Explained: कावेरी नदी पर फिर विवाद, आखिर क्यों किसान कर रहे विरोध, क्या है इतिहास? जानें पूरी बात

Explained: कावेरी नदी पर फिर विवाद, आखिर क्यों किसान कर रहे विरोध, क्या है इतिहास? जानें पूरी बात

किसान यह कहते हुए विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं कि कावेरी बेसिन गंभीर सूखे जैसी स्थिति का सामना कर रहा है और जलाशयों में पानी की कमी इस क्षेत्र में पीने की जरूरतों को पूरा करने के लिए मुश्किल से ही पर्याप्त है. सुप्रीम कोर्ट तमिलनाडु सरकार की याचिका पर सुनवाई करने वाला है, जिसमें कर्नाटक के जलाशयों से 14 अगस्त से महीने के अंत तक प्रतिदिन 24,000 क्यूसेक पानी छोड़ने का निर्देश देने की मांग की गई है.

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Explained: कावेरी नदी पर फिर विवाद, आखिर क्यों किसान कर रहे विरोध, क्या है इतिहास? जानें पूरी बातकावेरी नदी के पानी को लेकर किसान कर रहे विरोध

तमिलनाडु में कावेरी जल छोड़ने के आदेश से नाखुश किसानों का एक समूह बुधवार से कर्नाटक में विरोध प्रदर्शन कर रहा है. उन्होंने श्रीरंगपट्टनम मांड्या के पास रात भर मोमबत्ती जलाकर विरोध प्रदर्शन किया. विरोध प्रदर्शन बुधवार सुबह शुरू हुआ जब किसानों ने तमिलनाडु को 15 दिनों के लिए 5,000 क्यूसेक पानी छोड़ने की हालिया सिफारिश पर आपत्ति जताई. ये सिफ़ारिशें कावेरी जल विनियमन समिति (Kaveri Water Regulation Committee) की ओर से की गई थीं. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, बुधवार को विरोध प्रदर्शन में एक निर्दलीय विधायक दर्शन पुत्तनैया भी शामिल हुए. कावेरी जल विवाद से जुड़े मामले को सुलझाने के लिए कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार बेंगलुरु जाएंगे.

सूत्रों ने बुधवार को बताया कि मैसूर में कृष्णा राजा सागर (केआरएस) बांध और काबिनी जलाशय से पानी छोड़ा गया. केआरएस बांध और काबिनी जलाशय से पानी छोड़े जाने के खिलाफ विभिन्न किसान संगठनों ने विरोध प्रदर्शन किया. कावेरी क्षेत्र के मांड्या और श्रीरंगपट्टनम में रात भर विरोध प्रदर्शन हुए.

किसानों ने विरोध जारी रखने की कही बात

बुधवार को अपना विरोध जारी रखने के बाद, कर्नाटक में किसान संगठनों ने इसे गुरुवार को भी जारी रखने की घोषणा की. वे पड़ोसी राज्य तमिलनाडु को 5,000 क्यूसेक (क्यूबिक फीट प्रति सेकंड) कावेरी जल छोड़े जाने के खिलाफ मांड्या जिले में कृष्णा राजा सागर (केआरएस) जलाशय के पास एक ताजा विरोध प्रदर्शन करेंगे. मांड्या जिला कलेक्टर कार्यालय के सामने भी विरोध प्रदर्शन किया जाएगा.

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सूखे की मार झेल रहा कावेरी बेसिन

किसान यह कहते हुए विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं कि कावेरी बेसिन गंभीर सूखे जैसी स्थिति का सामना कर रहा है और जलाशयों में पानी की कमी इस क्षेत्र में पीने की जरूरतों को पूरा करने के लिए मुश्किल से ही पर्याप्त है. सुप्रीम कोर्ट तमिलनाडु सरकार की याचिका पर सुनवाई करने वाला है, जिसमें कर्नाटक के जलाशयों से 14 अगस्त से महीने के अंत तक प्रतिदिन 24,000 क्यूसेक पानी छोड़ने का निर्देश देने की मांग की गई है. उम्मीद है कि कर्नाटक के डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार आज कर्नाटक की कानूनी टीम के साथ मामले पर चर्चा करेंगे.

क्या है कावेरी नदी के विवाद का इतिहास

  • कावेरी नदी के जल के बंटवारे और उपयोग को लेकर कर्नाटक और तमिलनाडु के लोगों के बीच लगभग 137 वर्षों से विवाद चल रहा है. यह विवाद पहली बार 1881 में सामने आया, जब तत्कालीन मैसूर राज्य ने कावेरी पर बांध बनाने का फैसला किया. तत्कालीन मद्रास राज्य ने इस पर आपत्ति जताई. कई वर्षों के बाद 1924 में ब्रिटिश लोगों की मध्यस्थता के बाद एक समझौता हुआ. लेकिन आजादी से पहले और आजादी के बाद भी यह विवाद जारी रहा.
  • कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण (सीडब्ल्यूडीटी) की स्थापना वर्ष 1990 में हुई थी. वर्ष 2007 में न्यायाधिकरण ने इस पर अपना आदेश दिया. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद ही साल 2013 में केंद्र सरकार ने इस आदेश से जुड़ी अधिसूचना जारी कर दी.
  • चार राज्यों के करोड़ों लोग कावेरी नदी के पानी पर निर्भर हैं. ट्रिब्यूनल ने अपने आदेश में तमिलनाडु को 419 टीएमसी फीट, कर्नाटक को 270 टीएमसी फीट, केरल को 30 टीएमसी फीट (कावेरी की एक सहायक नदी राज्य से होकर गुजरती है) और पुडुचेरी को 7 टीएमसी फीट पानी आवंटित किया.
  • कावेरी ट्रिब्यूनल ने नदी में 100 साल की औसत पानी की उपलब्धता के आधार पर अनुमान लगाया कि भले ही इसका आधा पानी भी उपयोग के लिए उपलब्ध हो, 740 फीट टीएमसी पानी उपलब्ध हो सकता है. ट्रिब्यूनल ने कर्नाटक को हर साल जून से मई तक 192 टीएमसी फीट पानी छोड़ने का आदेश दिया.
  • ट्रिब्यूनल ने कहा कि खराब मॉनसून वाले साल में सभी राज्यों को पानी की कमी का बंटवारा समान अनुपात में करना होगा. लेकिन इस प्रावधान ने कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच विवाद को और बढ़ा दिया.
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