प्रोडक्शन के मामले में भारत का पोल्ट्री सेक्टर विश्व के कई बड़े देशों की पोल्ट्री को टक्कर देता है. आज देश के लिए ये गर्व की बात है कि भारत विश्व में अंडा उत्पादन में तीसरे और चिकन में आठवें नंबर पर है. इंटरनेशनल ऐग काउंसिल के प्रेसिडेंट और श्रीनिवास हैचरी ग्रुप के एमडी सुरेश आर चित्तूरी का कहना है कि इंडियन पोल्ट्री का इंफ्रास्ट्रक्चर इतना मजबूत है कि सरकार की मदद मिलते ही कुछ ही महीनों में पांच लाख अंडा एक्सपोर्ट को सीधे चार से पांच करोड़ के आंकड़े पर पहुंचाया जा सकता है. वहीं एक्सपर्ट का कहना है कि हर साल पोल्ट्री सेक्टर आठ से 10 फीसद की दर बढ़ रहा है. लेकिन बीते कुछ वक्त से 2.5 लाख करोड़ वाला पोल्ट्री सेक्टर फीड के बढ़ते दाम से जूझ रहा है. जिसकी सबसे बड़ी वजह है मक्का. कॉन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री (CII) भी इस मामले में चिंता जाहिर करते हुए केन्द्र सरकार से जीएम मक्का आयात करने की अनुमति देने की बात कही है.
साथ ही सोयाबीन का उत्पादन बढ़ाने के लिए उचित कदम उठाने की भी मांग की है. हाल ही में सीआईआई ने पोल्ट्री विजन-2047 रिपोर्ट जारी की है. ज्यादातर पोल्ट्री सेक्टर सरकार से जीएम मक्का आयात करने की अनुमति मांग रहे हैं. पोल्ट्री फीड में सबसे बड़े हिस्से के रूप में शामिल मक्का का देश में ये हाल है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से भी ऊंचे दाम पर बिक रही है. जिसके चलते पोल्ट्री सेक्टर परेशानी से जूझ रहा है. बेशक ये परेशानी अभी उतनी बड़ी नहीं है, लेकिन आने वाले वक्त में कारोबार करना मुश्किल हो जाएगा.
पोल्ट्री फेडरेशन ऑफ इंडिया के कोषाध्यक्ष रिकी थापर ने किसान तक को बताया कि इथेनॉल उत्पादन में मक्का की बढ़ती खपत पोल्ट्री सेक्टर में चिंता बढ़ा रही है. असल बात तो ये है कि भारत का 38 मिलियन टन (380 लाख मीट्रिक टन) सालाना मक्का उत्पादन पोल्ट्री सेक्टर के साथ-साथ देश में फूड से जुड़ी जरूरत को भी पूरा करने में नाकाम साबित हो रहा है. आज कुल मक्का उत्पादन का 60 से 65 फीसद हिस्सा पोल्ट्री फीड के रूप में होता है. बाकी बचे 40 फीसद हिस्से में फूड, कैटल फीड, स्टार्च इंडस्ट्री और इथेनॉल आते हैं. अब इनकी जरूरत को पूरा करने के लिए किसान उत्पादन बढ़ा सकता है. लेकिन ये भी रातों-रात मुमिकन नहीं है. हालांकि सरकार इस मामले में कोशिश कर रही है. लेकिन पोल्ट्री सेक्टर को तुरंत ही कच्चा माल चाहिए होता है. ऐसे में मौजूदा वक्त की जरूरत पूरी करने के लिए मक्का आयात एकमात्र रास्ता है. हालांकि अभी सरकार ने पांच लाख टन मक्का आयात करने की छूट दी है, लेकिन ये आंकड़ा पोल्ट्री के लिए बहुत कम है.
