MSP पर और अधिक फसलों की खरीद करे सरकार, डल्लेवाल से बात कर अनशन तुड़वाए...MKSS ने उठाई मांग

MSP पर और अधिक फसलों की खरीद करे सरकार, डल्लेवाल से बात कर अनशन तुड़वाए...MKSS ने उठाई मांग

एमकेएसएस ने पत्र में लिखा है, दिल्ली में विरोध करने या अपनी दुर्दशा पर सरकार के साथ बातचीत करने के लिए किसी भी मंच के बिना, किसान हताश करने वाले उपाय अपनाने पर मजबूर हो रहे हैं. किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल, जिनकी उम्र 70 वर्ष के ज्यादा है, एक महीने से आमरण अनशन पर हैं. MKSS उनके बिगड़ते स्वास्थ्य को लेकर बहुत चिंतित है. किसान आंदोलन में सैकड़ों लोग अपनी जान गंवा चुके हैं और हजारों किसान कृषि संकट के कारण आत्महत्या कर चुके हैं. MKSS चाहता है कि सरकार एक और किसान की मौत से पहले ही कार्रवाई करे.

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MSP पर और अधिक फसलें खरीदे सरकार, डल्लेवाल का अनशन तुड़वाए...MKSS ने उठाई मांगकिसान नेता जगजीत सिंह डल्‍लेवाल. (फाइल फोटो)

किसान संगठन MKSS ने एक पत्र लिखकर मांग उठाई है कि केंद्र सरकार कृषि क्षेत्र में लंबे समय से चल रहे संकट को हल करने के लिए किसानों के साथ बात करे. साथ ही किसानों को विश्वास में लेते हुए तत्काल बातचीत कर एक लोक नीति बनाए जिससे किसानों को फायदा हो. इस संगठन ने अपने पत्र में खनौरी बॉर्डर पर अनशन करने वाले किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल का भी मुद्दा उठाया और उनसे बातचीत करने की अपील की.

अपने पत्र में एमकेएसएस ने लिखा है, कई दशकों से कृषि क्षेत्र संकट में है. इसका लक्षण यह है कि एक कृषि परिवार खेती से औसतन सिर्फ रु 4,500 प्रति महीना कमा पाते हैं. इस संकट का समाधान निकालने के लिए राष्ट्रीय किसान आयोग (इसको आम तौर पर स्वामीनाथन समिति के नाम से जाना जाता है) का गठन 20 साल पहले किया गया था. उनके सुझावों को अभी तक पूरे तरीके से क्रियान्वित नहीं किया गया है और हाल ही में किए गए प्रयास, जैसे किसानों की आय दोगुना करना जिसका बहुत प्रचार किया गया, जुमला ही साबित हुए. MKSS का मानना है कि ऐसी परिस्थिति में सरकार का रवैया कृषि संकट और किसान आंदोलन के प्रति निंदनीय है.

दिल्ली में विरोध करने या अपनी दुर्दशा पर सरकार के साथ बातचीत करने के लिए किसी भी मंच के बिना, किसान हताश करने वाले उपाय अपनाने पर मजबूर हो रहे हैं. किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल, जिनकी उम्र 70 वर्ष के ज्यादा है, एक महीने से आमरण अनशन पर हैं. MKSS उनके बिगड़ते स्वास्थ्य को लेकर बहुत चिंतित है. किसान आंदोलन में सैकड़ों लोग अपनी जान गंवा चुके हैं और हजारों किसान कृषि संकट के कारण आत्महत्या कर चुके हैं. MKSS चाहता है कि सरकार एक और किसान की मौत से पहले ही कार्रवाई करे.

विरोध का अधिकार 

तीन कृषि कानून के लाने से पहले ही किसान, सरकार की कृषि नीति के खिलाफ संघर्ष कर रहे थे. पिछले दस साल से मौजूदा सरकार हमारे विरोध करने के मौलिक और संवैधानिक अधिकार को कमजोर करती आ रही है. तीन कृषि कानून का विरोध करते समय किसानों को दिल्ली के अंदर आने नहीं दिया गया. पिछले साल भर में, आंदोलन कर रहे किसान पैदल दिल्ली आना चाहते हैं लेकिन किसानों को पंजाब से हरियाणा के अंदर तक आने नहीं दिया गया है. सरकार का यह गैर-लोकतांत्रिक कार्य आपत्तिजनक है.

कृषि संकट मिल कर दूर करें

कृषि संकट से समाधान के लिए किसान लंबे समय से अपनी उपज के लिए लाभकारी मूल्य और कर्जमाफी की मांग कर रहे हैं. इसके लिए 2018 में बड़ी संख्या में दिल्ली आए थे. इन मांगों पर किसान संगठनों में आम सहमति होने के वाबजूद सरकार के कदम तीन कृषि कानून सरकार के रुप में विपरीत दिशा में थे. उन तीन कानूनों में किसानों को बाजार में सुरक्षा देने के बजाय बाजार पर नियंत्रण कम किया. यह तीन कानून कोविड की तालाबंदी के समय अध्यादेश के रूप में लाए गए.

तीन कृषि कानूनों को वापस लेने के बाद भी, सरकार ने किसानों के साथ परामर्श प्रक्रिया के माध्यम से कृषि संकट को हल करने का वादा पूरा नहीं किया. बल्कि, बिना कोई किसान-प्रतिनिधि के समिति द्वारा, विपरीत दिशा में वापस तीन कृषि कानून कानून अनुसार एक ‘कृषि विपणन पर राष्ट्रीय नीति रूपरेखा’ के मसौदे के माध्यम से लाने का प्रयास कर रही है. MKSS सरकार से आग्रह करता है कि वह कृषि क्षेत्र के लिए नीतियां बनाते समय 2014 की पूर्व-विधायी परामर्श नीति के भावना अनुसार किसानों को विश्वास में लेकर एक सहभागी, परामर्श प्रक्रिया अपनाए.

सरकार को MKSS की सलाह 

MKSS का यह मानना है कि देशवासियों के खाद्य सुरक्षा के लिए सरकार का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर कृषि उत्पाद खरीदना महत्वपूर्ण है. भारतीयों के सार्वभौमिक राशन और पोषण सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए, किसान आंदोलन की मांग अनुसार, MKSS मानता है कि सरकार द्वारा विकेंद्रीकृत तरीके से और अधिक फसलों के लिए MSP पर खरीद किया जाना चाहिए. MKSS सरकार द्वारा ऐसे किसी भी उपाय का विरोध करता है जो पूर्वकथित प्रावधानों को कमजोर करता है या उनके खिलाफ जाता है.

 

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