खारे पानी में होने वाली भारतीय झींगा की विदेशों में खूब धूम है. चीन-अमेरिका समेत कई यूरोपिय देश भारत का झींगा बड़े ही चाव से खाते हैं. ये ही वजह हे कि बीते कुछ साल में झींगा ने देश के झींगा पालकों की किस्मत ही बदल दी. सैकड़ों ऐसे किसान हैं जो पुश्तैनी धान की खेती छोड़कर झींगा पालन करने लगे. खासतौर पर आंध्र प्रदेश के पूर्वी और पश्चिमी गोदावरी जिलों में तो घर-घर झींगा का उत्पादन होने लगा. भारत हर साल करीब 10 लाख टन झींगा उत्पादन करता है. इसमे सबसे बड़ी हिस्सेदारी आंध्र प्रदेश की है. पूर्वी और पश्चिमी गोदावरी में आप जहां भी निकल जाएंगे आपको दूर-दूर तक एरेटर लगे झींगा के तालाब ही दिखाई देंगे.
तालाब में आक्सीजन की मात्रा बनाए रखने के लिए एरेटर लगाए जाते हैं. एरेटर लगातार पानी में हलचल बनाए रखते हैं. लेकिन बीते तीन-चार साल से झींगा का बाजार बहुत खराब हो गया है. हालत ये है कि झींगा का उत्पादन करने वाले किसान तालाब बेचकर परिवार का पेट भर रहे हैं. झींगा एक्सपर्ट की मानें तो लागत बढ़ने से झींगा महंगा हो गया है, जबकि इंटरनेशनल मार्केट में भारत के मुकाबले इक्वाडोर से बहुत ही सस्ता झींगा आ रहा है.
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झींगा एक्सपर्ट और हैचरी एसोसिएशन के प्रेसिडेंट रवि कुमार येलांकी ने किसान तक को बताया कि साल 1990 के बाद से झींगा ने आंध्र प्रदेश के पूर्वी और पश्चिमी गोदावरी के कोस्टल एरिया कृष्णा और नेल्लोर के कुछ हिस्सों में स्थानीय अर्थव्यवस्था को एकदम से बदल दिया. अचानक से किसानों ने पारंपरिक धान और अन्य उत्पादों की खेती छोड़ जमीन को झींगा के बड़े-बड़े तालाबों में बदल दिया. आज खासतौर पर गोदावरी और कृष्णा जिले में जहां भी चले जाइए आपको सिर्फ झींगा के तालाब ही नजर आएंगे. लेकिन बीते तीन-चार साल से झींगा की बढ़ती लागत और इंटरनेशनल मार्केट में दूसरे देशों के साथ बढ़ते कंपटीशन ने तो किसानों की कमर ही तोड़ दी है.
सत्तीरबाबू ताड़ीकोना गांव के रहने वाले हैं. 20 साल से झींगा का उत्पाीदन कर रहे हैं. 20 एकड़ के तालाब में झींगा पालन होता था. काम बड़ा था तो भाई नागबाबू को भी साथ में ले लिया. लेकिन अब झींगा के बदलते हालात ने हिम्मत तोड़ दी है. सत्तीाबाबू का कहना है कि आंध्र प्रदेश की सरकार द्वारा तय झींगा की एमएसपी भी नहीं मिल पा रही है.
अब इस काम में हम इतना आगे बढ़ चुके हैं कि निकालना भी मुश्किंल दिखाई दे रहा है. सुब्रमण्यम वो किसान हैं जिन्होंने परिवार का पेट भरने के लिए झींगा के तालाबों को ही बेचना शुरू कर दिया. वो 20 एकड़ में झींगा की खेती करते हैं. लेकिन उसमे से तीन एकड़ का तालाब बेच चुके हैं. परिवार का पेट भरने और घाटे को पूरा करने के लिए उन्हेंर जमीन बेचने को मजबूर होना पड़ा.
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झींगा कारोबार से जुड़े जानकार बताते हैं कि 10 साल पहले झींगा का फीड बाजार में 800 रुपये का एक बैग आता था. लेकिन आज उसी बैग की कीमत 27 सौ से 28 सौ रुपये तक हो गई है. झींगा का बीज, दवाई, जमीन के पट्टे की लागत और कर्मचारियों का मेहनताना सब कुछ महंगा हो चुका है. यहां कि किी आंध्र प्रदेश में बिजली का रेट दूसरे राज्योंच के मुकाबले बहुत ज्याफदा है.
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