देश में 2025 तक हो सकती है पानी की कमी कर्नाटक की राजधानी और भारत की साइबर सिटी बेंगलुरु इस समय पानी के संकट से जूझ रही है. स्थिति इतनी विकट है कि इसकी तुलना कभी दक्षिण अफ्रीका की केपटाउन सिटी में पैदा हुए संकट से की जाने लगी है. बेंगलुरु के हालात डराने वाले हैं और कहा जा रहा है कि अगर इसमें सुधार नहीं हुआ तो फिर स्थिति बिल्कुल वैसी ही जैसी साल 2015 में केपटाउन में हो गई थी. यहां पर तीन साल तक पानी की कमी रही थी. वैसे न सिर्फ बेंगलुरु बल्कि आने वाले कुछ समय में पूरे भारत में ऐसे ही हालात देखने को मिल सकते हैं. यूनाइटेड नेशंस (यूएन) की एक रिपोर्ट में भी इस बात की आशंका जताई जा चुकी है. लेकिन पहले जानिए कि आखिर बेंगलुरु और केपटाउन की तुलना क्यों की जाने लगी है.
बेंगलुरु स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस में एनर्जी एंड वेटलैंड्स रिसर्च ग्रुप के को-ऑर्डिनेटर डॉक्टर टी. वी. रामचंद्र ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहा है कि अगर शहर में वॉटर सप्लाई का मिसमैनेजमेंट ऐसे ही चलता रहा तो बेंगलुरु को जल्द ही कुछ साल पहले दक्षिण अफ्रीका की राजधानी केपटाउन से भी बदतर स्थिति का सामना करना पड़ सकता है. उन्होंने बताया कि केप टाउन को 2015 और 2018 के बीच पानी की गंभीर कमी का सामना करना पड़ा था और यह संकट साल 2017 के करीब चरम पर था. इस संकट में शहर के तालाबों में पानी गंभीर रूप से निम्न स्तर पर पहुंच गया था. इसकी वजह से शहर की वॉटर सप्लाई खत्म होने की कगार पर थी. हालातों ने अधिकारियों को सख्त वॉटर राशनिंग जैसे उपायों को लागू करने के लिए मजबूर कर दिया था.
यह भी पढ़ें-गेहूं कटाई शुरू होते ही पंजाब में किसान जलाने लगे पराली, जालंधर में इतने मामले आए सामने
बेंगलुरु में इस स्थिति के लिए कावेरी बेसिन में बारिश की कमी को जिम्मेदार बताया जा रहा है. यहां से शहर की 60 फीसदी सप्लाई होती है. इस वजह से शहर के भूजल भंडार में कमी आ गई है. कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डी के शिवकुमार के अनुसार, शहर के 13,900 सार्वजनिक बोरवेलों में से 6,900 सूख गए हैं. कम बारिश के अलावा, तेजी से और बिना किसी योजना के हो रहे शहरीकरण को भी संकट के लिए बड़ी वजह बताया जा रहा है. बेंगलुरु में सन् 1800 के दशक में शहर में 1452 वॉटर बॉडीज थीं. इसकी करीब 80 फीसदी क्षेत्र हरियाली से ढका हुआ था. अब, सिर्फ 193 ही वॉटर बॉडीज बची हैं जबकि हरियाली का आंकड़ा भी चार फीसदी से कम हो गया है.
यह भी पढ़ें- मालदीव को चावल, चीनी और प्याज सहित इन खाद्य पदार्थों का निर्यात करेगा भारत
बेंगलुरु जैसे हालात देश के बाकी हिस्सों में भी देखने को मिल सकते हैं. संयुक्त राष्ट्र की साल 2023 में आई रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में इंडो-गंगेटिक बेसिन के कुछ क्षेत्रों में पहले ही भूजल की कमी के चरम स्तर को पार कर चुके हैं. इसके पूरे उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में साल 2025 तक गंभीर रूप भूजल कम होने का अनुमान है. यूएन की रिपोर्ट जिसे 'इंटरकनेक्टेड डिजास्टर रिस्क रिपोर्ट 2023' टाइटल दिया गया है उसमें बताया गया है कि दुनिया छह पर्यावरणीय महत्वपूर्ण बिंदुओं के करीब पहुंच रही है, तेजी से गायब होने, भूजल की कमी, पहाड़ी ग्लेशियर का पिघलना, अंतरिक्ष मलबा, असहनीय गर्मी और सुरक्षित न किया जा सकने वाला भविष्य होगा.
यह भी पढ़ें- बिहार में तापमान 40 डिग्री के पार, मवेशियों को लू से बचाने के लिए करें ये उपाय
वहीं सितंबर 2023 में आई एक और रिपोर्ट में कहा गया था कि सन् 2041-2080 के दौरान भारत में भूजल की कमी की दर ग्लोबल वार्मिंग के साथ वर्तमान दर से तीन गुना होगी. साइंस एडवांसेज ओपन एक्सेस मल्टीडिसिप्लिनरी जर्नल में आए एक आर्टिकल में कहा गया था कि जैसे-जैसे देश गर्म होगा, लोग अंडरग्राउंड वॉटर का ज्यादा से ज्यादा प्रयोग करेंगे जिससे पानी की कमी तेजी से होगी. इस रिपोर्ट को तैयार करने वाले वैज्ञानिकों ने कहा था कि बारिश में इजाफा तो होगा लेकिन भूजल स्तर में गिरावट होगी. इसके कारण सिंचाई के प्रयोग में संभावित कमी के बावजूद खतरनाक स्थिति पैदा हो सकती है.
रिपोर्ट के मुताबिक भारत दुनिया में भूजल का सबसे बड़ा उपयोगकर्ता है. साथ ही जितना पानी भारत में प्रयोग होता है उतना अमेरिका और चीन के उपयोग को मिलाकर है. भारत का उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र देश की बढ़ती 1.4 अरब आबादी को दो वक्त की रोटी मुहैया कराने का काम करता है. इसमें पंजाब और हरियाणा राज्य देश की चावल आपूर्ति का 50 प्रतिशत और गेहूं भंडार का 85 प्रतिशत उत्पादन करते हैं. पंजाब में 78 फीसदी कुओं का इतना प्रयोग हो गया है कि उनका पानी खत्म होने की कगार पर है. इसकी वजह से पूरे उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में 2025 तक गंभीर रूप से पानी का संकट गहराने वाला है.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today