छत्तीसगढ़ में कोरबा का इलाका कोसा फल के उत्पादन के लिए मशहूर है. राज्य के जांजगीर चांपा जिले की ग्रामीण महिलाओं ने स्वयं सहायता समूह (SHG) बनाकर Agroforestry के तहत जंगली पेड़ अर्जुना की खेती के गुर सीख लिए हैं. अब ये महिलाएं अपने स्वयं सहायता समूह के माध्यम से कोसाफल का बड़े पैमाने पर उत्पादन कर न केवल अपने समूह की, बल्कि अपनी आजीविका में भी लगातार वृद्धि कर रही हैं. समूह की महिलाओं के लिए MGNREGA और रेशम विभाग के संयुक्त प्रयासों से रोपे गए 41 हजार अर्जुना के पौधे अब आजीविका के स्थाई साधन बन चुके हैं. नतीजतन, इस समूह की महिलाएं कोसाफल का उत्पादन करके सालाना 70 से 75 हजार रुपए की आमदनी कर रही हैं.
Tribal State छत्तीसगढ़ में जांजगीर चांपा जिले के बुंदेला गांव की महिलाओं ने अपनी मजबूत इच्छा शक्ति के बलबूते पिछले 5 साल में आत्मनिर्भर बनने की मिसाल कायम की है. इन महिलाओं ने SHG बनाकर जंगल में उगने वाले कोसा फल काे अपनी आजीविका का स्थाई साधन बना लिया है.
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इस समूह को आत्मनिर्भर बनाने में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGA) और रेशम विभाग ने तकनीकी मदद की. इनकी मदद से महिलाओं ने अर्जुना के 41 हजार पौधे लगाकर अपने गांव की बेकार पड़ी सरकारी जमीन को छोटे से जंगल में तब्दील कर दिया है. अर्जुना को स्थानीय भाषा में कौहा भी कहा जाता है, जिससे कोसा फल प्राप्त होता है. इस फल के रेशे से ही कोसा का कपड़ा बनता है. यह कपड़ा महंगी कीमत पर बाजार में बिकता है.
छत्तीसगढ़ सरकार की तरफ से बताया गया कि बुंदेला गांव में लगभग 10 हेक्टेयर सरकारी जमीन, दशकों से अनुपयोगी पड़ी थी. इस पर अराजक तत्व धीरे धीरे Illegal Encroachment भी कर रहे थे. रेशम विभाग ने 2018 में ग्राम पंचायत के सहयोग से इस जमीन को कब्जा मुक्त कराकर मनरेगा के तहत इस जमीन पर समूह की महिलाओं को अर्जुना के 41 हजार पौधे लगवाने में Financial and Technical Help की.
इस दौरान 4 साल की अवधि में सरकार द्वारा स्वीकृत 14.188 लाख रुपये से इस जमीन पर लगे पौधों का पोषण, जल संरक्षण एवं जल संचय के काम समूह की महिलाओं के द्वारा किए गए. महज 5 साल में गांव की 10 हेक्टेयर अनुपयुक्त जमीन पर अर्जुना का हरा भरा जंगल तैयार गया है.
पौधरोपण के काम में मनरेगा के माध्यम से Job Card धारक परिवारों ने काम करते हुए 918 मानव दिवस का सीधा रोजगार प्राप्त किया. साथ ही Silk Department के तकनीकी मार्गदर्शन में कृषि वानिकी के गुर भी सीखे. पहले साल 40 हजार पौधे लगाने के बाद अगले सालाें में नष्ट होने पर 1 हजार पौधों से भरपाई की गई.
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समूह के संयोजक मनोज साहू ने बताया कि पिछले 4 चार सालों में अर्जुना के पेड़ बड़े होने के बाद इनमें कोसाफल का उत्पादन शुरू हो गया है. कोसाफल के उत्पादन का काम गांव की महिलाओं ने 'कोसा कृमिपालन स्व-सहायता समूह' बनाकर अपने हाथों में ले लिया है.
इसके लिए रेशम विभाग द्वारा समूह की महिलाओं को प्रशिक्षण नियमित अंतराल पर तकनीकी मार्गदर्शन भी दिया गया. इन 4 सालों में इस मुहिम के तहत मनरेगा के श्रमिकों को 3 हजार 429 मानव दिवस का रोजगार सृजित भी हुआ. उन्होंने बताया कि समूह की महिलाओं को अब इस काम से खेती किसानी से होने वाली आय से इतर अतिरिक्त आमदनी भी होने लगी है. साथ ही इससे गांव के युवाओं और महिलाओं गको रोजगार भी मिल रहा है.
समूह की संचालक अन्नपूर्णा साहू ने बताया कि कोसाफल की फलत के रूप में इस साल 25 हजार कोसाफल के उत्पादन की संभावना है. जिसे Local Market के अलावा चांपा में कोसा कपड़ा का व्यवसाय करने वाले कारोबारियों को बेचने की तैयारी कर ली गई है. इस बीच कोसाफल के शुरुआती उत्पादन से ही समूह की महिलाओं को 70 से 75 हजार रुपये की आमदानी होने लगी है. अब आने वाले समय में इन महिलाओं की आय में इजाफा होना तय है.
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