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Mustard rate: सरसों किसानों को दो-तरफा नुकसान, पैदावार में कमी और दाम भी मिला कम

Mustard rate: सरसों किसानों को दो-तरफा नुकसान, पैदावार में कमी और दाम भी मिला कम

देश में सरसों फसल का रकबा 100.39 लाख हेक्टेयर है, जो पिछले साल के रिमोट सेंसिंग-आधारित अनुमान 95.76 लाख हेक्टेयर से पांच प्रतिशत अधिक है. लेकिन किसानों का कहना है कि इस साल प्रति एकड़ सरसो की पैदावार कम हुई है, जिससे उन्हें सरसों की फसल में ज्यादा फायदा नहीं दिख रहा है. मान कर चलें कि इस बार भी तेल के दाम नीचे नहीं आएंगे.

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सरसो की फसल सरसो की फसल

पिछले साल खाद्य तेल की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी को देखकर और खाद्य तेल की बाजार में बढ़ती मांग का फायदा उठाने के लिए किसानों ने इस साल सरसों की खेती अधिक रकबे में की. सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (SEA)  कि रिपोर्ट के अनुसार, अखिल भारतीय सरसों फसल का रकबा 100.39 लाख हेक्टेयर है, जो पिछले साल के रिमोट सेंसिंग-आधारित अनुमान 95.76 लाख हेक्टेयर से पांच प्रतिशत अधिक है. लेकिन किसानों का कहना है कि इस साल प्रति किसान की पैदावार कम हो रही है, जिससे उन्हें सरसों की फसल में ज्यादा फायदा नहीं दिख रहा है.

दूसरी तरफ, सरसों की उपज एमएसपी से कम दामों पर बाजार में बिक रही है, जिससे किसानों को काफी निराशा है. इस तरह, उनको दोतरफ़ा नुकसान हो रहा है. किसानों का कहना है कि सरकार केवल खेती का रकबा बढ़ाने और उत्पादन को बढ़ाने पर ध्यान देती है, लेकिन किसानों की रुचि जिस भी फसल में हो, उसके उचित मूल्य पर खरीदारी और हर जिले में तेल के लिए सरसों की उपज की प्रोसेसिंग की व्यवस्था करनी चाहिए. इससे किसानों को सरसों की खेती से फायदा होगा. किसानों का कहना है कि सरसों की खेती से किसान की आय में वृद्धि होगी, तो किसान सरसों की खेती में रुचि दिखाएंगे.

सरसों की पैदावार में कमी और दाम भी कम

राजस्थान के जयपुर, गांव देवा के रहने वाले किसान अशोक यादव ने बताया, मैंने इस असिंचित दशा वाले खेतों में इस साल 4 एकड़ में सरसों की फसल लगाई है. लेकिन इस साल कम बारिश के कारण सितंबर और अक्टूबर में खेतों में नमी ना रहने के कारण सरसों की बढ़वार और पैदावार कम हुई है. इस साल एक एकड़ में चार क्विंटल ही पैदावार हुई है, जबकि पिछले साल 6 क्विंटल पैदावार हुई थी. उन्होंने बताया कि बेहतर दाम की आशा में सरसों की फसल लगाई थी, लेकिन अभी मार्केट में पीली सरसों का दाम 4600 से 4800 रुपये और काली सरसों 5000 रुपये क्विंटल बिक रही है, जबकि सरसों की एमएसपी 5660 रुपये प्रति क्विंटल है.

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राजस्थान के गांव लक्ष्मीपुरा, जिला बारां के किसान दिनेश मीना का कहना है कि उन्होंने पांच एकड़ में सरसों की खेती की थी. प्रति एकड़ 9 क्विंटल पैदावार आई, लेकिन उनके जिले में एमएसपी से नीचे 4885 रुपये क्विंटल सरसों की फसल बिक रही है. उनको आशा थी कि इस साल सरसों एमएसपी से अधिक दाम पर बिकेंगे. राजस्थान के जिले बुंदी, गांव खुरैना के किसान लाडो जाट ने सरसों की फसल 3 एकड़ में लगाई थी. उन्हें इस साल 8 क्विंटल के हिसाब से पैदावार मिली थी. ये खुशकिस्मत किसान हैं जिनकी सरसों की फसल एमएसपी पर खरीदारी की गई थी. लेकिन पिछले साल की तुलना में कम पैदावार मिली है. उनका कहना है कि पिछले साल 10 क्विंटल पैदावार मिली थी.

सरसों की खेती करें या नहीं, बड़ा सवाल 

उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के गांव भूरेका के किसान सुधीर अग्रवाल ने किसान तक को बताया कि हमने 10 एकड़ में सरसों की फसल लगाई है. उन्होंने कहा कि पिछले साल इस समय बाजार में सरसों का दाम 6000 रुपये क्विंटल मिला था. लेकिन इस साल बाजार में 4800 रुपये क्विंटल का दाम मिल रहा है. जबकि सरकारी एमएसपी की कीमत 5660 रुपये है. उन्होंने कहा, हमारे जिले में एमएसपी पर सरसों की खरीदारी का कोई इंतजाम अभी तक नहीं किया गया है, जिससे बाजार में मजबूरी से बेचना पड़ रहा है.

