साल 2025 की पहली तिमाही में यूरोपीय संघ (EU) में काजू के आयात ने नया रिकॉर्ड बनाया है. इस दौरान कुल 42,850 टन काजू का आयात हुआ, जिसकी कीमत लगभग 273 मिलियन यूरो (करीब 300 मिलियन डॉलर) रही. यह मात्रा में 16% और मूल्य में 42% की बढ़ोतरी को दर्शाता है, जो 2024 की इसी अवधि की तुलना में काफी ज्यादा है.
इस बढ़ते आयात का असर भारत के काजू निर्यात पर भी दिखा, जहाँ 2025 की पहली तिमाही में 8% की मामूली वृद्धि दर्ज की गई. हालांकि, यूरोपीय संघ में वियतनाम सबसे बड़ा काजू आपूर्तिकर्ता बना हुआ है, जिसने कुल आयात का 72% हिस्सा अपने नाम किया.
बीटा ग्रुप के अध्यक्ष जे. राजमोहन पिल्लई के अनुसार, वियतनाम और यूरोपीय संघ के बीच हुए फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) ने वियतनामी निर्यातकों को बड़ा फायदा पहुंचाया है. इस समझौते के तहत काजू की गुठली पर आयात कर को शून्य कर दिया गया है, जिससे वियतनाम अपने काजू को ज्यादा प्रतिस्पर्धी कीमत पर EU बाजार में बेच पा रहा है.
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पिल्लई ने बताया कि अमेरिका द्वारा वियतनाम पर 46% और भारत पर 26% काजू टैरिफ लगाए जाने के कारण काजू व्यापार में बदलाव आ सकता है. इससे निर्यातकों को यूरोपीय संघ, जापान और मिडल ईस्ट जैसे नए बाजारों की तलाश करनी पड़ रही है. अमेरिका अभी भी एक प्रमुख काजू बाजार है, खासकर वियतनाम के लिए, लेकिन टैरिफ के बाद वहां नए निर्यात अनुबंध नहीं हो पा रहे हैं.
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विजयलक्ष्मी कैश्यूज के मैनेजिंग पार्टनर प्रताप नायर का मानना है कि यूरोपीय संघ के कुछ देशों को बेहद उच्च गुणवत्ता वाले काजू की जरूरत होती है, जिसे भारतीय प्रोसेसर ही पूरा कर सकते हैं. वियतनाम में ऐसे कुछ ही प्रोसेसर हैं जो इन मानकों को पूरा कर पाते हैं.
हालांकि, भारत के लिए यह अवसर मिलने के बावजूद, घरेलू मांग की कमी और काजू कर्नेल की बढ़ती कीमतें एक बड़ी चुनौती बनी हुई हैं. इसके चलते विशेषज्ञों की राय बंटी हुई है कि क्या भारत इस स्थिति का पूरा लाभ उठा पाएगा.
कुल मिलाकर, यूरोपीय संघ में काजू की मांग में बढ़ोतरी ने वैश्विक बाजार में हलचल मचा दी है. भारत के पास अपनी गुणवत्ता और प्रोसेसिंग क्षमताओं के दम पर निर्यात बढ़ाने का अच्छा मौका है, लेकिन इसके लिए रणनीतिक फैसलों की जरूरत होगी.
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