हिमाचल प्रदेश में सेब किसानों ने सांसदों के खिलाफ ही मोर्चा खोल दिया है. लोकसभा चुनाव से ठीक पहले किसानों का यह विरोध सामने आया है. प्रदेश में किसानों के संगठन संयुक्त किसान मंच ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि सरकार ने पिछले 10 वर्षों में किसानों को बागवानों के हित में कोई नीतियां लागू नहीं की हैं. गुरुवार को एक फोरम की बैठक में राज्य में कृषि और बागवानी से संबंधित मुद्दों पर चर्चा की गई. इसके बाद यह बात सामने आई है. बैठक में यह निर्णय लिया गया कि हिमाचल प्रदेश में कृषि और बागवानी से जुड़े लाखों परिवारों की आजीविका को बचाने के लिए आगामी लोकसभा चुनावों में कृषि और बागावानी में बढ़ते संकट और किसानों-बागवानों की समस्याओं को सामने लाना जरूरी है.
संयुक्त किसान मंच के संयोजक हरीश चौहान ने बताया कि मंच की तरफ से कई बार प्रधानमंत्री और उनके मंत्रियों को मांगों से संबंधित ज्ञापन सौंपा गया पर उनकी मांगों पर आज तक कोई सुनवाई नहीं की गई है. साथ ही उन्होंने कहा कि 2014 और 2019 के चुनावी अभियान के दौरान पीएम मोदी ने वादा किया था कि किसानों को स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट के आधार पर फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य दिया जाएगा. इसके अलावा उन्होंने वादा किया था कि सेब के आयात शुल्क में बढ़ोत्तरी की जाएगी. किसानों का ऋण माफ किया जाएगा. खाद कीटनाशक और अन्य उपकरणों पर सब्सिडी दी जाएगी. पर अभी तक कोई भी वादा पूरा नहीं हुआ है.
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'द स्टेट्समैन' की खबर के अनुसार हरीश चौहान ने कहा कि चुनाव के दौरान भारतीय जनता पार्टी ने किसानों और बागवानों से जो वादा किया था उन्हें भी पूरा नहीं किया. इसके कारण आज प्रदेश के किसानों और बागवानों में सरकार के प्रति गुस्सा है. उन्होंने कहा कि राज्य के वर्तमान सांसदों में से किसी ने भी पिछले पांच सालों में किसानों और बागवानों का कोई मुद्दा नहीं उठाया है. साथ ही कहा कि उन्होंने कभी किसानों के मांगों का समर्थन नहीं किया. इसलिए उन्हें किसानों के विरोध का सामना करना पड़ा.
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उन्होंने कहा कि आम चुनावों में अपनी मांगों को पूरा करवाने के लिए और किसानों का समर्थन हासिल करने के लिए एक मांगपत्र तैयार किया जा रहा है ताकि इसे राजनीतिक दलों के सामने रखा जा सके. फोरम की बैठक के दौरान यह बात सामने आई कि फसलों की पैदावार में लगातार गिरावट आ रही है. कम उत्पादन के बावजूद किसानों को अपने उत्पादों के सही दाम नहीं मिल रहे हैं. इसके कारण प्रदेश के किसानों और बागवानों के सामने आजीविका का संकट आ गया है. इस साल भी कम फसल के कारण उन्हें भारी नुकसान हुआ है और अगले साल के फसल पर भी इसका व्यापक असर पड़ने वाला है.
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