कर्मचारियों को एश्योर्ड पेंशन मिल सकती है तो किसानों को एमएसपी की गारंटी क्यों नहीं, कृष‍ि व‍िशेषज्ञ ने पूछे सवाल

कर्मचारियों को एश्योर्ड पेंशन मिल सकती है तो किसानों को एमएसपी की गारंटी क्यों नहीं, कृष‍ि व‍िशेषज्ञ ने पूछे सवाल

कर्मचार‍ियों के ल‍िए यूनिफाइड पेंशन स्कीम (यूपीएस) की शुरुआत करने के बाद जाने-माने कृष‍ि अर्थशास्त्री देविंदर शर्मा ने सरकार से कुछ कड़वे सवाल पूछे हैं. उन्होंने कहा क‍ि कर्मचारियों ने बाजार से जुड़ी पेंशन को अस्वीकार कर दिया तो किसान भी तो यही कह रहे हैं कि बाजार से जुड़ी कृषि उपज की कीमतों से उनको घाटा होता है? 

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कर्मचारियों को एश्योर्ड पेंशन मिल सकती है तो किसानों को एमएसपी की गारंटी क्यों नहीं, कृष‍ि व‍िशेषज्ञ ने पूछे सवालकर्मचारी पेंशन के बहाने देविंदर शर्मा ने क‍िसानों के ल‍िए कहीं बड़ी बात.

स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के अनुसार फसलों की लागत की गणना और न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी की गारंटी को लेकर किसान लंबे समय से आंदोलन कर रहे हैं. लेकिन, सरकार उनकी आवाज सुनने को तैयार नहीं दिख रही है. सरकार समर्थक अर्थशास्त्री गारंटी की मांग को अर्थव्यवस्था के लिए खतरा बता रहे हैं. दूसरी ओर कर्मचारियों को वेतन आयोग की सिफारिशों के अनुसार न सिर्फ सैलरी मिल रही है बल्कि अब सरकार ने उनकी पेंशन वाली मांग भी मान ली है. अब कर्मचारी पेंशन के बहाने इस मुद्दे को लेकर कृषि अर्थशास्त्री देविंदर शर्मा ने सरकार से कुछ कड़वे सवाल पूछे हैं. उन्होंने कहा कि अगर कर्मचारियों को पेंशन की गारंटी मिल सकती है तो किसानों को एमएसपी की गारंटी क्यों नहीं? सरकार ने 24 अगस्त को यूनिफाइड पेंशन स्कीम (यूपीएस) की शुरुआत की है, ज‍िसमें एश्योर्ड पेंशन का प्रावधान है.

शर्मा ने कहा कि आख‍िरकार, कर्मचारियों ने बाजार से जुड़ी पेंशन को अस्वीकार कर दिया तो किसान भी तो यही कह रहे हैं कि बाजार से जुड़ी कृषि उपज की कीमतों से उनको घाटा होता है? अगर मार्केट-लिंक्ड पेंशन कर्मचारियों को स्वीकार नहीं है तो मार्केट-लिंक्ड फसलों का दाम किसानों को कैसे स्वीकार होगा. अगर कर्मचार‍ियों को एश्योर्ड सैलरी और पेंशन है तो किसानों को उनकी फसलों का एश्योर्ड प्राइस क्यों नहीं? 

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क‍िसानों के साथ ऐसा व्यवहार क्यों? 

अगर मार्केट-लिंक्ड फसलों का दाम इतना ही ठीक है तो क्यों नहीं सचिवों और ऐसी सलाह देने वाले अर्थशास्त्रियों की सैलरी मार्केट-लिंक्ड कर दी जाती? अगर कर्मचारियों को मार्केट-लिंक्ड पेंशन से नुकसान है तो इसका मतलब साफ है कि बाजार से जुड़ी कृषि उपज की कीमतें भी गलत हैं. उससे क‍िसानों को नुकसान होगा. क्या इतनी सी बात अर्थशास्त्रियों को समझ नहीं आती? क‍िसानों के ल‍िए दोहरा मानदंड क्यों? 

सबका साथ सबका विकास का नारा

शर्मा ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सबका साथ सबका विकास का नारा दिया है. इस नारे में किसानों को भी शामिल करना होगा. किसान सबका विकास से बाहर क्यों हैं? किसान फसलों का दाम मांग रहा है, खैरात नहीं. अगर फसलों का सही दाम नहीं मिलेगा तो खेती को नुकसान होगा, किसान पीछे छूट जाएंगे. जिस दिन साठ करोड़ किसानो के हाथ में उनकी फसलों का सही दाम म‍िलने लगेगा उस द‍िन जीडीपी को रॉकेट डोज म‍िल जाएगी. शर्मा का कहना है क‍ि कुछ लोग यह भ्रम फैलाने की कोश‍िश कर रहे हैं क‍ि एमएसपी से महंगाई बढ़ेगी. जबक‍ि एमएसपी तय करते वक्त महंगाई के फैक्टर का भी ध्यान रखा जाता है. एमएसपी से कम दाम म‍िलने का साफ मतलब क‍िसानों को घाटा होना है. 

एंटी फार्मर माइंडसेट से खतरा 

कृषि अर्थशास्त्री शर्मा ने कहा कि जब सातवां वेतन आयोग लागू हुआ था तब कहा गया था कि यह इकोनॉमी के लिए बूस्टर डोज का काम करेगा, लेकिन जब किसानों की फसलों का सही दाम देने की बात होती है तो कुछ लोग उसे अर्थव्यवस्था के लिए खतरा बताने लगते हैं. इस दोहरे मानदंड और माइंडसेट से खेती को सबसे बड़ा खतरा है. जब 7वें वेतन आयोग को लागू किया गया था तब सरकार को सालाना करीब 4.8 लाख करोड़ रुपये अतिरिक्त खर्च करने पड़े थे. जब कर्मचारियों पर इतना अतिरिक्त खर्च हो सकता है तो क्या सरकार किसानों पर 1.5 लाख करोड़ रुपये सालाना अतिरिक्त खर्च करके उन्हें एमएसपी की गारंटी नहीं दे सकती? अभी सरकार एमएसपी पर मुश्क‍िल से सालाना 2.5 से 2.75 लाख करोड़ रुपये ही खर्च करती है. 

दाम से ही बनेगा काम 

शर्मा ने कहा क‍ि ज‍िन फसलों का क‍िसानों को सही दाम नहीं म‍िलेगा उन्हें वो छोड़ते जाएंगे. एक र‍िपोर्ट आई है ज‍िसमें बताया गया है क‍ि 2016-17 में चने का एमएसपी 14 फीसदी बढ़ा तो 33 फीसदी उत्पादन बढ़ गया. सरसों की फसल के साथ भी यही हुआ. लंबे समय तक इसका एर‍िया 70 लाख हेक्टेयर के आसपास ही रहा है. त‍िलहन की खेती बढ़ाने के म‍िशन फेल हो गए. लेक‍िन जैसे ही कोव‍िड के बाद सरसों का दाम एमएसपी से ऊपर गया तो इसकी खेती बढ़कर 100 लाख हेक्टेयर के पार हो गई. मतलब साफ है क‍ि खाद्य तेलों में आत्मन‍िर्भरता का सपना तभी पूरा होगा जब क‍िसानों को सही दाम म‍िलेगा. बाकी कोई रास्ता नहीं है. 

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