अरोमा मिशन के तहत जंगली गेंदा फूल की खेती से सलूनी क्षेत्र के किसानों को आत्मनिर्भर बनने में मदद मिल रही है. दरअसल, इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन बायोरिसोर्स टेक्नोलॉजी (आईएचबीटी), पालमपुर ने कृषि और बागवानी विभागों के समन्वय से इस प्रोजेक्ट को लागू किया है. हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले के सलूनी अनुमंडल की सूरी ग्राम पंचायत के रहने वाले प्रगतिशील किसान प्रह्लाद भगत इस क्षेत्र के सफल फूल उत्पादकों में से एक हैं. जंगली गेंदे की खेती से उनकी सालाना आय एक लाख रुपये से दो लाख रुपये तक है. ऐसे में आइए जानते हैं उनकी सफलता की कहानी-
जंगली जानवर पारंपरिक कृषि फसलों को बहुत नुकसान पहुंचा रहे थे. जंगली जानवरों की कहर से बचने के लिए सूरी पंचायत के पाखेड़ गांव में जंगली गेंदे की खेती की शुरुआत हुई. वर्तमान में चामुंडा कृषक सोसायटी, चकोली-मेड़ा, समूह में 400 से अधिक किसान हैं.
किसान प्रह्लाद भगत के अनुसार, 'मैं करीब 15 साल से जंगली गेंदे और कुछ जड़ी-बूटियों की खेती कर रहा हूं. 2012 से मैंने पूरी तरह से जंगली गेंदे की खेती करने के साथ ही तेल निकालकर आय अर्जित करना शुरू कर दिया था. इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन बायोरिसोर्स टेक्नोलॉजी (आईएचबीटी) ने हमारे सोसायटी के लिए एक तेल आसवन इकाई स्थापित की थी.”
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जंगली गेंदा से निर्मित तेल स्थानीय स्तर पर 10,000 रुपये से 12,000 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से बिकता है. भगत के मुताबिक, जंगली गेंदे की खेती से उनकी सालाना आय एक लाख रुपये से दो लाख रुपये तक है.
स्थानीय किसानों को तैयार उत्पादों की बिक्री के लिए तकनीकी जानकारी, पौध, आसवन (distillation) इकाइयों और बाजार मुहैया करने के अलावा सुगंधित और औषधीय पौधों की खेती को बढ़ावा देने के लिए जिला प्रशासन ने 2021 में सीएसआईआर-आईएचबीटी, पालमपुर के साथ एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए थे.
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सलूणी के उद्यान विकास अधिकारी डॉ. अनिल डोगरा के अनुसार, पाखेड़ गांव में तेल आसवन इकाई की स्थापना से किसानों को जंगली गेंदे की खेती के लिए प्रोत्साहन मिला है. चामुंडा कृषक सोसायटी ने पिछले तीन वर्षों में लगभग 250 किलोग्राम तेल का उत्पादन किया है. उन्होंने कहा कि पालमपुर संस्थान ने जिले में विभिन्न स्थानों पर 13 गहन तेल आसवन इकाइयां स्थापित की हैं.
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