हरियाणा में विधानसभा चुनाव से पहले राज्य सरकार ने नाराज किसानों और आढ़तियों को रिझाने की कोशिश शुरू कर दी है. पिछले करीब छह महीने से चल रहे किसान आंदोलन से हो रहे डैमेज को कंट्रोल करने के रास्ते तलाशे जा रहे है. इसी कड़ी में राज्य सरकार एमएसपी में नोटिफाइड सभी फसलों की सरकारी खरीद करने का वादा कर दिया है तो दूसरी ओर अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही आबियाना प्रथा को भी बंद करने का फैसला लिया है. आबियाना यानी नहरी पानी से होने वाली सिंचाई के लिए किसानों पर लगाया जाने वाला शुल्क. राज्य में अब तक किसानों पर 133.55 करोड़ रुपये का आबियाना बकाया था, जिसे सरकार ने माफ करके किसानों का दिल जीतने की कोशिश की है. हालांकि, आंदोलकारी किसानों का कहना है कि इस लीपापोती से काम नहीं चलेगा.
बहरहाल, राज्य सरकार ने कैबिनेट की बैठक में इस फैसले को मंजूरी दे दी है. मंत्रिमंडल के निर्णय के अनुसार, 1 अप्रैल, 2024 से अब हरियाणा में किसानों से आबियाना नहीं लिया जाएगा. इससे किसानों को हर साल 54 करोड़ रुपये की राहत मिलेगी. इसका हरियाणा के 4,299 गांवों के किसानों को लाभ मिलेगा. राज्य में कुल 7287 गांव हैं. जिन किसानों के पास 1 अप्रैल, 2024 के बाद आबियाना जमा कराने के जो नोटिस गए हैं, वो नोटिस भी वापस होंगे. अगर 1 अप्रैल, 2024 के बाद किसी किसान ने आबियाना जमा करवा दिया है तो सरकार वह रकम वापस करेगी.
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हरियाणा सरकार से कमीशन यानी आढ़त के मुद्दे पर आढ़ती भी नाराज रहे हैं. अब इन्हें भी मनाने की कोशिश हो रही है. क्योंकि माना जाता है कि ये लोग किसान आंदोलन को आर्थिक तौर पर सहयोग कर रहे हैं. मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने मंगलवार को आढ़तियों के लिए कई घोषणाएं की हैं. उन्होंने धान की आढ़त को 45.88 रुपये से बढ़ाकर 55.00 रुपये प्रति क्विंटल करने की घोषणा की है.
दावा है कि इस फैसले से लगभग 20 प्रतिशत की वृद्धि होगी, जोकि किसी भी राज्य में नही दी जा रही है. साथ ही, उन्होंने कहा कि गेहूं में शॉर्टेज के कारण आढ़तियों को हो रहे नुक़सान की भरपाई सरकार द्वारा की जाएगी, इसके लिए उन्होंने लगभग 12 करोड़ रुपये का मुआवज़ा देने की घोषणा की.
चंडीगढ़ में सीएम के साथ बैठक में आढ़तियों ने गेहूं में शॉर्टेज का मुद्दा उठाया. आढ़तियों ने बताया कि प्रदेश में वर्ष 1966 से लेकर आज तक किसी भी सरकार ने कभी भी इस कमी की भरपाई नहीं की थी. ये कमी औसत 0.20 प्रतिशत हर साल रहती है. पिछले रबी सीजन की कमी 0.28 प्रतिशत रही है. इस पर सीएम ने कहा कि प्रदेश सरकार 0.08 प्रतिशत की बढ़ी हुई शॉर्टेज के नुकसान की भरपाई करेगी. जिस 12 करोड़ रुपये खर्च होंगे.
उधर, हरियाणा के कृषि मंत्री कंवर पाल ने भी आढ़तियों से बात की. आढ़ती धान और गेहूं के कमीशन में कटौती की वजह से नाराज चल रहे थे. मंत्री ने अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि वो मंडी में बिक्री के लिए आने वाली फसल की प्रक्रिया का सरलीकरण करें, ताकि आढ़तियों और किसानों को किसी प्रकार की परेशानी का सामना न करना पड़े. उन्होंने मंडियों में ली जाने वाली मार्केट फीस समेत अन्य कार्यों में पारदर्शिता बरतने के निर्देश दिए हैं.
चंडीगढ़ स्थित अपने कार्यालय में एक बैठक के दौरान कृषि मंत्री ने यह आदेश दिए हैं. आढ़ती एसोसिएशन के प्रतिनिधियों से उनकी समस्याओं के बारे में जानकारी ली और कहा कि आढ़ती सरकार और किसान के बीच की महत्वपूर्ण कड़ी होता है. इनके माध्यम से जहां किसानों को अपनी फसलों को बेचने में सुविधा होती है, वहीं सरकार को भी अच्छा राजस्व मिलता है.
संयुक्त किसान मोर्चा-अराजनैतिक के नेता अभिमन्यु कोहाड़ का कहना है कि हरियाणा सरकार किसानों को गुमराह कर रही है. सभी 23 फसलों की एमएसपी पर खरीद करने की घोषणा सिर्फ एक राजनीतिक चाल है. हरियाणा सरकार दावा करती रही है कि वो 14 फसलें एमएसपी पर खरीदती है. लेकिन यह दावे भी झूठे निकले हैं, क्योंकि सूबे में न तो किसानों की सरसों एमएसपी पर बिक रही है और न बाजरा. सरकार बताए कि उसने पिछले चार-पांच साल में एमएसपी पर किन 14 फसलों की खरीद की है और उसके बदले किसानों को कितना भुगतान किया है.
कोहाड़ ने कहा कि किसान केंद्र सरकार से पूरे देश के लिए सभी फसलों की एमएसपी की लीगल गारंटी मांग रहे हैं, क्योंकि खरीद का मुद्दा केंद्र सरकार का है. यह किसी एक प्रदेश का मामला नहीं है. एमएसपी की लीगल गारंटी मिलने तक आंदोलन चलता रहेगा. सरकार की इस लीपापोती से किसान अपने ऊपर हुए जुल्मों को नहीं भूलेंगे. एक तरफ सरकार किसान आंदोलन को कुचलने की कोशिश करने वाले पुलिसकर्मियों को वीरता पुरस्कार के नामित कर रही है तो दूसरी ओर किसानों का वोट लेने के लिए उन्हें गुमराह करने वाली घोषणाएं कर रही है. किसान सरकार के झांसे में नहीं आने वाले हैं.
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