बारिश का मौसम डेयरी पशुओं के लिए कई स्वास्थ्य चुनौतियां लेकर आता है, जिनमें आफरा (Bloat) एक गंभीर और जानलेवा बीमारी है. इस मौसम में पशुओं को बाहर चराने से बचना चाहिए, क्योंकि बारिश के कारण जमीन से निकलने वाले कीड़े घास पर बैठ जाते हैं, जिनके सेवन से पशुओं में विभिन्न बीमारियां हो सकती हैं. यदि इन बीमारियों का समय पर इलाज न किया जाए, तो पशु की मृत्यु भी हो सकती है, जिससे पशुपालकों को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ सकता है. आफरा पशुओं में होने वाला एक बेहद खतरनाक रोग है. इसमें पशु के पेट के पहले भाग यानी रूमेन में कार्बन-डाइ-ऑक्साइड, हाइड्रोजन-सल्फाइड, नाइट्रोजन और मीथेन जैसी दूषित गैसें अत्यधिक मात्रा में जमा हो जाती हैं, जिससे पेट फूल जाता है. यह स्थिति पशु को बेचैन कर देती है और अगर इसका समय पर इलाज न हो, तो पशु की जान 3 घंटे मे भी जा सकती है.
गाजियाबाद के उप जिला पशु चिकित्सा अधिकारी, डॉ. हरिबंश सिंह ने बताया कि बारिश के मौसम में अधिक मात्रा में गीला हरा चारा खिलाना इस रोग का मुख्य कारण है और बरसात में घास ज्यादा मुलायम होती है तो जल्दी पचती है जिससे पेट में ज्यादा गैस बनाती. इसके अलावा, पशुओं का दूषित या खराब चारा खा लेना भी इसका कारण है. ऐसे चारा का अधिक सेवन जिनमें कार्बोहाइड्रेट की मात्रा ज्यादा हो, पशु के आहार में अचानक कोई बड़ा परिवर्तन करना, काम करने के तुरंत बाद पशु को ठंडा पानी पिलाना, पेट की मांसपेशियों का कमजोर होना, चारा या भूसे के साथ जहरीले कीड़े-मकोड़े खा लेना, खेत से काटकर तुरंत पशुओं को हरा चारा खिलाना और दूषित या गंदा पानी पी लेना भी आफरा रोग का कारण बन सकता है.
डॉ. हरिबंश के अनुसार,आफरा रोग होने पर पशुओं मुख्य रूप ये लक्षण दिखाई देते हैं:
• पेट का फूलना: आफरा का मुख्य लक्षण पशु के रूमेन में गैस भरकर उसका फूल जाना है. अक्सर बायीं ओर की कोख (पेट का निचला हिस्सा) खूब फूली हुई दिखाई देती है, जिसे उंगली से थपथपाने पर ढोल जैसी डमडम की आवाज आती है.
• सांस लेने में कठिनाई: पशु को सांस लेने में परेशानी होती है.
• बेचैनी: पशु बेचैन रहता है और बार-बार उठता-बैठता है.
• खाना-पीना बंद: पशु खाना-पीना और जुगाली करना पूरी तरह बंद कर देता है.
• लार गिरना और जीभ बाहर: पशु के मुंह से लार गिरती है और उसकी जीभ बाहर निकल आती है.
• मुंह से सांस लेना: पशु की सांस मुंह से चलने लगती है.
• गहरी सांसें और मृत्यु: अंत में, रोगी पशु एक करवट लेटकर गहरी और लंबी सांसें लेता है,और यदि तुरंत इलाज न मिले तो उसकी मृत्यु हो जाती है.
डॉ.हरिबंश ने बताया कि अगर आफरा रोग का निदान तुरंत न किया जाए, तो तीव्र अवस्था में पशु आधे से तीन घंटे में ही मर सकता है, जिससे इलाज का समय भी नहीं मिल पाता. कुछ तीव्र अवस्थाओं में पशु को तेल पिलाना काफी लाभदायक होता है और पेट की बायीं कोख पर दबाव डालकर अच्छी तरह मालिश करनी चाहिए.
• प्रभावित गाय भैस को 30 मिलीलीटर तारपीन का तेल और 50 ग्राम मीठा सोडा मिलाकर पशु को पिलाने से आराम मिलता है.
• टिम्पोल पाउडर को गुनगुने पानी में मिलाकर पशु को देने से भी राहत मिलती है. इसे सीरिंज की मदद से भी पशु के पेट में डाला जा सकता है.
• 10 ग्राम अदरक, 10 ग्राम हींग, 10 ग्राम लहसुन और 100 ग्राम प्याज का पेस्ट बनाकर जानवर की जीभ पर लगाएं.
• पेट में बैक्टीरिया को पनपने से रोकने के लिए डॉक्टर के परामर्श से एंटीबायोटिक्स दवाइयां देनी चाहिए.
• बीमारी का वेग अधिक होने पर बायीं कोख के बीचों-बीच ट्रोकार और कैनुला से छेद करके अंदर की हवा बाहर निकाली जा सकती है. इससे तुरंत आराम मिलता है.
• पशु के रूमेन से हवा बाहर निकालने के लिए उसकी जीभ को बार-बार मुंह से बाहर खींचना चाहिए या मुंह में लकड़ी का टुकड़ा (माउथ गैग) डालना चाहिए.
• अगर ट्रोकार और कैनुला डालने से भी आराम न हो और पशु की मृत्यु का भय हो, तो बायीं कोख पर 10-15 सेंटीमीटर का जीवाणु रहित चाकू से चीरा लगाकर अंदर की गैस निकालकर टांके लगाकर घाव बंद करें और 3-4 दिन तक एंटीबायोटिक औषधि दें.
• हरे चारे की मात्रा सीमित करें, बरसात में पशुओं को हरा चारा जरूरत से ज्यादा नहीं खिलाना चाहिए.
• बरसात में सूखे चारे और दाने की मात्रा बढ़ा देनी चाहिए.
• बारिश के मौसम में पशुओं को बाहर चराने से बचें, ताकि वे दूषित घास या कीड़े न खाएं.
• सही समय पर इलाज, संतुलित आहार के द्वारा आप अपने डेयरी पशुओं को आफरा जैसी गंभीर बीमारियों से बचा सकते हैं और खुद को होने वाले आर्थिक नुकसान से भी सुरक्षित रख सकते हैं.
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