पशुओं का दूध ना पीने को लेकर भी बहुत सारे लोगों की अपनी-अपनी धारणाएं हैं. कुछ लोग इसलिए नहीं पीते की दूध लेने से पहले गाय-भैंस को इंजेक्शन दिए जाते हैं. डायबिटीज पेशेंट दूध में लैक्टोज के चलते उसे पीना बंद कर देते हैं. कुछ वेजिटेरियन और नॉन वेजिटेरियन के चलते पीना पसंद नहीं करते हैं. कुछ तो ऐसे भी होते हैं जो मजबूरी में पशुओं का दूध पी रहे होते हैं, क्योंकि उनके पास कोई और विकल्प नहीं होता है.
लेकिन जल्द ही राजस्थान और झारखंड के लोगों के पास पशुओं के साथ ही मूंगफली के दूध का विकल्प भी होगा. सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्ट हार्वेस्ट साइंस एंड टेक्नोलॉजी (सीफेट), लुधियाना के सहयोग से दोनों राज्य में जल्द ही मूंगफली के दूध का उत्पादन शुरू हो जाएगा. यहां मूंगफली के दूध के साथ ही दही और क्रीम-पनीर भी मिलेगा. इतना ही नहीं गाय-भैंस के मुकाबले यह सस्ता, भी होगा.
सीफेट के इस प्रोजेक्ट से जुड़ी रिसर्च स्कॉलर डॉ. नवजोत ने किसान तक को बताया कि बाजार में 120 से 130 रुपये किलो तक बिकने वाली किसी भी वैराइटी की मूंगफली का इस्तेमाल दूध निकालने के लिए किया जा सकता है. एक किलो मूंगफली से सात लीटर तक दूध निकल आता है. जबकि आज बाजार में भैंस का दूध 60 से 65 रुपये लीटर तक बिक रहा है. मूंगफली के इस दूध से आप दही, पनीर और क्रीम भी बना सकते हैं. पनीर में प्रोटीन की मात्रा भी खूब होती है. इसके साथ ही आप अगर चाहें तो क्रीम से ऑयल भी बनाया जा सकता है.
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एनीमल मिल्क की तरह से मूंगफली के दूध को चाय, शरबत, लस्सी में भी इस्तेमाल किया जा सकता है. फ्लेवर्ड मिल्क बनाकर भी पिया जा सकता है. मूंगफली के दूध को गर्म कर फ्रिज में दो-तीन दिन तक रखा जा सकता है. इतना ही नहीं अगर साइंटीफिक तरीके से साफ करके रखा जाए तो यह दो-तीन महीने तक चल सकता है. प्लांट मिल्क को वरीयता देने वालों को यह दूध खूब पसंद आएगा.
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अगर कोई मूंगफली के दूध से बने प्रोडक्ट का छोटे लेवल पर कारोबार करना चाहता है तो सीफेट ने 20 लीटर दूध की क्षमता वाला प्लांट तैयार किया है. इसकी कीमत करीब साढ़े तीन लाख रुपये हैं. अगर कोई चाहता है कि प्लांट की क्षमता 500 से एक हजार लीटर दूध की हो तो प्लांट में इस्तेमाल होने वालीं करीब छह तरह की मशीनों की क्षमता को बढ़ाया जा सकता है. लुधियाना में मूंगफली के दूध से बना पनीर खूब बिक रहा है. कई फर्म अब धीरे-धीरे सीफेट की इस टेक्नोंलॉजी को खरीद रही हैं.
डॉ. नवजोत ने बताया कि पहले छीली हुई मूंगफली को कुछ देर के लिए हल्के गर्म पानी में भिगोया जाता है. इसके बाद मूंगफली को एक मशीन में डाला जाता है जहां मूंगफली के ऊपर से लाल रंग वाला छिलका उतारा जाता है. फिर छिली हुई मूंगफली को कुकर वाले ग्राइंडर में डाला जाता है. जहां एक तय माप के साथ पानी भी डाला जाता है. वहीं मूंगफली ग्राइंड की जाती है. इस दौरान बॉयलर को चालू कर दिया जाता है. फिर बॉयलर की स्टीम कुकर में पहुंचा दी जाती है. तय वक्त के बाद कुकर में वैक्यूम छोड़ा जाता है. जिसके दबाब से वो सारा लिक्विंड एक अलग मशीन में आ जाता है. और फिर उस दूध को छानकर अलग बर्तन में कर लिया जाता है.
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