खेती के तरीकों में सुधारों, विविधीकरण, कर्ज में राहत और सस्टेनेबल पॉलिसीज की वजह से हरियाणा ने पंजाब को कृषि में पीछे छोड़ दिया है. गौरतलब है कि दोनों ही राज्य उत्तर भारत के प्रमुख कृषि राज्य हैं और विशेषज्ञों की मानें तो दोनों ही राज्यों में एक ऐसा बदलाव चल रहा है जो एकदम शांत तरीके से जारी है. हरियाणा जो पंजाब की तुलना में छोटा राज्य है, वह कृषि सुधारों के साथ लगातार आगे बढ़ रहा है. वहीं हरित क्रांति में देश की अगुवाई करने वाला राज्य वित्तीय तनाव और स्थिर नीतियों का सामना करने को मजबूर है.
संडे गार्डियन की रिपोर्ट के अनुसार किसानों के कर्ज को कम करने और फसल विविधीकरण को प्रोत्साहित करने से लेकर मजबूत मशीनरी वितरण और डायरेक्ट कैश ट्रांसफर (डीबीटी), में हरियाणा साफतौर पर पंजाब से बेहतर प्रदर्शन कर रहा है. अखबार के मुताबिक हरियाणा में करीब 45 फीसदी आबादी खेती में लगी हुई है. यह आबादी 36.46 लाख हेक्टेयर जमीन पर खेती करती है. वहीं पंजाब की 35.5 फीसदी की आबादी 42 लाख हेक्टेयर के बड़े क्षेत्र में कृषि और उससे जुड़ी गतिविधियों में लगी हुई है.
पिछले कुछ वर्षों के आंकड़ों के तुलनात्मक अध्ययन से दोनों राज्यों में कृषि में महत्वपूर्ण बदलाव का पता चलता है. इसमें पंजाब की तुलना में छोटी भूमि होने के बावजूद हरियाणा लीडर बनकर उभरा है. पंजाब में प्रति किसान औसत भूमि जोत 3.62 हेक्टेयर है, जबकि हरियाणा में यह 2.22 हेक्टेयर है, दोनों ही राष्ट्रीय औसत 1.08 हेक्टेयर से अधिक हैं. नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गनाइजेशन के अनुसार साल 2005 में पंजाब के 18.44 लाख किसान परिवारों में से लगभग 65.4 फीसदी कर्ज में थे. जबकि हरियाणा के 19.44 लाख परिवारों में से 53.1 फीसदी कर्ज में थे, दोनों ही मामलों में राष्ट्रीय औसत 48.6 फीसदी से ज्यादा है.
केंद्रीय वित्त मंत्री की तरफ से संसद में साझा किए गए नवीनतम आंकड़ों से पता चलता है कि साल 2024 के अंत तक हरियाणा ने अपने कर्जदार कृषि परिवारों का प्रतिशत घटाकर 48 फीसदी कर दिया था जबकि पंजाब का 54.4 फीसदी ज्यादा रहा. पंजाब में प्रति कृषि परिवार औसत बकाया ऋण बढ़कर 2.03 लाख रुपये हो गया है जो हरियाणा के 1.82 लाख रुपये से अधिक है. दोनों ही राष्ट्रीय औसत 74,121 रुपये से काफी ज्यादा हैं.
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार मुख्य अंतर नीति दृष्टिकोण में है. एक विशेषज्ञ ने बताया, 'हरियाणा ने अपने किसानों को समर्थन देने के लिए बहुस्तरीय योजनाओं को आक्रामक रूप से आगे बढ़ाया है.' 'मेरा पानी मेरी विरासत' पहल के तहत, धान की खेती से दूर जाने वाले किसानों को कम पानी वाली फसलें अपनाने के लिए 7,000 रुपये प्रति एकड़ मिलते हैं. इसके अलावा, 36 ब्लॉकों में भूजल प्रबंधन को बेहतर बनाने के लिए अटल भूजल योजना के तहत 150 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं. हरियाणा ने पराली जलाने की समस्या से भी प्रभावी तरीके से निपटा है.
राज्य में किसान पराली न जलाए इसके लिए प्रति एकड़ 1,000 रुपये, गांठ बनाने के लिए 50 रुपये प्रति क्विंटल और फसल रिज्यूडल मैनेजमेंट (सीआरएम) मशीनरी पर 80 फीसदी तक सब्सिडी देता है. साल 2018 से, हरियाणा ने सीआरएम पर 3,333 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किए हैं. कई मशीनीकरण योजनाओं के तहत लगभग 3 लाख मशीनें वितरित की हैं. इसके अलावा, सरचार्ज माफी योजना-2019 के तहत 1.11 लाख किसानों को 23.80 करोड़ रुपये मिले.
हरियाणा के किसानों को प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत फसल बीमा तक विस्तृत पहुंच का भी लाभ मिलता है. वहीं, पंजाब चावल और गेहूं की केंद्र सरकार की एमएसपी खरीद पर बहुत अधिक निर्भर है, जो अभी भी खरीफ के 86.8 फीसदी और रबी फसल क्षेत्रों के 97.9 फीसदी से ज्यादा के लिए जिम्मेदार है.
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