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मार्च माह इन सब्जियों की खेती के लिए अनुकूल, जानें इनकी बुआई विधि और उन्नत किस्में

मार्च माह इन सब्जियों की खेती के लिए अनुकूल, जानें इनकी बुआई विधि और उन्नत किस्में

मार्च से अप्रैल महीना ओल की खेती के लिए उपयुक्त है. वहीं 14 से 15 मार्च के बीच सिवान, वैशाली, मुजफ्फरपुर जिलों में हल्की बारिश होने की संभावना है. 11 मार्च से 15 मार्च के बीच अधिकतम तापमान 31 से 33 डिग्री सेल्सियस और न्यूनतम 17 से 19 डिग्री सेल्सियस के बीच रहने का अनुमान है.

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ओल की खेती करने के दौरान किन बातों का रखें ध्यान ओल की खेती करने के दौरान किन बातों का रखें ध्यान

मार्च महीने के शुरुआत के साथ ही बड़े स्तर अगेती सरसों की कटाई शुरू हो चुकी है. वहीं फरवरी महीना अधिक गर्म रहने के बाद मार्च महीने में देश के कई इलाकों में हल्की बारिश देखने को मिली है. ग्रामीण कृषि मौसम सेवा डॉ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा समस्तीपुर, बिहार के मौसम वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया है कि आने वाले 14 से 15 मार्च के बीच उत्तर बिहार के सिवान, वैशाली, मुजफ्फरपुर जिलों में हल्की बारिश होने के अनुमान है. इस दौरान किसान ओल (सूरन) की रोपाई कर सकते हैं. बिहार की जलवायु के अनुसार सूरन की खेती व्यावसायिक स्तर पर करके एक बेहतर कमाई की जा सकती है.
 
पूसा समस्तीपुर के कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार जो किसान गरमा सब्जी की खेती अभी तक नहीं किए हैं. वैसे किसान समय खराब किए बगैर सब्जी की खेती कर सकते हैं. वहीं आम में मंजर आने की अवस्था से लेकर मटर के दाने के बराबर बनने तक किसी भी रासायनिक दावा के छिड़काव से किसानों को बचने की जरूरत है.

ओल की खेती करने के दौरान किन बातों का रखें ध्यान

केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा समस्तीपुर की ओर से जारी साप्ताहिक कृषि रिपोर्ट के अनुसार किसान मार्च से अप्रैल महीने में ओल (सूरन) की खेती कर सकते हैं. वहीं उन्होंने अपनी रिपोर्ट में बताया कि सूरन रोपाई करने के लिए प्रत्येक सूरन का वजन 0.5 किलोग्राम से कम नहीं होना चाहिए. प्रत्येक कंद (ओल) की रोपनी के लिए दूरी 75 से.मी रखनी चाहिए. बुआई से पूर्व प्रति गड्ढा तीन किलोग्राम सड़ी हुई गोबर, 20 ग्राम अमोनियम सल्फेट या 10 ग्राम यूरिया, 37.5 ग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट एवं 16 ग्राम पोटेशियम सल्फेट का उपयोग करें.

वहीं ओल के कटे कंद को ट्राइकोडर्मा विरिडी दवा से 5 ग्राम प्रति लीटर गोबर के घोल में मिलाकर 20-25 मिनट तक डुबोकर रखना चाहिए. उसके बाद कंद को छाया में 10 से 15 मिनट तक सूखने के लिए छोड़ देना चाहिए. उसके बाद लगाना चाहिए. इससे मिट्टी जनित बीमारी लगने की संभावना को रोका जा सकता है. सूरन की रोपाई के लिए गजेंद्र किस्म की बीज बिहार की जलवायु के लिए बेहतर है. वहीं प्रति हेक्टेयर 80 क्विंटल बीज का उपयोग करना चाहिए.

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गरमा सब्जी की खेती अभी भी कर सकते हैं किसान

पूसा के कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार अगर अभी तक जो किसान गरमा सब्जी की खेती नहीं किए हैं. वह अविलंब खेती कर सकते हैं. इस दौरान किसान लौकी के बीज के लिए अर्का बहार, काषी कोमल, काषी गंगा, पूसा समर, पूसा मंजरी, पूसा नवीन किस्मों की बुआई कर सकते हैं. वहीं तरबूज के लिए अर्का मानिक, दुर्गापुर मधु, सुगरबेली, अर्का ज्योति(संकर), तथा खरबूज के लिए अर्का जीत,अर्का राजहंस, पूसा शर्बती किस्म की बीज उत्तर बिहार में रोपी जा सकती है.

बैगन को फल छेदक कीट से बचाएं

मार्च के महीने में बैगन की फसल में तना एवं फल छेदक कीट लगने की संभावना ज्यादा रहती है. फल छेदक कीट के पिल्लू फल में घुसकर अंदर से खाकर पूरी तरह से फल को नष्ट कर देते हैं, जिससे प्रभावित फलों को बढ़वार रुक जाती है. और ये खाने लायक नहीं रहता है. वहीं कीट का प्रकोप दिखाई देने पर सर्वप्रथम कीट से क्षतिग्रस्त तना एवं फलों की तुड़ाई करके नष्ट कर देना चाहिए. पौधे के उपचार के लिए स्पीनेसेड 48 ई.सी एक मिली प्रति लीटर पानी या क्वीनालफॉस 1.5 मि.ली प्रति लीटर पानी में घोलकर बनाकर आसमान साफ रहने पर छिड़काव करना चाहिए.