उन्होंने बताया कि पिछले साल की तुलना में खराब मौसम के कारण इस साल सरसों की पैदावार में गिरावट आई है. उन्होंने कहा कि पिछले साल प्रति एकड़ 10 क्विंटल पैदावार मिली थी, लेकिन इस बार 7 से 8 क्विंटल उत्पादन हुआ है. इससे सरसों के किसान को काफी नुकसान हो रहा है. उनका कहना है कि सरकार हर साल कहती है कि किसानों को तिलहन की खेती बढ़ानी चाहिए, लेकिन अगर किसानों को लाभ नहीं मिलेगा तो सरसों की खेती क्यों करेंगे.

सरसों किसानों में घोर निराशा

गांव कामत, जिला दतिया, मध्य प्रदेश के किसान शैलेंद्र सिंह दांगी हर साल पांच एकड़ में सरसों की फसल लगाते हैं. वे प्रगतिशील युवा किसान हैं. उन्होंने किसान तक को बताया कि इस साल सरसों की पैदावार 30 से 40 फीसदी तक गिरी है. उन्होंने कहा कि एक महीने ज्यादा ठंड और कोहरे के कारण सरसों की पैदावार गिरी. जहां पहले प्रति एकड़ 8 से 9 क्विंटल पैदावार मिलती थी, वहीं इस साल 5 से 6 क्विंटल प्रति एकड़ मिली है. इससे सरसों किसान काफी निराश हैं. उनका कहना है कि उनकी उपज एमएसपी से कम दाम पर बिक रही है. अगर हमें सरसों का मूल्य स्थिर रहेगा है, तब किसान सरसों की खेती पर ज्यादा जोर देगा.

किसान दांगी का कहना है कि सरकार केवल खेती का रकबा बढ़ाने और उत्पादन बढ़ाने पर जोर देती है, लेकिन किसानों को किसी भी फसल को बढ़ाना हो तो सरकार को उचित मूल्य पर खरीदारी करनी चाहिए. हर जिले में तेल के लिए सरसों की उपज की प्रोसेसिंग की व्यवस्था करनी चाहिए. उनका कहना है कि अगर सरसों की खेती से किसानों की आय में बढ़ोतरी होगी, तो किसान सरसों की खेती में और रुचि लेंगे. सरकार भी चाह रही है कि देश में तिलहन फसलों को खेती का रकबा बढ़े. पिछले साल खाद्य तेल की बढ़ती कीमतों के कारण सरसों की खेती का रकबा किसानों ने बढ़ाया है, लेकिन पैदावार कम मिलने और बेहतर दाम ना मिलने से किसान काफी निराश हैं. इसलिए जरूरी है कि सरकार किसानों के पक्ष को ध्यान में रखते हुए कुछ ठोस कदम उठाए, जिससे किसानों की तिलहन फसलों की खेती में रुचि कम ना हो.

इन कारणों से आई उपज में कमी

कृषि विज्ञान केंद्र दतिया के प्रमुख और सरसों फसल के विशेषज्ञ डॉ. आरकेएस तोमर ने किसान तक को बताया कि इस साल सितंबर और अक्टूबर में कम बारिश के कारण खेतों में नमी नहीं थी. इसके कारण किसानों ने सरसों की बुवाई को पलेवा दिया. इसके परिणामस्वरूप, सरसों की पैदावार कम हुई और जनवरी में कोहरे और पाला के कारण सरसों में रस्ट रोग लगा. इस साल सरसों की फसल की खेती के रकबे में काफी वृद्धि हुई है. सरकार भी तिलहन फसल की खेती को प्रोत्साहित कर रही है.

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डॉ तोमर ने कहा कि सरसों की प्रजातियों को जलवायु परिवर्तन के अनुसार विकसित किया जाना चाहिए, क्योंकि तापमान के उतार-चढ़ाव से सरसों की उपज प्रभावित होती है. उन्होंने यह भी कहा कि जमीन में सल्फर की कमी से भी सरसों की उपज प्रभावित होती है. किसानों को समय पर बुवाई के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए, क्योंकि देरी से बुवाई से उपज में कीट और रोगों का प्रकोप होता है. वहीं, डॉ तोमर ने कहा कि सरसों की देशी किस्मों को विकसित करना भी जरूरी है. उन्होंने कहा कि सरसों को सबसे लाभकारी मूल्य के साथ स्थिर रखना चाहिए, ताकि किसानों को लाभ मिले और उन्हें सरसों की खेती में रुचि बनी रहे.