो किसान कोर्ट जाने की तैयारी करने लगा, लेकिन कोर्ट के लिए सर्वे रिपोर्ट की कॉपी बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण थी. रिपोर्ट की कॉपी लेने के लिए किसान ने आरटीआई के तहत आवेदन किया. फिर भी सर्वे रिपोर्ट की एक कॉपी जुटाने के लिए पीड़ित किसान को एक साल से ज्यादा का वक्त लग गया.
हाल के कुछ दिनों में सोनीपत में जोरदार बारिश हुई और ओले भी गिरे थे. मोहाना गांव भी इसकी चपेट में आ गया था. नतीजा यह हुआ कि दर्जनों किसानों की फसल पूरी तरह से चौपट हो गई. यह किसानों ने आनन-फानन में नियमानुसार तय वक्त में फसल खराब होने की सूचना टोल फ्री नंबर पर दे दी. अच्छी बात यह रही कि वक्त रहते बीमा कंपनी और कृषि विभाग की टीम खराब फसल का सर्वे करने के लिए पहुंच गईं. टीम ने सर्वे भी कर लिया.
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सर्वे करने के बाद पीड़ित किसानों को बुलाकर उनके साइन भी लिए जाने लगे. नियम है कि सर्वे रिपोर्ट पर बीमा कंपनी के सर्वेयर, कृषि विभाग के एक अधिकारी और पीड़ित किसान के साइन होंगे. लेकिन यह क्या, जिस सर्वे रिपोर्ट पर किसानों के साइन लिए जा रहे थे वो तो सिर्फ एक कोरा कागज था.
किसानों का आरोप है कि उस वक्त तो बीमा कंपनी और कृषि विभाग ने किसी तरह किसानों से सादा कागज पर ही साइन ले लिए. लेकिन पीड़ित किसानों को यह तरीका कहीं से भी ठीक नहीं लगा. कुछ दिन बीतने के बाद मोहाना गांव के दर्जनभर से ज्यादा किसान सोनीपत डीसी (प्रशासन) के यहां गुहार लगाने पहुंच गए.
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