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बिखरने लगी खुशबू, बड़े हो रहे हैं हींग के पौधे, दो साल बाद मिलेगा उत्पादन, जानें डिटेल 

बिखरने लगी खुशबू, बड़े हो रहे हैं हींग के पौधे, दो साल बाद मिलेगा उत्पादन, जानें डिटेल 

हाथरस के हींग व्यापारी कमल कुमार का कहना है कि एक लम्बे वक्त से हम आज भी हींग के कच्चे माल के लिए दूसरे देशों पर निर्भर हैं. जिसकी वजह से हींग महंगे मसालों में शुमार है. यह आईएचबीटी की एक अच्छी पहल है. अगर इसमे कामयाबी मिल जाती है तो देशवासियों को भी सस्ती हींग मिलने लगेगी. 

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हिमाचल प्रदेश में लगा हींग का पौधा. फोटो क्रेडिट-आईएचबीटी हिमाचल प्रदेश में लगा हींग का पौधा. फोटो क्रेडिट-आईएचबीटी

हींग और केसर दुनिया के सबसे महंगे मसालों की लिस्ट में शुमार हैं. सबसे बेस्ट क्वालिटी की केसर कश्मीर में होती है. लेकिन हींग के मामले में हम दूसरे देशों पर निर्भर हैं. इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन बायोरिसोर्स टेक्नोलॉजी (आईएचबीटी), हिमाचल प्रदेश की एक रिपोर्ट के आंकड़ों पर जाएं तो हम हर साल करीब 1500 टन हींग रेजिन (राल) मंगाते हैं. इसी रेजिन को प्रोसेस करके हींग बनाई जाती है. लेकिन खुशखबरी यह है कि भारत में ही हींग रेजिन का उत्पादन करने की तैयारी चल रही है. 

चार राज्यों में हींग के पौधे लगाए गए हैं. पांच साल में पौधे से रेजिन मिलना शुरू हो जाता है. आईएचबीटी की मानें तो हींग के पौधे प्राकृतिक रूप से बढ़ रहे हैं. अभी तक पौधों पर किसी भी तरह का कोई खतरा नहीं है. अगर सब कुछ अच्छा रहा तो दो साल बाद पौधों से अच्छी क्वाालिटी का रेजिन मिलना शुरू हो जाएगा. अभी तक एक साल में करीब एक हजार करोड़ रुपये का रेजिन विदेशों से आ जाता है. 

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आईएचबीटी की मेहनत से भारत को मिल रही बड़ी कामयाबी

आईएचबीटी के पूर्व डायरेक्टर डॉ. संजय सिंह ने किसान तक को बताया, “हींग बनाने के लिए कच्चा माल ईरान, अफगानिस्तान, कजाकिस्तान और उज्बेकिस्तान से आता है. एक साल में करीब एक हजार करोड़ का कच्चा माल देश में आता है. इसी बड़ी रकम को बचाने के लिए साल 2020 में आईएचबीटी ने हिमाचल प्रदेश में हींग के पौधे लगाना शुरु किया था. इसके बाद धीरे-धीरे लद्दाख, उत्तराखंड और कश्मीर में भी हींग के पौधे लगाए गए हैं. पौधे को कूल एंड ड्राई मौसम चाहिए होता है. 

देश में पहली बार हींग के पौधे लगाए गए हैं. ईरान और अफगानिस्तान से पौधे के बीज मंगाए गए थे. बहुत थोड़ी मात्रा में ही यह बीज मिले थे. लेकिन कुछ तकनीक अपनाकर उन्हीं थोड़े से बीज से पौधों की संख्या बढ़ाई गई है. हींग के पौधे को मदद करने वाले मौसम के मुताबिक देश में एक लाख स्वाबीज यर किमी जमीन है. इसका मतलब यह है कि देश में हींग का उत्पाादन करने के लिए हमारे पास जमीन की कोई कमी नहीं है.  

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विदेशों से आने वाले रेजिन से ऐसे बनती है हींग

हाथरस निवासी और हींग के जानकार विकास शर्मा बताते हैं कि ईरान, अफगानिस्तान, कजाकिस्तान और उज्बेकिस्तान से राल आता है. पौधे से यह राल निकलता है. पहले व्यापारी सीधे हाथरस में राल लेकर आते थे. लेकिन अब दिल्ली का खारी बाबली इलाका राल की बड़ी मंडी बन गया है. लेकिन प्रोसेस का काम आज भी हाथरस में ही होता है.

15 बड़ी और 45 छोटी यूनिट हींग प्रोसेस का काम कर रही हैं. मैदा के साथ पौधे से निकल राल को प्रोसेस किया जाता है. कानपुर में भी अब कुछ यूनिट खुल गई हैं. देश में बनी हींग देश के अलावा खाड़ी देश कुवैत, कतर, सऊदी अरब, बहरीन आदि में एक्सपोर्ट होती है.