भारत दुनियाभर में अनाजों का निर्यात करने वाले प्रमुख दस देशों की सूची में शामिल है. पिछले कुछ सालों में देश में खेती का रकबा बढ़ने के साथ साथ पैदावार और अनाजों के निर्यात में भी बढ़ोतरी हुई है. लेकिन, बीते कुछ दिनों से देश में चावल निर्यातक कंपनियों और निर्यातक कई तरह की असुविधा का सामना कर रहे हैं, जिसके चलते उन्होंने सरकार से कई तरह की बुनियादी सुविधाओं की मांग की है. उन्होंने मुख्य रूप से सफेद चावल पर 20 प्रतिशत निर्यात शुल्क को हटाने के साथ टूटे हुए चावल के दस लाख टन के शिपमेंट की अनुमति देने और बासमती चावल के अलावा अन्य चावलों पर भी शिपमेंट पर लगाए गए प्रतिबंध को कम करने का आग्रह किया है.
वहीं माना जा रहा है कि केंद्र सरकार की ओर से मार्च से पहले कोई फैसला लेने की संभावना नहीं है क्योंकि केंद्र भारतीय खाद्य निगम (FCI) द्वारा उगाए गए धान की खरीद का आकलन करेगी.
चावल निर्यातक संघ (TREA) के अध्यक्ष बीवी कृष्ण राव ने कहा कि निर्यात शुल्क के मुद्दे पर अब फिर से विचार किया जाना चाहिए क्योंकि बढ़ती हुई कीमतों को नियंत्रण में रखने और खरीदी को एक सरल स्तर पर ले जाने का उद्देश्य हासिल किए गए हैं. Businessline के अनुसार उन्होंने कहा कि गेहूं की पैदावार अच्छी देखी जा रही है, जिससे चावल पर दबाव कम हुआ है क्योंकि सरकार ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत गेहूं के स्थान पर अधिक चावल का आवंटन किया है.
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पूरी तरह से टूटे चावल के निर्यात के मुद्दे पर TREA अध्यक्ष राव ने कहा कि TREA ने एक मिलियन टन के आवंटन का सुझाव दिया है, इससे किसानों को अपने धान के लिए बेहतर मूल्य मिलेगा क्योंकि पोल्ट्री या इथेनॉल जैसे अन्य उद्योगों में उपयोग करने वाले लोग पर्याप्त कीमतों का भुगतान नहीं कर सकते हैं. दरअसल विदेश व्यापार महानिदेशालय ने 8 सितंबर को एक अधिसूचना जारी कर टूटे चावल के निर्यात पर रोक लगा दी थी. उसके बाद 9 और 15 सितंबर के बीच कुछ शर्तों के साथ टूटे चावल की दो खेपों को निर्यात करने की अनुमति दी थी. केंद्र ने बासमती और उसना चावल को छोड़कर चावल की सभी किस्मों के निर्यात पर 20 प्रतिशत शुल्क लगाया था.
दरअसल निर्यात शुल्क लगाने के बाद कई चावल निर्यातकों को परेशानी का सामना करना पड़ा था, जिसके बाद से केंद्र को पत्र लिखकर कई परिवर्तन का आग्रह किया है. जिसमें से निर्यात शुल्क को हटाने और टूटे चावल के भी शिपमेंट की अनुमति मांगी है.
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