केले के रेशे से बनाए जा रहे कई उत्‍पाद, आजीव‍िका मिशन से मह‍िलाओं को मिला रोजगार

केले के रेशे से बनाए जा रहे कई उत्‍पाद, आजीव‍िका मिशन से मह‍िलाओं को मिला रोजगार

मध्‍य प्रदेश के बुरहानपुर जिले में एक जिला-एक उत्‍पाद में शामिल केले को फल के रूप में बेचने के साथ ही इसके पेड़ के उपयोग को भी बढ़ावा दिया जा रहा है. यहां राज्‍य ग्रामीण आजीव‍िका म‍िशन के तहत महिलाएं केले के तने के रेशों से कई उत्‍पाद बना रहीं है, जिन्‍हें बाजार मेंं बेचा जा रहा है.

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केले के रेशे से बनाए जा रहे कई उत्‍पाद, आजीव‍िका मिशन से मह‍िलाओं को मिला रोजगारकेले के रेशे से चटाई बनाते हुए महिलाएं.

केंद्र सरकार ने ‘एक जिला-एक उत्‍पाद’ (ODOP) को बढ़ावा देने के लिए अलग-अलग जिलों में उत्‍पाद घोषित किए हैं. इससे हर जिले के एक उत्‍पाद को अलग पहचान दिलाने और वहां इससे रोजगार पैदा करने का काम किया जा रहा है. ऐसे ही मध्‍य प्रदेश का एक ऐतिहासिक जिला बुरहानपुर केले के लिए देशभर में प्रस‍िद्ध है. सरकार ने केले को यहां ODOP घोषित किया है. केला यहां की प्रमुख फसल है, जिसका रकबा 25 हजार हेक्‍टेयर से जयादा है. यहां 18 हजार से ज्‍यादा किसान केले की खेती करते हैं. यहां उगने वाला पोषक तत्वों से भरपूर केला विभिन्‍न राज्‍यों/बड़े शहरों में जाता है.

आजीविका मिशन से मह‍िलाओं को मिल रहा मौका

"एक जिला-एक उत्पाद" में शामिल होने के बाद जिले में केला फसल के तने के रेशे से विभ‍िन्‍न नए उत्‍पाद बनाए जा रहे हैं. इस काम को आगे बढ़ाने और सफल बनाने के लिए जिला प्रशासन लगातार काम कर रहा है. इसमें आजीविका मिशन एक बड़ी भूमिका निभा रहा है. आजीव‍िका मिशन के तहत महिलाओं के हुनर को बढ़ावा दिया जा रहा है. राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन इन महिलाओं को अपना हुनर निखारने और रोजगार के अवसर दे रहा है. इससे वे आर्थ‍िक रूप से सशक्‍त होंगी.

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ये उत्पाद बना रहीं महिलाएं

जिले में केले के तने के रेशों से विभिन्न उत्पाद बनाए जा रहे हैं. स्व- सहायता समूह की महिलाओं को इस काम के लिए तकनीकी मार्गदर्शन देने के साथ ट्रेनिंग भी दी जाती है. वे केला तना के रेशे से पर्स, टोकरियां, झाडू़, फाईल फोल्डर, पेन स्टैण्ड, झूमर, तोरण, टोपियां, की-रिंग (Key-Ring) जैसे प्रोडक्‍ट बना रही हैं. इनकी बिक्री से उनकी आर्थि‍क मदद मिल रही है. वहीं, सामुदायिक भवन दर्यापुर में महिलाएं केले के तने के रेशे से चटाई बना रही हैं. चटाई की बुनाई के लिए तमिलनाडु़ से मंगाई गई ‘विविंग मशीन’ का इस्‍तेमाल किया जा रहा है. 

मशीन से बुनी जा रही चटाई

इस काम को करने वाली स्‍वयं सहायता समूह की महिलाओं ने बताया कि एक मीटर की चटाई बनाने में 2 घंटे लगते हैं, जिससे उन्‍हें 200 रुपये की कमाई होती है. बाजार में जैसी मांग होती है, उसके अनुसार चटाई बनाने की संख्या घटती-बढ़ती है. मह‍िलाओं ने बताया कि विविंग मशीन से चटाई बनाने में काफी समय बचता है और चटाई की फिनिशिंग भी अच्छी आती है. इसके अलावा जिले में समूह की महिलाओं को केले के तने से फाइबर निकालने के लिए फाइबर एक्सट्रेक्टर मशीनें दी गईं हैं. मशीन की मदद से तने से रेशा बहुत आसानी के साथ निकलता है.

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