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बीते साल नवंबर में सीआईआई ने विजन-2047 जारी किया था. इस विजन में सीआईआई ने पोल्ट्री सेक्टर की जरूरत को देखते हुए केन्द्र सरकार से जीएम मक्का आयात करने की अनुमति देने की बात कही है. साथ ही सोयाबीन का उत्पादन बढ़ाने के लिए उचित कदम उठाने की भी मांग की है. सीआईआई का कहना है कि पोल्ट्री सेक्टर हर साल आठ से 10 फीसद की दर से बढ़ रहा है. अगर इसे सहयोग मिले तो ये और तेजी से बढ़ सकता है. गौरतलब रहे वित्तीय वर्ष 2022-23 में भारत ने 6.65 लाख मीट्रिक टन पोल्ट्री प्रोडक्ट का निर्यात किया गया था, जिसकी कुल कीमत 1081.62 करोड़ रुपये थी. ये एक्सपोर्ट कुल 64 देशों को किया गया था. हालांकि, विश्व के कुल पोल्ट्री बाजार में भारत की हिस्सेदारी अभी सिर्फ 1.2 फीसद है. पोल्ट्री में भारत सबसे ज्यादा अंडे और अंडे के पाउडर का निर्यात करता है, जबकि बहुत ही कम मात्रा में चिकन सिर्फ कुछ पड़ोसी देशों को निर्यात किया जाता है. लेकिन हमे इस वक्त पोल्ट्री सेक्टर में रेडी टू ईट और रेडी टू कुक पर ध्यान देना होगा. लेकिन इस सब के लिए बढ़ी हुई मात्रा के साथ पोल्ट्री फीड की जरूरत भी पड़ेगी.
पोल्ट्री फीड तैयार करने में मक्का का रोल बड़ा है. इसी को देखते हुए कंपाउंड लाइव स्टॉक फीड मैन्युफैक्चर्स एसोसिएशन (CLFMA) और पोल्ट्री फेडरेशन ऑफ इंडिया (PFI) ने केन्द्र सरकार से देश में जीएम मक्का की खेती करने की अनुमति मांगी है. वहीं वेट्स इन पोल्ट्री (वीआईवी) संस्था ने भी केन्द्रीय पशुपालन और डेयरी मंत्री को पत्र लिखकर मक्का आयात पर लगने वाली डयूटी खत्म करने या फिर कम करके 15 फीसद करने की मांग की है. इतना ही नहीं कॉन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री (सीआईआई) भी केन्द्र सरकार से जीएम मक्का आयात करने की अनुमति देने की बात कह चुकी है. ऑल इंडिया ब्रॉयलर ब्रीडर एसोसिएशन के चेयरमैन और आईबी ग्रुप के एमडी बहादुर अली भी इस मामले में पत्र लिख चुके हैं.
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पंजाब एग्रीकल्चार यूनिवर्सिटी (पीएयू), लुधियाना की मिलेट्स ब्रीडर साइंटिस्टस डॉ. रूचिका भारद्वाज ने किसान तक को बताया कि बाजरा और ज्वार को पोल्ट्री फीड में शामिल करने से कई परेशानियां दूर हो सकती हैं. पहली बात तो ये कि किसी एक फसल पर डिमांड का लोड नहीं बढ़ेगा. जैसे अभी मक्का पोल्ट्री-कैटल फीड में शामिल है, इथेनॉल बन रहा है, इंडस्ट्रियल सेक्टर में डिमांड होने के साथ ही फूड में भी डिमांड बढ़ती जा रही है. इसलिए जब डिमांड बढ़ेगी तो रेट तो बढ़ना लाजमी ही है. ऐसे में पोल्ट्री फार्मर के लिए बाजरा और ज्वार फायदे का सौदा हो सकती है. बेशक अभी इसका उतना उत्पादन नहीं है जितना मक्का का होता है, लेकिन जब किसानों के पास डिमांड आएगी और रेट सही हो जाएंगे तो उत्पादन तो बढ़ ही जाना है. आज बाजरा और ज्वार को एमएसपी भी उतनी नहीं मिल पाती है जितनी मक्का को मिल रही है.
डॉ. रूचिका का कहना है कि बाजरा और ज्वार किसी भी तरह मक्का से कम नहीं है. दोनों बराबर का पोषण है. जैसे मक्का में 9.2 ग्राम प्रोटीन होता है, तो बाजरा में 11.8 और ज्वार में 10.4 ग्राम है. इसी तरह मक्का में 26 एमजी कैल्शियम होता है, तो बाजरा में 42 और ज्वावर में 25 एमजी कैल्शियम होता है. अब अगर एनर्जी की बात करें तो मक्का में 358 केसीएएल, बाजरा में 363 और ज्वार में 329 केसीएएल होती है. फैट के मामले में मक्का 4.6 ग्राम, बाजरा 4.8 और ज्वार में 3.1 ग्राम होता है. फाइबर भी मक्का के मुकाबले बाजरा और ज्वार में ज्यादा है.
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