कृषि से जुड़ी एक संसदीय समिति ने कृषि विज्ञान केंद्रों (KVK) में 30 प्रतिशत कर्मचारियों की कमी पर चिंता व्यक्त की है, जिससे "उनके असली काम प्रभावित हो रहे हैं". केवीके कृषि विस्तार की सबसे अगली लाइन है और राज्य कृषि विश्वविद्यालयों (एसएयू) से लेकर सामाजिक संगठनों और राज्य सरकारों तक, कई संगठनों के जरिये संचालित होते हैं.
हाल ही में, केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) और अन्य संघों के साथ मिलकर किसानों की समस्याओं और उनकी चिंताओं को समझने और उनका समाधान करने के लिए एक पखवाड़े का अभियान चलाया. देश भर के 730 से अधिक केवीके इस अभियान में अग्रणी भूमिका में थे. लेकिन उसी केवीके में कर्मचारियों की भारी कमी देखी जा रही है.
बुधवार को लोकसभा में पेश की गई “केवीके के माध्यम से जलवायु अनुकूल कृषि और प्राकृतिक एवं जैविक खेती को बढ़ावा” पर अपनी रिपोर्ट में संसदीय समिति ने कहा कि कृषि मंत्रालय द्वारा प्रत्येक केवीके में कर्मचारियों की संख्या 16 से बढ़ाकर 20 करने का निर्णय एक स्वागत योग्य कदम है, लेकिन जल्दी भर्ती के बिना यह कारगर नहीं होगा.
पैनल ने कहा कि मंत्रालय को गैर-आईसीएआर केवीके - विशेष रूप से राज्य कृषि विश्वविद्यालयों और अन्य संगठनों द्वारा संचालित केवीके - के लिए समझौता ज्ञापन (एमओयू) को संशोधित करके केवीके में सेवा शर्तों में असमानताओं को तत्काल दूर करना चाहिए, ताकि उनकी सेवा शर्तों और लाभों को आईसीएआर केवीके कर्मचारियों के समान बनाया जा सके.
समिति ने यह भी कहा कि कृषि मंत्रालय को केवीके के विकास के लिए दीर्घकालिक दृष्टिकोण के साथ एक मजबूत फंडिंग की रणनीति तैयार करने की जरूरत है. समिति ने कहा कि 2,500 करोड़ रुपये के प्रस्तावित एकमुश्त अनुदान से कुछ तात्कालिक राहत मिल सकती है, लेकिन यह केवीके की बदलती ज़रूरतों को देखते हुए, अनुमानित सालाना फंडिंग का विकल्प नहीं बन सकता.
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि तीन वर्षों में प्रति हेक्टेयर 31,500-46,500 रुपये की वित्तीय सहायता का वर्तमान स्तर कम पैदावार और आर्थिक तनाव के कारण किसानों को जैविक खेती की ओर आकर्षित करने के लिए पर्याप्त नहीं है.
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