मोटे अनाजों की खेती को केंद्र सरकार के द्वारा बढ़ावा देने के बावजूद, वास्तविक रकबा और उत्पादन सभी प्रमुख फसलों में नीचे चला गया है. दरअसल, 2013-14 और 2021-22 के बीच मोटे अनाजों (रागी, बाजरा और ज्वार) का एमएसपी 80-125 प्रतिशत बढ़ाया गया है, लेकिन पिछले आठ वर्षों के दौरान इन सभी मोटे अनाजों का उत्पादन 7 प्रतिशत घटकर 15.6 मिलियन टन रह गया है. जबकि बाजरा का उत्पादन स्थिर रहा है, ज्वार और रागी का उत्पादन घटा है.
बिजनेसलाइन की रिपोर्ट के अनुसार 2022-23 के खरीफ कटाई सीजन (अक्टूबर-दिसंबर) के दौरान न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से बाजरा और रागी की औसत मंडी कीमतें क्रमशः 14 प्रतिशत और 31 प्रतिशत कम थीं. दूसरी ओर, एगमार्कनेट पोर्टल के अनुसार, ज्वार की कीमत एमएसपी से 4 प्रतिशत अधिक थी और सालभर पहले की अवधि से 57 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई थी.
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वर्तमान रबी सीजन में ज्वार उन दो फसलों में से एक है जिसके रकबे में गिरावट दर्ज की गई है, जबकि अन्य सभी फसलों के रकबे में वृद्धि हुई है. ध्यान देने वाली बात यह है कि ज्वार के कुल उत्पादन में लगभग 70 प्रतिशत रबी सीजन और 30 प्रतिशत खरीफ सीजन का योगदान होता है.
राजस्थान के जयपुर जिले के निमेड़ा के सरपंच ओंकार मल जाट ने कहा “हम मजबूरी में बाजरा उगा रहे हैं क्योंकि नहर सिंचाई नहीं है और भूजल भी बहुत तेजी से कम हुआ है. जो किसान 25 साल पहले सब्जियां और गेहूं उगा रहे थे, उनके पास अब केवल बाजरा ही बचा है. यदि पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना को लागू किया जाता है, तो हम फिर से नकदी फसलों पर स्विच कर सकते हैं.
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वहीं, किसान महापंचायत के अध्यक्ष रामपाल जाट ने भी इसी तरह की राय व्यक्त करते हुए कहा कि इंदिरा गांधी नहर के पश्चिमी राजस्थान पहुंचने से पहले किसान बाजरा, मोठ और ग्वार उगाते थे. अब पूरे क्षेत्र में गेहूं, सरसों, कपास और अन्य नकदी फसलों की खेती हो रही है.
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