यहां शामली की खांड से बन रहा है घेवर, जानें क्यों देश-विदेश में किया जा रहा है पसंद

यहां शामली की खांड से बन रहा है घेवर, जानें क्यों देश-विदेश में किया जा रहा है पसंद

ऐसा नहीं है कि इसका नाम देसी खांड है तो ये चीनी की कोई लो क्वालिटी होगी या चीनी से कम रेट पर बिकती होगी. खांड की तो लागत ही चीनी के रिटेल रेट से ज्यादा आती है. मशीनों के बजाए ये देसी तरीके से ही बनाई जाती है तो इसका प्रोडक्शन भी ज्यादा नहीं होता है. इसलिए ज्या‍दातर अच्छी खांड हाथ-ओं-हाथ बिक जाती है.

Advertisement
यहां शामली की खांड से बन रहा है घेवर, जानें क्यों देश-विदेश में किया जा रहा है पसंद घेवर का प्रतीकात्मक फोटो.

गुड़-चीनी हो या देसी खांड, शामली जिले का नाम देश ही नहीं विदेशों में भी है. एक-दो या दो-चार नहीं एक दर्जन से भी ज्यादा तरीके का गुड़ शामली से एक्सपोर्ट हो रहा है. लेकिन अब गुड़ के साथ ही शामली की बनी खांड भी खूब नाम कमा रही है. पश्चिमी यूपी के इस 11-12 साल पहले बने जिले की खांड को विदेशों में भी पसंद किया जा रहा है. खांड से बने कई आइटम दूसरे देशों को भी जा रहे हैं. हरियाणा के रोहतक जिले से तो खांड के बने घेवर की सप्लाई कई दूसरे देशों में हो रही है. 

सावन के महीने में शायद ही कोई ऐसा हलवाई हो जहां घेवर बन और बिक न रहा हो. बाजार में जिधर नजर डालो उधर ही घेवर नजर आता है. कहीं सादा घेवर तो कहीं मलाई और केसर वाला घेवर बिक रहा है. लेकिन रोहतक के वीरेन्द्र राठी तो खांड का घेवर भी बना रहे हैं. इसके लिए उन्होंने शामिली से 10 क्विंटल खांड मंगवाई है.

ये भी पढ़ें- Halal Tea: चाय ही नहीं दूध को भी मिलता है हलाल सर्टिफिकेट, जानें क्या होता है और क्यों जरूरी है

कोल्हू पर ऐसे बनती है देसी खांड 

हालांकि गुड़ भी कोल्हू पर ही बनता है, लेकिन खांड बनाने का तरीका गुड़ बनाने के तरीके से थोड़ा अलग है. खांड भी गन्ने से ही बनती है. सबसे पहले गन्ने के रस को तीन अलग-अलग कढ़ाव में पकाया जाता है. तीन कढ़ाव में इसलिए कि रस को पकाते वक्त उसके ऊपर से ज्यादा से ज्यादा गंदगी को हटाया जा सके. इसके बाद उस पके हुए रस को एक बड़ी सी टंकी में भर दिया जाता है. टंकी में लगी एक देसी जुगाड़ से रस को तीन से चार दिन तक लगातार पलटा जाता है. ऐसा करने से रस दानेदार हो जाता है.
 
फिर इस दानेदार रस को एक दूसरे बर्तन में ग्राइंड किया जाता है. ऐसा करने से रस के दाने अलग हो जाते हैं और उसका तरल पदार्थ अलग निकल जाता है. फिर अलग हुए दानेदार बुरादे को सुखाकर पैक कर लिया जाता है. बाजार में अच्छी खांड  55 से 60 रुपये किलो तक बिकती है. गौरतलब रहे कि डायबिटीज के मरीज भी खांड से बना घेवर चख सकते हैं. खांड की तासीर (प्रकृति) भी ठंडी होती है. 

ये भी पढ़ें- Monsoon: बरसात के मौसम में पशु को बीमारी से बचाने को अपनाएं एक्सपर्ट के ये आठ टिप्स

रोहतक से अमेरिका तक जा रहा है खांड का घेवर 

घेवर को लेकर अलग-अलग राज्यों और शहरों का अपना दावा है कि ये हमारे यहां की मिठाई है. राजस्थान अपना दावा करता है तो यूपी ब्रज क्षेत्र से जोड़कर घेवर को अपना बताता है. लेकिन आजकल विदेशों में जो नाम हरियाणा का घेवर कमा रहा है उससे इंकार नहीं किया जा सकता है. वीरेन्द्रर राठी खांड से घेवर बनाकर अमेरिका-ऑस्ट्रेलिया, नेपाल और कनाडा से लेकर केरल, तमिलनाडु, गोवा और जम्मू-कश्मीर तक सप्लांई कर रहे हैं. 

 

POST A COMMENT