शिवलाल और उनके परिवार के सदस्य मोटरसाइकिल की मदद से अपनी सात एकड़ ज़मीन पर देसी उपकरण का इस्तेमाल कर रहे हैं. यह देखने में तो अद्भुत है ही, इसके कई फायदे भी हैं. शिवलाल और उनके परिवार के सदस्य लकड़ी से बने इस जुगाड़ को मोटरसाइकिल के पीछे अपने हाथों से चला रहे हैं और जिस मोटरसाइकिल पर यह देसी जुगाड़ बंधा है, उसे एक युवक चला रहा है. दरअसल, शिवलाल अपने खेत में शुरुआती दौर में बोई गई सोयाबीन की फसल के साथ उगे खरपतवार को साफ कर रहे हैं और इसके लिए वह इस देसी जुगाड़ का इस्तेमाल कर रहे हैं. शिवलाल का कहना है कि इस तरह वह न सिर्फ़ फसल के साथ उगे खरपतवार को हटाने में समय बचाते हैं, बल्कि मजदूरों द्वारा खरपतवार हटाने में होने वाले भारी-भरकम खर्च से भी बचते हैं.
एक बीघा ज़मीन से खरपतवार साफ करने के लिए बीस मजदूरों को लगाना पड़ता है जो एक दिन में एक बीघा ज़मीन का काम पूरा कर देते हैं और बदले में उन्हें दो सौ रुपये की दर से चार हज़ार रुपये देने पड़ते हैं, लेकिन इस देसी जुगाड़ से यह काम बेहद कम लागत में सिर्फ़ एक घंटे में हो जाता है. इस देसी जुगाड़ की सबसे खास बात यह है कि इससे फसलों के बीच उगने वाले खरपतवारों को मारने के लिए इस्तेमाल होने वाले कीटनाशक का इस्तेमाल पूरी तरह से बंद हो जाता है. अगर किसान इस तरीके से काम करे, तो उसे अपने खेतों में कीटनाशक का इस्तेमाल बिल्कुल नहीं करना पड़ेगा.
अगर आप आगर मालवा जिले के खेतों पर नज़र डालें, तो आपको ये जुगाड़ बहुतायत में मिल जाएगा. इसके इस्तेमाल से यहाँ के किसान न सिर्फ़ पैसे बचाते हैं, बल्कि अपनी फसलों को भी इन दवाइयों से दूर रखते हैं जो सेहत और इंसानों को नुकसान पहुँचाती हैं. गोपाल बताते हैं कि ये जुगाड़ कैसे बनता है. मोटरसाइकिल के पिछले पहिये में एक बड़ा पहिया लगा होता है जो मोटरसाइकिल की गति को नियंत्रित करने के साथ-साथ गाड़ी की क्लच प्लेट को सुरक्षा भी प्रदान करता है. उस बड़े पहिये की वजह से गाड़ी खेतों में मिट्टी का भार आसानी से उठा सकती है. मोटरसाइकिल के पीछे लकड़ी का इस्तेमाल करके एक लंबा जाल बनाया जाता है, जिसमें लोहे के दांतों वाला एक औज़ार लगा होता है जो खरपतवार उखाड़ने का काम करता है.
पश्चिमी मध्य प्रदेश में अधिकतर किसान अपने खेतों में सोयाबीन और गेहूं उगाते हैं. लाखों किसान ऐसे हैं जो इन फसलों पर निर्भर हैं और ये दोनों फसलें मुख्य रूप से लाखों एकड़ भूमि पर उगाई जाती हैं. तीन एकड़ भूमि में खरपतवार नष्ट करने के लिए लगभग एक लीटर कीटनाशक का छिड़काव किया जाता है. एक लीटर कीटनाशक आमतौर पर बाजार में एक हजार से 1700 रुपये प्रति लीटर की दर से उपलब्ध होता है. किसान ट्रैक्टरों पर लगी मशीनों और छोटे पंपों की मदद से खेतों में इसका छिड़काव करते हैं. कीटनाशकों के कारण कभी-कभी काम करने वाला किसान बीमार भी हो जाता है. इसके अलावा फसलों पर छिड़की गई दवा के कारण कीटनाशक का जहर फसलों के फलों में भी मौजूद हो जाता है, जो धीरे-धीरे मनुष्यों को गंभीर बीमारियों की ओर ले जाता है. एक और बड़ी बात यह है कि इन कीटनाशकों के कारण यह फसल तो जहरीली होती ही है, रासायनिक मिट्टी के कारण अगली फसल भी प्रभावित होती है.
खरपतवारनाशकों का इस्तेमाल मुख्यतः खरपतवारों को खत्म करने के लिए किया जाता है, जिन्हें आमतौर पर साग नाशी कहा जाता है. इन खरपतवारनाशकों में पैराकोड, डाइकोड और ब्रोमोज़ाइलीन जैसे खतरनाक रसायनों का इस्तेमाल होता है, जो मानव शरीर में कैंसर जैसी बीमारियों का कारण बनते हैं. दरअसल, जब इन रसायनों का इस्तेमाल कीटों को खत्म करने के लिए किया जाता है, तो फसलों में सूक्ष्म उत्परिवर्तनीय परिवर्तन होते हैं और ये फसलें स्थायी रूप से कैंसरकारी कैंसर कोशिकाओं में बदल जाती हैं, जिसका मानव जीवन पर बुरा असर पड़ता है.
आगर मालवा और आसपास के मालवा क्षेत्र के किसानों द्वारा दवाइयों की बजाय इस देसी जुगाड़ से अपने खेतों में उग रहे खरपतवारों को खत्म करने की इस पहल की खूब सराहना हो रही है. इस तरह न सिर्फ़ फसलें मानव जीवन के लिए ख़तरा बनने से बच रही हैं, बल्कि भारी-भरकम खर्च भी कम हो रहा है. समय की बचत भी किसी बोनस से कम नहीं है. (प्रमोद कारपेंटर का इनपुट)
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