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झारखंड में पहाड़िया समुदाय के लोगों ने बनाया बीज बैंक, अब दूर-दराज के इलाकों में करते हैं झूम खेती

झारखंड में पहाड़िया समुदाय के लोगों ने बनाया बीज बैंक, अब दूर-दराज के इलाकों में करते हैं झूम खेती

झारखंड में पहाड़िया समुदाय के लोगों को अब खेती करने के लिए बीज खरीदने की जरूरत नहीं होती है. पहाड़िया समुदाय के लोगों के जीवन में इस बदलाव की शुरुआत साल 2019 में हुई थी. जब पाकुड़ और गोड्डा जिले के पहाड़ी इलाकों में चार समुदाय की अगुवाई में बीज बैंक की स्थापना की गई है.

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पहाड़िया समुदाय के लोगों ने बनाया बीज बैंक (सांकेतिक तस्वीर) पहाड़िया समुदाय के लोगों ने बनाया बीज बैंक (सांकेतिक तस्वीर)

झारखंड में पहाड़िया समुदाय के लोगों को अब खेती करने के लिए बीज खरीदने की जरूरत नहीं होती है. वे अपने पारंपरिक बीजों से ही अच्छी उपज हासिल कर रहे हैं और इससे उनके पैसों की बचत भी हो रही है. वे अच्छी कमाई भी हासिल कर रहे हैं. पहाड़िया समुदाय के लोगों के जीवन में इस बदलाव की शुरुआत साल 2019 में हुई थी जब पाकुड़ औऱ गोड्डा जिले के पहाड़ी इलाकों में चार समुदाय की अगुवाई में बीज बैंक की स्थापना की गई. इन जिलों में पहाड़िया आदिवासी समुदाय के लोग रहते हैं जो खेती की पुरानी पद्धति झूम खेती को अभी तक अपनाए हुए हैं. वे पहाड़ों में रहते हैं और झाड़ियों को साफ करके झूम खेती करते हैं. 

इससे उनके जीवन में अब बदलाव आया है और उनके घरों में खाने के लिए अनाज भी उपलब्ध रहता है. पर एक समय ऐसा भी था जब पहाड़िया समुदाय के लोगों के घरों में खाने के लिए अनाज भी नहीं बचता था क्योंकि वे साहूकारों से बीज खरीदते थे. पैसे के अभाव में साहूकार उनकी फसल का दो तिहाई हिस्सा ले लेते थे. बाकी फसल कर्ज चुकाने में चली जाती थी. पर अब तस्वीर बदली है. अब वे अपनी उपज का आधा हिस्सा खाते हैं और आधे हिस्से को बेच देते हैं. लोगों के जीवन में यह बदलाव बीज बैंक बनने के बाद आया है. 

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रोग रोधी है पारंपरिक बीज

पाकुड़ जिले के लिट्टीपारा ब्लॉक कचना बारा गांव की कमली फरिन 'डाउन टू अर्थ' को बताती हैं कि वे अपनी जमीन पर लगभग आठ हेक्टेयर में बाजरा, लोबिया, अरहर और मकई की खेती करती हैं. आज तो उनके पास अनाज बचता है पर पहले नहीं बचता था. उन्होंने कहा कि बीज बैंक बनने से यह फायदा हुआ कि अब वे पांरंपरिक बीजों की खेती करती हैं जो अच्छी उपज देती है. साथ ही यह रोग और कीट रोधी है. इसे खरीदने के लिए उन्हें पैसों की जरूरत नहीं होती है और किसी से कर्ज भी नहीं लेना पड़ता है. लिट्टीपारा ब्लॉक के छोटा सुरुज बेरा गांव की सलोमी मालतो कहती हैं, हम मक्का, बाजरा और दालों की देशी किस्में उगाते हैं जिनकी उत्पादकता अच्छी होती है. ये फसलें कीटों और बीमारियों के प्रति अधिक प्रतिरोधी होती हैं.

दुर्लभ किस्म के हैं बीज

रांची स्थित एनजीओ के एक्जीक्यूटिव पवन कुमार बताते हैं कि बीज बैंक में कुछ दुर्लभ किस्म के बीज भी उपलब्ध हैं जो अब लगभग लुप्त होने की कगार पर हैं. इनमें से कुछ किस्में जैसे जीएस-4 लोबिया, देशी ज्वार और फिंगर बाजरा हैं. यह ऐसी किस्में हैं जो जो गरीबी का स्थायी समाधान दे सकती हैं. पर आज पहाड़िया समुदाय के किसान इन दुर्लभ किस्मों को संरक्षित करने के बजाय औने पौने दामों पर व्यापारियों को बेचने के लिए मजबूर हैं. हालांकि कुछ गैर सरकारी संस्थाओं की मदद से इन गांवों में बीज बैंक तैयार किया गया है.वर्तमान में बीज बैंक से 90 गांवों में 1,350 से अधिक परिवारों को लाभ मिल रहा है. 

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सदस्य जमा करते हैं 2.5 किलो बीज

बीज बैंकों में पंजीकरण कराने के लिए सदस्यों को 2.5 किलोग्राम देशी बीज जमा करना होता है. राज्य सरकार के कार्यक्रमों के माध्यम से भी बीज उपलब्ध कराए जाते हैं. इसके अलावा बुवाई के मौसम के दौरान किसानों को बीज उपलब्ध कराया जाता है. अब तक बीज बैंक से 3,679 किलोग्राम बीज वितरण किया जा चुका है. सदस्य वर्तमान में स्टॉक को फिर से भरने के लिए प्रत्येक फसल के बाद 0.5 किलोग्राम बीज देते हैं.