1947 में जब देश आज़ाद हुआ तो हम कई चीज़ों के गुलाम बन गये. देश में अचानक खाद्य सुरक्षा का संकट मंडराने लगा. भोजन की कमी हर तरफ दिखाई देने लगी. जिसका असर सबसे पहले बंगाल में देखने को मिला. बंगाल में भयंकर अकाल पड़ा, जिसमें 20 लाख से अधिक लोग मारे गये. इसका मुख्य कारण कृषि संबंधी कमजोर नीतियां थीं. जिससे खेती को सही दिशा नहीं मिल पा रही थी. जिसका असर फसल उत्पादन पर देखने को मिला. उस समय, लगभग 10% कृषि क्षेत्र में सिंचाई की सुविधा थी और नाइट्रोजन-फॉस्फोरस-पोटेशियम (एनपीके) उर्वरकों का औसत उपयोग एक किलोग्राम प्रति हेक्टेयर से भी कम था. जिसके कारण गेहूं और धान जैसी मुख्य फसलों की औसत उपज लगभग 8 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर थी.
ऐसे में इन सभी समस्याओं को सुधारने और देश में खाद्यान्न की कमी को दूर करने के लिए हरित क्रांति की गई. जिसकी शुरुआत एमएस स्वामीनाथन ने की थी. देश को भुखमरी की समस्या से बाहर निकालने और खाद्य सुरक्षा में आत्मनिर्भर बनाने में एमएस स्वामीनाथन की बड़ी भूमिका रही है. ऐसे में आइए जानते हैं इसका इतिहास.
1960 के दशक के मध्य में खाद्य सुरक्षा को लेकर भारत की स्थिति और भी बदतर हो गई. जब पूरे देश में अकाल पड़ने लगा. उन परिस्थितियों में भारत सरकार ने विदेशों से संकर प्रजाति के बीज (hybrid seeds) आयात किये. संकर प्रजाति के बीज अपनी उपजाऊ क्षमता और गुणवत्ता के लिए जाना जाता है. हरित क्रांति का उद्देश्य देश में कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए लागू की गई नीति थी. इसके तहत अनाज उगाने के लिए इस्तेमाल होने वाले पारंपरिक बीजों की जगह उन्नत किस्म के बीजों के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया गया. पारंपरिक बीजों के स्थान पर HYVs का उपयोग करने से सिंचाई के लिए अधिक पानी, उर्वरक और कीटनाशकों की आवश्यकता होती है.
अतः सरकार ने इनकी आपूर्ति के लिए सिंचाई योजनाओं का विस्तार किया तथा उर्वरकों आदि पर सब्सिडी देना प्रारम्भ किया. जिसकी मदद से धीरे-धीरे देश की स्थिति बेहतर होने लगी. हरित क्रांति से देश में खाद्यान्न उत्पादन में तेजी से वृद्धि हुई और भारत खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर बन सका. वर्ष 1968 में गेहूं का उत्पादन 170 लाख टन तक पहुंच गया, जो उस समय एक रिकॉर्ड था और बाद के वर्षों में यह उत्पादन लगातार बढ़ता ही गया.
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स्वामीनाथन को भारत में हरित क्रांति का जनक माना जाता है. स्वामीनाथन ने धान की अधिक उपज देने वाली किस्मों को विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे यह सुनिश्चित करने में मदद मिली कि भारत के कम आय वाले किसान अधिक उपज पैदा करें. वैज्ञानिक स्वामीनाथन को 1987 में प्रथम विश्व खाद्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. इसे कृषि क्षेत्र के सर्वोच्च सम्मान के रूप में देखा जाता है. उन्हें रेमन मैग्सेसे पुरस्कार और अल्बर्ट आइंस्टीन विश्व विज्ञान पुरस्कार जैसे अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार भी मिले हैं, जिनमें एचके फिरोदिया पुरस्कार, लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय पुरस्कार और इंदिरा गांधी पुरस्कार शामिल हैं.
एमएस स्वामीनाथन की पहचान हरित क्रांति के जनक के रूप में है. एमएस स्वामीनाथन का जन्म 7 अगस्त 1925 को हुआ था. डॉ. स्वामीनाथन ने तिरुवनंतपुरम के महाराजा कॉलेज से जूलॉजी और कोयंबटूर कृषि महाविद्यालय से कृषि विज्ञान में बीएससी की डिग्री हासिल की. उन्होंने चेन्नई में एम. एस. स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन (एमएसएसआरएफ) की स्थापना साल 1988 में की. जिसके वो संस्थापक अध्यक्ष, एमेरिटस अध्यक्ष और मुख्य संरक्षक थे.
डॉ. स्वामीनाथन को कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए हैं, जिनमें जैविक विज्ञान में उनके योगदान के लिए एस.एस. भटनागर पुरस्कार (1961), 1971 में सामुदायिक नेतृत्व के लिए रेमन मैग्सेसे पुरस्कार, 1986 में अल्बर्ट आइंस्टीन विश्व विज्ञान पुरस्कार, 1987 में पहला विश्व खाद्य पुरस्कार, शांति, निरस्त्रीकरण और विकास के लिए इंदिरा गांधी पुरस्कार, फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट फोर फ्रीडम मेडल और 2000 में यूनेस्को का महात्मा गांधी पुरस्कार और 2007 में लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय पुरस्कार शामिल हैं.
हरित क्रांति के जनक डॉ. मनकोम्बु संबासिवन स्वामीनाथन का आज गुरुवार (28 सितंबर) को निधन हो गया. वह 98 वर्ष के थे. उन्होंने चेन्नई में आखिरी सांस ली. स्वामीनाथन तमिलनाडु के तंजावुर जिले के रहने वाले थे. उन्हें दुनिया का सबसे मशहूर पुरस्कार वर्ल्ड फूड प्राइज से नवाजा गया था. उन्हें यह पुरस्कार अधिक उपज देने वाली गेहूं और चावल की किस्म के लिए दिया गया था.
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