काजू के निर्यात में इस बार काफी गिरवाट दर्ज की गई है. वही गिरते निर्यात और वैश्विक मंदी की वजह से काजू उद्योग को साल 2023 चुनौतीपूर्ण साल के रूप में तब्दील होने का डर सता रहा है. इसके अलावा काजू उद्योग, कच्चे काजू की ज्यादा कीमतों, बढ़ती प्रोसेसिंग लागत का भी सामना कर रहा है. वही क्लाइमेंट चेंज के कारण इस बार भारत में उपज प्राप्त होने में देरी हुई है. उपज देरी में होने की वजह से उत्पादन और एक्सपोर्ट में भी गिरावट आने की संभावना है. साथ ही काजू उद्योग से जुड़े व्यापारियों का कहना है कि उत्पादन और सप्लाई चैन में रुकावट अभी भी जारी है जिसका मुख्य कारण रूस-यूक्रेन युद्ध, मुद्रास्फीति और मंदी (inflation and recession) का प्रभाव है.
बिजनेसलाइन की रिपोर्ट के अनुसार, बीटा ग्रुप के चेयरमैन और नटकिंग ब्रांड के मालिक जे राजमोहन पिल्लई ने बताया कि काजू उद्योग बुरी तरह प्रभावित हुआ है. चीन काजू के लिए एक प्रमुख बाजार है. हालांकि, पिछले साल अपनाई गई जीरो कोविड पॉलिसी ने वहां शिपमेंट को बाधित (disrupted) कर दिया था. पिछला साल चुनौतीपूर्ण रहा था और इस साल स्थिति जारी रहने की संभावना है.
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पिल्लई के अनुसार, मौजूदा वक्त में काजू उद्योग कच्चे काजू की ज्यादा कीमतों, बढ़ती प्रोसेसिंग लागत और गिरते निर्यात का सामना कर रहा है. W320 ग्रेड काजू की कीमत पिछले साल 2.95 से 3.1 डॉलर थी, जोकि अब 2.5 से 2.6 डॉलर है. वहीं, कच्चे अखरोट की कीमत पिछले साल 1,200 डॉलर प्रति टन थी, जोकि अब 1,240 डॉलर प्रति टन है.
विजयलक्ष्मी काजू कंपनी के प्रबंध निदेशक प्रताप नायर के अनुसार, देश में काजू की खपत अभी उत्साहजनक है, जबकि यूक्रेन और रूस युद्ध के कारण अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य (scenario) विशेष रूप से यूरोप में इतना अच्छा नहीं है. उभरती हुई परिस्थिति की वजह से उपभोक्ताओं के द्वारा काजू की प्राथमिकता कम होने के कारण डिस्पोजेबल इनकम में कमी आई है.
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वहीं क्लाइमेट चेंज के कारण अफ्रीका और भारत में फसल उपज प्राप्त होने में देरी हुई है. उपज देरी से प्राप्त होने की वजह से उत्पादन में गिरावट दर्ज की जा सकती है. इसके अलावा यह देखना होगा कि इस साल कीमतें स्थिर रहेंगी या नहीं.
नायर ने कहा कि काजू की कीमतें अपने निचले स्तर पर पहुंच गई हैं और आगे और नीचे जाने की कोई संभावना नहीं है, क्योंकि जिन वजहों से कीमत में गिरावट आने की संभावना थी, वो पहले ही इसमें शामिल हो चुके हैं.
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