
भारत के हरित क्रांति के जनक एमएस स्वामीनाथन का निधन हो गया है. उन्होंने 98 साल की उम्र में अंतिम सांस ली. स्वामीनाथ का निधन चेन्नई में गुरुवार को हुआ. उन्होंने 1988 में एमएस स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन (एमएसएसआरएफ) की स्थापना की. इसके लिए उन्होंने 1987 में उन्हें दिए गए प्रथम विश्व खाद्य पुरस्कार से मिली आय का इस्तेमाल किया था. फाउंडेशन के एक अधिकारी ने पुष्टि की कि उन्होंने सुबह 11 बजे के आसपास अंतिम सांस ली.
Father of India's Green Revolution, MS Swaminathan passes away in Chennai, Tamil Nadu.
— ANI (@ANI) September 28, 2023
(Pic: MS Swaminathan Research Foundation) pic.twitter.com/KS4KIFtaP2
स्वामीनाथन तमिलनाडु के तंजावुर जिले के रहने वाले थे. उन्हें दुनिया का सबसे मशहूर पुरस्कार वर्ल्ड फूड प्राइज से नवाजा गया था. उन्हें यह पुरस्कार अधिक उपज देने वाली गेहूं और चावल की किस्म के लिए दिया गया था.
1960 के दशक में स्वामीनाथन ने गेहूं और चावल की अधिक पैदावार देने वाली किस्म तैयार की थी. यह वही दौर था जब देश को ऐसी किस्मों की बहुत जरूरत थी. देश में अनाज की कमी थी जिसे देखते हुए स्वामीनाथ ने अति उत्पादन क्षमता वाली किस्म तैयार की. उस वक्त देश में भुखमरी का दौर था और जहां-तहां अकाल की समस्या आम बात थी. उस वक्त स्वामीनाथ ने अति उत्पादन क्षमता वाली गेहूं और चावल की वैरायटी बनाकर देश के कृषि क्षेत्र में बड़ा योगदान दिया.
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एमएस स्वामीनाथन ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ काम किया और देश को अकाल से मुक्त करने के लिए कई नीतियां बनाने में मदद की. इसी आधार पर देश में हरित क्रांति का रास्ता साफ हुआ और अनाज का उत्पादन बढ़ा. तब की हरित क्रांति का ही नतीजा है कि कभी अकाल से जूझ रहा देश आज अनाजों का निर्यात करता है और इसमें वह अव्वल स्थान रखता है.
जिस वक्त स्वामीनाथन हरित क्रांति पर काम कर रहे थे, उस वक्त वे दुनिया के कई प्रतिष्ठित सम्मेलनों में भी भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे थे. 1974 में रोम में आयोजित यूनाइटेड नेशन्स वर्ल्ड फूड कांग्रेस में स्वामीनाथन ने चेयरमैन की जिम्मेदारी संभाली थी. देश में आज जितने भी कृषि विश्वविद्यालय हैं, उन्हें बनाने के पीछे एमएस स्वामीनाथन का योगदान सबसे अहम है. इतना ही नहीं, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् के कामकाज में भी उनका योगदान बहुत बड़ा रहा है. उन्होंने गेहूं और चावल की पैदावार में ही क्रांति नहीं लाई, बल्कि फलों और सब्जियों के क्षेत्र में भी बहुत बड़ा रोल नहीं था. देश ही नहीं, विदेश में भी स्वामीनाथन ने कृषि क्षेत्र में अहम योगदान दिया. इन देशों में फिलीपिंस और चीन के भी नाम हैं.
आज अगर देश से चावल का निर्यात हो रहा है, तो उसमें सबसे बड़ा योगदान एमएस स्वामीनाथ का रहा है. उन्होंने देश में चावल की ऐसी किस्में तैयार कीं जिससे बंपर उत्पादन शुरू हुआ. उस उत्पादन से देश में चावल की जरूरत पूरी हुईं. साथ ही उत्पादन इतना अधिक बढ़ा कि देश को इसके निर्यात से कमाई होने लगी. गेहूं की किस्मों में भी उनका ऐसा ही रोल रहा. देश में आज सब्जियों का उत्पादन तेजी से बढ़ा है क्योंकि कई उच्च पैदावार वाली किस्में मार्केट में उपलब्ध हैं. इसके पीछे एमएस स्वामीनाथ का योगदान सबसे महत्वपूर्ण रहा है.
एमएस स्वामीनाथन ने 1949 में आलू, गेहूं, चावल और जूट के आनुवंशिकी पर शोध करके अपना करियर शुरू किया. जब भारत बड़े पैमाने पर अकाल से जूझ रहा था और इससे खाद्यान्न की कमी हो गई थी, तब स्वामीनाथन ने नॉर्मन बोरलॉग और अन्य वैज्ञानिकों के साथ मिलकर गेहूं की उच्च उपज वाली किस्म के बीज विकसित किए. इससे देश में लगातार गेहूं का उत्पादन बढ़ता गया और देश गेहूं का निर्यात कर रहा है.
स्वामीनाथन को संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम में "आर्थिक पारिस्थितिकी के जनक" के रूप में जाना जाता है. उन्होंने 'हरित क्रांति' की सफलता के लिए 1960 और 70 के दशक के दौरान सी सुब्रमण्यम और जगजीवन राम सहित कृषि मंत्रियों के साथ काम किया. इसके बाद देश में गेहूं और चावल की अधिक उपज वाली वैरायटी पर काम हुआ और उत्पादन तेजी से बढ़ने लगा.
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