बिहार में विधानसभा चुनाव के बीच मिथिलांचल और सीमांचल में मखाना राजनीतिक सुपरफूड बनता जा रहा है. राहुल गांधी से लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक सभी जातीय समीकरणों को किसानी समीकरण से साधने की कोशिश में जुटे हैं. वैसे तो बिहार की राजनीति जहां जातीय समीकरणों के इर्द-गिर्द घूमती रहती है.वहीं, पहली बार ऐसा देखने को मिल रहा है कि मखाना बीते कुछ महीनो में यह राजनीति का सुपर फूड बनकर उभरा है. ऐसे में पीएम नरेंद्र मोदी, राहुल गांधी का मखाना किसानों पर फोकस करना एक दिलचस्प घटनाक्रम बनता जा रहा है.
कटिहार में जहां राहुल गांधी की मखाना किसानों से मुलाकात के भी बिहार की राजनीति में खास मायने हैं. वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिहार से लेकर देश के विभिन्न राज्यों और वैश्विक मंचों पर ब्रांड एंबेसडर के रूप में मखाना को प्रमोट कर इन किसानों के लिए अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं और खुद सुपरफूड का प्रचार कर रहे हैं. वहीं, इस साल फरवरी में महीने में मखाना बोर्ड के गठन और भागलपुर की रैली में साल के 365 में से 300 दिन मखाना खाने की बात.
इसके बाद केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा खेत में मखाना लगाने की बात हो या कांग्रेस पार्टी के नेता राहुल गांधी द्वारा वोटर अधिकार यात्रा के दौरान कटिहार में मखाना किसानों से मिलकर उत्पादन प्रक्रिया और उनकी समस्याओं को जानने का प्रयास हो. यह कहीं न कहीं जातीय समीकरण से हटते हुए किसानों के जरिए वोटरों की घेराबंदी का नया फॉर्मूला बिहार में बनता दिख रहा है.
यह बातें भले ही साधारण लगती हों, लेकिन राजनीति के जानकारों के अनुसार मखाना का स्वाद और मिथिलांचल से लेकर सीमांचल तक मखाना की पहनाए जाने वाली माला विधानसभा चुनाव में सरकार बनाने और जीत का रास्ता तय करने का नया राजनीतिक फॉर्मूला बनता जा रहा है. क्योंकि मखाना की खेती मुख्यरूप से मधुबनी, दरभंगा, सहरसा, अररिया, पूर्णिया, कटिहार, किशनगंज, सुपौल, मधेपुरा और खगड़िया में होती है.
वहीं, विधानसभा चुनाव में मिथिलांचल और सीमांचल की करीब 60 सीटों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर राहुल गांधी की नजरें टिकी हुई हैं. इस बीच, राहुल गांधी ने अपनी यात्रा के दूसरे पायदान में उन्होंने ने सीमांचल के मखाना किसानों को अपनी ओर साधने का प्रयास किया, लेकिन तीसरे चरण की यात्रा मंगलवार से मिथिलांचल में होनी है, वहां पीएम मोदी ने पहले ही मखाना बोर्ड के गठन के साथ अपनी पकड़ मजबूत करने का प्रयास कर चुके हैं.
पैंट को घुटने के ऊपर चढ़ाए हुए सर पे टोपी लगाकर वोटर अधिकार यात्रा के क्रम में कांग्रेस नेता राहुल गांधी कटिहार जिले में मखाना की खेत से गुरिया निकाल रहे किसानों से मिलने पहुंचे. जहां उन्होंने ने काम कर रहे मजदूरों से पूछा कि मखाना के बीज को निकालने में कितना समय और कितना पैसा मिलाता है. वहीं काम कर रहे लोगों ने बताया कि 10 से 15 मिनट में एक किलो मखाना निकलता है और 40 रुपये प्रति किलो के हिसाब से दाम मिलता है. इसके साथ ही खेत से मखाना का बीज निकालने को लेकर मशीनों के उपयोग और इस काम के बाद अन्य दिनों में उनके द्वारा किए जा रहे कामों को समझने का प्रयास किए. जहां मजदूरों ने दूसरे राज्यों में काम करने की बात कही. वहीं, मखाना के दाम बढ़ाने को लेकर राहुल गांधी से बात की.
