एनीमल एक्सपर्ट की मानें तो बरसात का मौसम पशुओं के लिए बीमारी का घर होता है. हरा चारा, पीने का पानी देने में और पशुओं के रखरखाव में जरा सी भी लापरवाही हुई तो पशु फौरन ही बीमार पड़ जाता है. कई बार तो ये बीमारी पशु के लिए जानलेवा भी साबित होती है. पशुपालक को भी खासा आर्थिक नुकसान होता है. इसके चलते हमारे पशु को तो परेशानी होती ही है साथ में उसका दूध भी कम हो जाता. अगर बरसात का मौसम शुरू होने से पहले ही पशुपालक कुछ उपाय अपना लें तो उनका पशु भी हेल्दी रहेगा और पशुपालक भी कई तरह के जोखिम से बच जाएगा.
हालांकि किसानों को इस नुकसान से बचाने के लिए सरकार कई तरह की योजनाएं भी चला रही है. अगर ऐसी ही कुछ योजनाओं का फायदा किसान भाई-बहिन उठा लें तो मानसून के दौरान पशु दूध भी पूरा देंगे और कई तरह की परेशानियों से बच जाएंगे. इसके लिए जनजागरुकता कार्यक्रम भी चलाए जा रहे हैं. गांव और कस्बों के पशु अस्पताल में भी ये सभी सुविधाएं मौजूद हैं.
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हरियाणा के पशुपालन विभाग में डिप्टी डायरेक्टर डॉ. पुनीता गहलावत ने किसान तक को बताया कि बरसात के मौसम में होने वाले हरे चारे में पानी की मात्रा बहुत ज्यादा होती है. अगर पशु इस चारे को ज्यादा खा लेता है तो उसे डायरिया होने की संभावना रहती है. इसी तरह से इस मौसम में ही कई जगह खुले में बारिश का पानी जमा हो जाता है. ये पानी पूरी तरह से दुषित होता है. और जब पशु इसे पीता है तो वो बीमार हो जाता है.
इसलिए पशु को घर पर ही बाल्टी या किसी टंकी की मदद से पानी पिलाएं. साथ ही पशु को बाहर हरा चारा चरने के लिए ना भेजें. अगर पशु बाहर जा रहा है तो उसे घर पर सूखा चारा, दाना और मिनरल्स जरूर दें.
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डॉ. पुनीता ने बताया कि गाय-भैंस के चार महीने के बच्चे से टीका लगना शुरू हो जाता है. खुरपका-मुंहपका, गलघोंटू, मिल्क फीवर, थनेला आदि ऐसी बीमारी हैं जिन्हें वक्त पर टीका लगवाकर रोका जा सकता है. इसलिए मॉनसून शुरू होने से पहले जरूरी टीके लगवा लें, अगर अभी भी नहीं लगवाए हैं तो अब गांव के पशु अस्पशताल में जाकर लगवा सकते हैं. इसके साथ ही पशु को पेट के कीड़े की दवा जरूर खिलवाएं.
डॉ. पुनीता का कहना है कि बरसात के दिनों में संक्रमण रोग ज्यादा होते हैं. इसलिए बाड़े में सभी पशुओं को एक साथ कभी न बांधे. जैसे हेल्दी पशुओं को अलग रखें, बीमार को अलग बांधे, छोटे बच्चों को अलग रखें, इसी तरह से जो पशु गाभिन हैं या फिर बच्चा दे चुके हैं उन्हें अलग रखें. गाभिन या बच्चा दे चुके पशुओं को खाने के लिए अच्छी खुराक दें. पशुओं को मक्खी और मच्छर से बचाने के लिए फोगिंग कराएं. अगर कोई पशु मर जाता है तो उसे यहां-वहां खुले में न फेंककर मिट्टी में दबाएं और उसके ऊपर नमक जरूर डालें. पशु को चमड़ी के रोग न होने दें. पशु को हाथ लगाने से पहले और उसके बाद अपने हाथ को सेनेटाइज जरूर करें. नए आए पशु को 15 दिन के लिए दूसरे पशुओं से अलग रखें.
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