गोरखपुर सीट पर इस बार दिलचस्प मुकाबला लोकसभा चुनाव के सातवें और अंतिम चरण में 1 जून को जिन सीटों पर वोटिंग होनी है, उसमें सबसे हाई-प्रोफाइल सीटों में से एक गोरखपुर भी शामिल है. गोरखपुर को पूर्वी उत्तर प्रदेश की राजनीति का केंद्र माना जाता है. यहां पर स्थित गोरक्षनाथ पीठ का प्रभाव आधा दर्जन से ज्यादा सीटों के नतीजों पर असर डालता है. इस बार यहां पर मुकाबला काफी दिलचस्प है. इस सीट पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के मौजूदा सांसद और अभिनेता रवि किशन और समाजवादी पार्टी (सपा) की उम्मीदवार और भोजपुरी अभिनेत्री काजल निषाद के बीच सीधा मुकाबला है. चुनावी जानकारों की मानें तो बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) के जावेद सिमनानी को कोई खास असर देखने को नहीं मिल रहा है.
गोरखपुर को बीजेपी का गढ़ कहा जाता है. गोरखपुर लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व सन् 1989 से 2014-17 तक गोरक्षनाथ पीठ के महंतों ने किया है. साल 1989 से 1996 तक महंत अवैद्यनाथ गोरखपुर के सांसद थे. उनके बाद योगी आदित्यनाथ सन् 1998 से 2017 तक पांच बार गोरखपुर के सांसद रहे. फिर उन्होंने जब यूपी के सीएम का पद संभाला तो इसी सीट के सांसद पद से इस्तीफा दे दिया. बीजेपी चार दशकों से इस सीट पर कब्जा जमाए हुए है. जब योगी ने सीट छोड़ी तो साल 2018 में हुए उपचुनाव में बीजेपी बसपा समर्थित सपा उम्मीदवार से हार गई थी. वह जीत ज्यादा समय तक कायम नहीं रह सकी.
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साल 2019 के आम चुनावों में बीजेपी के रवि किशन ने तीन 3 लाख से ज्यादा वोटों के अंतर से जीत हासिल की. साथ ही सपा के राम भुआल निषाद के खिलाफ 60 फीसदी से ज्यादा वोट शेयर भी हासिल किया. भुआल सपा-बसपा गठबंधन के उम्मीदवार के रूप में 35 प्रतिशत वोट मिले. विशेषज्ञों की मानें तो मौजूदा चुनावों में, योगी आदित्यनाथ के प्रतिनिधि होने का दावा करने वाले रवि किशन, सीएम और गोरक्षनाथ पीठ के प्रभाव के अलावा यहां हुए विकास पर भी भरोसा कर रहे हैं.
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वहीं सपा, पिछले कुछ चुनावों से निषाद समुदाय के उम्मीदवार को मैदान में उतार रही है. गोरखपुर वह सीट है जहां इस समुदाय के लोगों की अच्छी खासी संख्या है. ऐसे में पार्टी एक बार फिर जातिगत समीकरणों पर भरोसा जता रही है. विशेषज्ञों के मुताबिक पार्टी न सिर्फ मुस्लिम और यादव वोट बैंकों पर निर्भर है बल्कि गैर-यादव ओबीसी से भी समर्थन मिलने की उम्मीद कर रही है, क्योंकि यहां उनकी अच्छी संख्या है.
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गोरखपुर में, ओबीसी मतदाता सबसे ज्यादा हैं और इनकी संख्या करीब नौ लाख है. ओबीसी में, निषाद आबादी का एक बड़ा हिस्सा हैं. उसके बाद यादव और दलित हैं. ब्राह्मण, ठाकुर, भूमिहार और वैश्य (बनिया) वाली उच्च जातियां कुल आबादी का करीब छह लाख है. हालांकि यहां पर मतदाताओं के लिए विकास का मुद्दा सबसे ऊपर है. मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग मानता है कि शहर में बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है. कुछ लोगों को शिकायतें हो सकती हैं लेकिन जैसे ही 'बाबा' यानी योगी आदित्यनाथ प्रचार करेंगे, वो शिकायतें भी खत्म हो जाएंगी. जनता सब कुछ भूलकर बीजेपी को वोट देगी.
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