'बंटोगे तो लुटोगे': डल्लेवाल के अनशन के बीच टिकैत ने किसानों को दिया नया नारा

'बंटोगे तो लुटोगे': डल्लेवाल के अनशन के बीच टिकैत ने किसानों को दिया नया नारा

टिकैत ने कहा कि किसानों की मांगें पुरानी हैं, क्योंकि वे रद्द किए गए कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन के दौरान भी थीं, जिसमें एमएसपी को कानूनी गारंटी और स्वामीनाथन समिति की रिपोर्ट को लागू करना शामिल है. जब उनसे पूछा गया कि हरियाणा सरकार कहती है कि वे 24 फसलों पर एमएसपी दे रहे हैं, तो टिकैत ने आरोप लगाया, "बीजेपी सरकार झूठ बोलने में माहिर है".

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'बंटोगे तो लुटोगे': डल्लेवाल के अनशन के बीच टिकैत ने किसानों को दिया नया नाराराकेश टिकैत (फाइल फोटो)

पंजाब के किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल का आमरण अनशन सोमवार को 21वें दिन में चला गया. इस बीच संयुक्त किसान मोर्चा के नेता राकेश टिकैत ने सोमवार को फिर से किसानों के समूहों से एकजुट होने का आह्वान करते हुए कहा, "बंटोगे तो लुटोगे". टिकैत ने डल्लेवाल के स्वास्थ्य को लेकर भी चिंता जाहिर की. 

70 साल के कैंसर रोगी डल्लेवाल 26 नवंबर से पंजाब और हरियाणा के बीच खनौरी बॉर्डर पर आमरण अनशन पर हैं, ताकि केंद्र पर आंदोलनकारी किसानों की मांगों को मानने का दबाव बनाया जा सके. इसमें फसलों के लिए एमएसपी की कानूनी गारंटी भी शामिल है. 

डल्लेवाल के समर्थन में ट्रैक्टर मार्च

सोमवार को अंबाला, सोनीपत और हिसार सहित हरियाणा की कुछ जगहों पर किसानों ने डल्लेवाल के विरोध प्रदर्शन के समर्थन में ट्रैक्टर मार्च निकाला और उनके स्वास्थ्य को लेकर चिंता जाहिर की. शंभू और खनौरी में चल रहे आंदोलन को देखते हुए पंजाब के किसान नेता सरवन सिंह पंधेर ने शनिवार को कहा था कि 16 दिसंबर को पंजाब को छोड़कर अन्य राज्यों में ट्रैक्टर मार्च निकाला जाएगा, जबकि 18 दिसंबर को पंजाब में दोपहर 12 से 3 बजे तक 'रेल रोको' विरोध प्रदर्शन किया जाएगा. 

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इस बीच, पिछले हफ्ते खनौरी में डल्लेवाल से मुलाकात करने वाले टिकैत ने सोमवार को करनाल में पत्रकारों से बात करते हुए जोर देकर कहा कि किसान संगठनों को अपनी मांगों के समर्थन में एकजुट लड़ाई के लिए "एक साथ रहना" होगा, उन्होंने कहा "बटोगे तो लुटोगे, सबको इक्के-दुक्के रहना पड़ेगा".

पंधेर ने रविवार को कहा कि उन्होंने किसान मोर्चा (एसकेएम) को पत्र लिखकर पंजाब-हरियाणा बॉर्डर पर प्रदर्शन कर रहे किसानों एक साथ आने को कहा है. शंभू बॉर्डर पर रविवार को मीडिया को बताते हुए पंधेर ने कहा, ''हमने उन भाइयों को साथ आने को कहा है जो दिल्ली आंदोलन-2 (दिल्ली चलो मार्च) में हिस्सा नहीं ले पाए. हमने कहा कि किसानों और मजदूरों के हित में जो भी मतभेद हैं, उन्हें भूल जाओ." 

टिकैत ने दिया एकजुटता का नारा

पत्र के बारे में पूछे जाने पर, भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता टिकैत ने कहा, "हम पिछले छह से दस महीनों से कह रहे हैं कि सभी को एक साथ बैठकर बात करनी चाहिए". संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) और किसान मजदूर मोर्चा के बैनर तले किसान 'दिल्ली चलो मार्च' की अगुवाई कर रहे हैं और 13 फरवरी से पंजाब और हरियाणा के बीच शंभू और खनौरी बॉर्डर पर डेरा डाले हुए हैं. 

टिकैत ने कहा कि किसानों की मांगें पुरानी हैं, क्योंकि वे रद्द किए गए कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन के दौरान भी थीं, जिसमें एमएसपी को कानूनी गारंटी और स्वामीनाथन समिति की रिपोर्ट को लागू करना शामिल है. जब उनसे पूछा गया कि हरियाणा सरकार कहती है कि वे 24 फसलों पर एमएसपी दे रहे हैं, तो टिकैत ने आरोप लगाया, "बीजेपी सरकार झूठ बोलने में माहिर है".

केंद्र पर निशाना साधते हुए, टिकैत ने आरोप लगाया, "यह सरकार पूंजीपतियों की समर्थक है, वे किसानों को कर्ज में फंसाएंगे और उनकी जमीनें छीन लेंगे". पिछले हफ्ते, जब टिकैत से पूछा गया कि क्या अब रद्द कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन के दौरान एसकेएम का गठन करने वाले सभी संगठनों को एकसाथ हाथ नहीं मिलाना चाहिए, तो उन्होंने कहा था, "हमने एक समिति बनाई है जो समूहों के साथ बात करेगी". उन्होंने कहा था कि भविष्य की कार्रवाई के लिए एक रणनीति तैयार की जाएगी.

केंद्र के खिलाफ विरोध प्रदर्शन

इस बीच, भारतीय किसान नौजवान यूनियन से जुड़े कार्यकर्ताओं ने सोनीपत और पानीपत जिले में ट्रैक्टर मार्च निकाला. उन्होंने कहा कि डल्लेवाल खनौरी में आमरण अनशन पर बैठे हैं, लेकिन केंद्र किसानों की मांगों पर ध्यान नहीं दे रहा है. अंबाला शहर में किसानों ने ट्रैक्टर मार्च निकाला, इस दौरान उन्होंने केंद्र के खिलाफ नारेबाजी की और उसका पुतला फूंका. 

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हिसार और उसके आसपास के इलाकों से बड़ी संख्या में किसान अपने ट्रैक्टर लेकर रामायण टोल प्लाजा पहुंचे और वहां से हांसी के लिए रवाना हुए. यह मार्च एसकेएम (गैर-राजनीतिक) और किसान मजदूर मोर्चा के आह्वान पर निकाला गया. उन्होंने कहा कि केंद्र को फसलों के एमएसपी को कानूनी गारंटी देने की मांग माननी चाहिए और किसानों की अन्य मांगों को भी स्वीकार करना चाहिए.

 

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