गर्मियों का मौसम शुरू हो रहा है. इस मौसम में सबसे अधिक परेशानी पशुपालकों को होती है क्योंकि इस समय तेज धूप होती और मौसम सूखा रहता है. ऐसे में पशुओं के लिए हरे चारे की कमी हो जाती है. पर पशुपालक घास की खेती करके इस समस्या से निजात पा सकते हैं. चारा घास की खेती की खासियत यह होती है कि इसे अधिक सिंचाई की जरूरत नहीं होती है. इस मौसम में गिनी घास पशुओं के लिए हरे चारे का एक बेहतरीन विकल्प हो सकती है. अन्य चारे की खेती की तुलना में इसमें सिंचाई की जरूरत कम होती है. कम नमी की अवस्था में इसकी बढ़वार काफी तेजी से होती है. गिनी घास में पोषक तत्वों की भरपूर मात्रा होती और दूधारू पशुओं का दूध बढ़ाने में यह काफी मददगार साबित होती है.
गिनी घास की खेती छायादार जगहों, खेत की मेड़ों और नहरों के किनारे भी की जा सकती है. इसकी खेती के लिए बीजों की बुवाई भी की जा सकती है या फिर तने की रोपाई करके भी इसकी खेती कर सकते हैं. गिनी घास में पोषक तत्वों की मात्रा की बात करें तो इसमें 28-36 फीसदी तक फाइबर होता है जबकि 6.10 फीसदी प्रोटीन, 0.29 फीसदी फास्फोरस के अलावा मैग्नीशियम और कैल्शियम भी होता है. इस घास की पत्तियों की पचने की क्षमता भी काफी अच्छी होती है जो पशुओं के विकास और दूध बढ़ाने के लिए काफी सहायक है.
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गिनी घास को बीज और तना दोनों विधि से लगा सकते हैं. हालांकि तना या जड़ वाली विधि सबसे अच्छी मानी जाती है क्योंकि इससे दो पौधौं के बीच की उचित दूरी को बनाए रखने में आसानी होती है. जड़ों से गिनी घास की रोपाई करने के लिए इसकी नर्सरी तैयार करनी पड़ती है. अगर किसान एक हेक्टेयर जमीन में जड़ों की रोपाई करना चाहते हैं तो उन्हें तीन-चार किलो बीज की नर्सरी तैयारी करनी पड़ती है. नर्सरी डालने का सही समय अप्रैल और मई का होता है. क्यारियां बनाकर इसकी नर्सरी बनाई जाती है. क्यारी में गोबर और कंपोस्ट डालकर इसे तैयार किया जाता है. फिर स्प्रिंकलर विधि से इसकी सिंचाई करनी चाहिए. वैसे तो पूरे साल में कभी भी इसकी खेती कर सकते हैं पर ठंड के मौसम में नहीं करनी चाहिए.
घास के अधिक उत्पादन के लिए किसान गिनी घास की उन्नत प्रजातियों का इस्तेमाल कर सकते हैं. घास की उत्तम प्रजातियों में कोयंबटूर 1, कोयंबटूर 2, डीजीपी 1, बुंदेल गिनी 1, बुंदेल गिनी 2, बुंदेल गिनी 4, कमौनी गटन, पीजीजी 19, पीजीजी 101 और हेमिल खास शामिल है. अधिक और गुणवत्तापूर्ण उत्पादन के लिए सड़ी हुई गोबर खाद और कंपोस्ट या केंचुआ खाद डालना फायदेमंद साबित होता है. ज्यादा चारा उत्पादन के लिए बुवाई के पहले ही एक हेक्टेयर खेत में 200-250 क्विंटल गोबर खाद डालना चाहिए. जड़ों की रोपाई करते वक्त 80 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस और 40 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से डालना चाहिए.
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जड़ों की रोपाई के तुंरत बाद सिंचाई कर देनी चाहिए. फिर 10-15 दिनों के अंतराल पर नियमित सिंचाई करना चाहिए. गिनी घास की पहली कटाई रोपे जाने के दो से तीन महीने के बाद शुरू की जा सकती है. इसके बाद 30-40 दिन के अंतराल पर इसकी कटाई की जा सकती है. जब घास की लंबाई पांच फीट की हो तब सतह से 15 सेमी की ऊंचाई से इसे काटें. उन्नत किस्मों की खेती करने पर घास का औसत उत्पादन एक हेक्टेयर में प्रति कटाई पर 200-250 क्विंटल तक होता है. जबकि एक साल में प्रति हेक्टेयर 1200-1300 क्विंटल तक उत्पादन हासिल किया जा सकता है.
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