गर्मी का मौसम शुरू होते ही दूध की किल्लत शुरू हो जाती है. वजह है पशु दूध देना कम कर देते हैं. हालांकि एनिमल एक्सपर्ट की मानें तो हरे चारे की कमी के चलते पशुओं को पूरी खुराक नहीं मिल पाती है, जिसके चलते उनका दूध उत्पादन कम हो जाता है. ऐसे में दूध की किल्लत को देखते हुए कुछ डेयरी कंपनियां दूध के दाम भी बढ़ा देती हैं. और सबसे बड़ी बात ये है कि इस मौके का फायदा उठाते हुए सिंथेटिक दूध बनाने वाला गिरोह भी सक्रिय हो जाता है.
लेकिन गौरतलब रहे कि गर्मियों के दौरान दूध की होने वाली परेशानी को कुछ हद तक डेयरी सेक्टर का फ्लश सिस्टम दूर करने की कोशिश करता है. लेकिन परेशानी की बात ये है कि हर एक डेयरी प्लांट में ये फ्लश सिस्टम मौजूद नहीं होता है. जो बड़ी-बड़ी डेयरी कंपनियां हैं वो अपने-अपने प्लांट पर फ्लश सिस्टम बनाकर काम करती हैं.
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अमरीश चन्द्रा, पूर्व डॉयरेक्टर, इंडियन ग्रासलैंड एंड फोडर रिसर्च इंस्टीट्यूट, झांसी का का कहना है कि आज हमारे देश में हरे और सूखे चारे की बड़ी कमी देखी जा रही है. इतना ही नहीं जो चारा मिल भी रहा है तो उसकी क्वालिटी अच्छी नहीं है. मतलब वो चारा पौष्टिक नहीं है. देश में 12 फीसद हरे चारे और 23 फीसद सूखे चारे की कमी है. इसके अलावा खल आदि के चारे में 24 फीसद की कमी आई है. जिसे जल्द से जल्द दूर करना जरूरी हो गया है. चारागाहों पर हो रहे कब्जे सबसे ज्यादा परेशानी की वजह हैं.
रेंज मैनेजमेंट सोसाइटी ऑफ इंडिया और इंटरनेशन कांफ्रेंस के आयोजन सचिव डॉ. डीएन पलसानिया ने किसान तक को बताया कि हर एक गांव के स्तर पर पशुओं के चरने के लिए एक चारागाह होती है. लेकिन हाल ही में एक कांफ्रेंस के दौरान ये खुलासा हुआ है कि चारागाह की बहुत सारी जमीन पर अतिक्रमण कर लिया गया है. इतना ही नहीं बहुत सारी चारागाह की जमीन पर तो स्कूल और पंचायत घर जैसी दूसरी बिल्डिंग तक बना ली गई हैं. इसके चलते पशुओं के लिए चरने तक की जगह नहीं बची है. ऐसे में चारे की कमी का असर सीधे तौर पर दूध उत्पादन को प्रभावित कर रहा है.
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वीटा डेयरी, हरियाणा के जीएम, प्रोडक्शन चरन जीत सिंह ने किसान तक को बताया कि फ्लश सिस्टम हर डेयरी में काम करता है. इस सिस्टम के तहत डेयरी में डिमांड से ज्यादा आने वाले दूध को जमा किया जाता है. जमा किए गए दूध का मक्खन और मिल्क पाउडर बनाया जाता है. डेयरियों में स्टोरेज क्वालिटी और कैपेसिटी अच्छी होने के चलते मक्खन और मिल्क पाउडर 18 महीने तक चल जाता है. अब तो इतने अच्छे-अच्छे चिलर प्लांट आ रहे हैं कि मक्खन पर एक मक्खी बराबर भी दाग नहीं आता है. चरन जीत सिंह का कहना है जब भी ज्यादा दूध की जरूरत पड़ती है तो इमरजेंसी सिस्टम में से मक्खन और मिल्क पाउडर लेकर उन्हें मिला दिया जाता है. यह मिक्चर पहले की तरह से ही दूध बन जाता है.
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