नींबू की खेती के जरिए भी किसान आर्थिक तौर पर संपन्न हो सकते हैं. उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिला अंतर्गत कचनावां गांव के रहने वाले किसान आनंद मिश्र ने इसे सफलतापूर्वक कर दिखाया है. हालांकि खेती में आने से पहले आनंद ने पंजाब और बिहार में एमएनसी के साथ 13 वर्षों तक काम किया है. इस दौरान उन्हें गांव की खूब याद आती थी. इसके बाद उन्होंने खेती करने का फैसला किया. 2016 के अंत तक उन्होंने खेती करने के लिए नौकरी छोड़ दी. आनंद के परिवार ने आंनद के इस फैसले का समर्थन किया पर उनकी मां इस फैसले के साथ नहीं थीं क्योंकि वो एक अच्छी सैलरी वाली नौकरी छोड़ रहे थे.
इसके बाद 2017 में आंनद मिश्र ने नींबू की खेती करने का मन बनाया. नीबू की खेती की जानकारी हासिल करने के लिए सड़कों पर निकले गए. इस दौरान उन्होने कई जिलों का दौरा किया. उन्होंने देखा कि बड़े पैमाने पर किसान नींबू की खेती को छोड़कर गेहूं, धान, आलू, पुदीना और अन्य फसलों की खेती कर रहे हैं. उन्होंने देखा कि इन फसलों की खेती से किसानों को चार से पांच महीने के भीतर लाभ मिल जाता है. फिर से उन्हें अगले सीजन में फसल की बुवाई करने के लिए पूंजी की आवश्यकता होती है. यही कारण था कि कई किसान बागवानी में नहीं जा सकते हैं क्योंकि इसमें पैसा कमाने के लिए किसानों को वर्षों तक का इंतजार करना पड़ता है.
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'द बैटर इंडिया' को आनंद मिश्र बताते हैं कि उन्होंने देखा कि नींबू की खेती में कमाई के लिए इंतजार तो करना पड़ता है पर इससे उन्हें लंबे समय तक लाभ होगा. इसके बाद उन्होंने आखिरकार नींबू की खेती करने का फैसला किया. हालांकि इसकी खेती आंध्र प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक और मध्य प्रदेश सहित राज्यों में बड़े पैमाने पर की जाती है. उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश के किसानों के लिए नींबू की खेती बिल्कुल नई है. उनके जिले में एक भी किसान नींबू की खेती नहीं करता है. इसलिए उन्होंने यह सोचकर नींबू की खेती की शुरुआत की कि या तो इसमे फायदा होगा या तो इसमें नुकसान होगा.
आनंद मिश्र का विश्वास काम कर गया. उन्होंने दो एकड़ में नीबूं की खेती की और आज वो सालाना नींबू की खेती से सात लाख रुपये तक की कमाई करते हैं. आनंद बताते हैं कि वो पारंपरिक फसलों की तुलना में पांच गुना अधिक की कमाई कर रहे हैं. नींबू की खेती में मिली सफलता ने आज आनंद की पहचान बदल दी है. उन्हें लेमन मैन ऑफ रायबरेली कहा जाता है. आज आनंद कहते हैं कि गांव का सादा जीवन उन्हें शुरू से ही आकर्षित करता था. वहां लोग शुद्ध हवा में सांस लेते हैं और स्वच्छ भोजन खाते हैं. वो बताते हैं कि वो अपनी नौकरी से खुश थे पर अपनी पुश्तैनी जमीन का इस्तेमाल करना चाहते थे. इसलिए उन्होंने खेती करने का फैसला किया और नौकरी छोड़ दी.
हालांकि शुरुआत में आनंद के लिए यह काम मुश्किल था क्योंकि उनके परिवार में पारंपरिक तौर पर धान , गेहूं, चना, मटर और अरहर की खेती की जाती थी. पर नींबू खेती करने का रिस्क लिया. उन्होंने नींबू की खेती के लिए कोई ट्रेनिंग भी नहीं ली थी. उन्होंने सीधे खेत की तैयारी की और नींबू की खेती की. उन्होंने वाराणसी की एक नर्सरी से थाई किस्म के 900 पौधे खरीदे. प्रत्येक पौधे की कीमत 200 रुपये थी. थाई किस्म सामान्य नींबू की तुलना में अधिक रसदार होता है और इसके फल बड़े होते हैं. थाई नींबू का वजन सामान्य नींबू की तुलना में 100 ग्राम तक होता है. इसका वजन 30 से 50 ग्राम तक होता है. नींबू की खेती उस मिट्टी में अच्छी होती है जिस जमीन का पीएच मान 6-7 से बीच होता है.
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आनंद कहते हैं कि उन्होंने नींबू उगाने के लिए कम लागत और अधिक लाभ पाने का तरीका अपनाया और 400 नींबू के पेड़ों के बीच मोसंबी (मीठा नींबू) के 50 पौधे लगाए. वे बताते हैं कि मिट्टी को उपजाऊ बनाने और कीटों के हमलों को नियंत्रित करने के लिए जैविक तरीकों का इस्तेमाल करते हैं. आमतौर पर, मामूली फंगल और कीट हमलों में, गोमूत्र, गुड़, लहसुन और मिर्च के पेस्ट का उपयोग करके तैयार जैविक कीटनाशकों का छिड़काव करते हैं. इस मिश्रण का छिड़काव दो से तीन दिन के अंतर पर करना होगा. अपने गांव में रहकर सालाना सात लाख रुपये कमाने वाले आंनद अब कहते हैं कि उन्हें नौकरी छोड़ने का अफसोस नहीं है क्योंकि पहले वह नौकर थे पर आज वो खुद के खेत के मालिक हैं.
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