खेत से निकलकर राहुल गांधी ने गुरिया (बीज) से लावा तैयार करने की विधि जानी. इस दौरान उनके साथ राजद नेता तेजस्वी यादव और वीवीआईपी के नेता मुकेश सहनी मौजूद रहे. जहां, राहुल गांधी ने मखाना के गुरिया (बीज) से लावा तैयार करने की पूरी प्रक्रिया जानी. इसके साथ उन्होंने ने इसका दाम जाने का प्रयास किया. वहीं, किसानों ने बताया कि मखाना के बीज का दाम 28 हजार रुपए प्रति क्विंटल तक बिक रहा है. वहीं, उन्होंने ने अमेरिका द्वारा टैरिफ लगाने की वजह से मखाना का बाजार मंद रहने की बात कही.
मखाना की लावा बनाने तक की पूरी जानकारी देने वाले युवा से जब राहुल गांधी ने पूछा कि मखाना इंड्रस्टी को बेहतर करने के लिए आपके लिए क्या करने की जरूरत है. वहीं, किसानों ने फैक्ट्री लगाने की बात कही. तब राहुल गांधी ने कहा कि अगर फैक्ट्री लगा दी जाएगी तो फिर आप काम कैसे कर पाएंगे फिर यहां पर दूसरे लोग आकर काम करने लगेंगे. जिस पर किसानों ने कहा कि फैक्ट्री में भी हम ही लोग मखाना तैयार करते हैं तो फैक्ट्री खुलने पर भी है हम ही लोग काम करेंगे. राहुल गांधी ने पूछा कि आप लोग का धंधा कैसा चल रहा है, इस पर किसानों ने कहा कि हमारा धंधा वैसे ही रुका हुआ है, क्योंकि दाम नहीं मिल रहा है साथ ही लोन लेकर इसकी खेती की जा रही है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्राय: अपनी सभाओं में मखाना के फायदे को लेकर लगातार बताते रहे हैं. वहीं, वैश्विक मंचों पर मखाना के ब्रांड एंबेसडर के रूप में अग्रणी भूमिका में नजर आते रहे हैं. जिसमे मॉरीशस के राष्ट्रपति को मखाना भेंट करना भी शामिल हैं. वहीं, देखा गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब से मखाना को सुपर फूड के तौर पर बताना शुरू किया है.
साथ ही मखाना की जीआई टैग मिला है. उसके बाद से मखाना के दामों में काफी उछाल आया है. जो मखाना का लावा कभी एक हजार रुपए किलो मिलता था. वहीं, मखाना का भाव दोगुना हो चुका है. आज से करीब दो से तीन साल पहले मखाना का गुरिया (बीज) 8 हजार से लेकर 15 हजार तक बिकता था. वहीं बीते दो सालों के दौरान यह 25 हजार से लेकर 40 हजार रुपए प्रति क्विंटल तक बिका रहा है.
वरिष्ठ पत्रकार रविशंकर उपाध्याय कहते हैं कि बिहार विधानसभा चुनाव में केवल मखाना को सुपर फूड के तौर पर जानने का भूल कोई भी राजनीतिक पार्टी नहीं करने वाली है. भले ही राहुल गांधी को मुस्लिम बहुल्य सीमांचल में समर्थन मिले. लेकिन, मिथिलांचल की विधानसभा की सीटों पर राजनीति बिसात का गणित पीएम मोदी लंबे समय से तैयार करना शुरू कर चुके है.
जिसमें पहले से मखाना अनुसंधान केंद्र और अब मखाना बोर्ड के गठन के जरिए अपनी फार्मूला सिद्ध कर चुके हैं. वहीं, मिथिलांचल से लेकर सीमांचल तक मखाना के गुरिया से लेकर लावा तैयार करने में जिनकी भूमिका अधिक रहती है. वह मुख्यत: निषाद-मल्लाह समाज है. इनकी जनसंख्या इन दोनों क्षेत्रों में सात-आठ प्रतिशत के करीब है. वहीं, लगभग तीन दर्जन सीटों के चुनाव परिणाम पर इनका प्रभाव अधिक देखने को मिलता है.
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