कुछ एनजीओ समय-समय पर आवाज उठाती रहती हैं कि केज फ्री अंडे का प्रोडक्शन किया जाए. अंडा देने वाली मुर्गियों को केज में न रखा जाए. एनजीओ का मानना है कि केज में रखना मुर्गियों का उत्पीड़न भी है. इसके लिए वो विदेशों में हो रहे मुर्गी पालन का उदाहरण भी देती हैं. लेकिन क्या भारत में केज फ्री मुर्गी पालन संभव है. क्या क्रेज फ्री मुर्गी पालन का असर पोल्ट्री प्रोडक्ट के रेट पर भी पड़ेगा. क्या केज फ्री होने से प्रोडक्शन भी कम हो जाएगा. क्यों भारत में अंडे का केज फ्री प्रोडक्शन संभव नहीं है, इस बारे में किसान तक ने जानी पोल्ट्री एक्सपर्ट की राय.
गौरतलब रहे भारत में हर साल करीब 129 बिलियन अंडे का प्रोडक्शन होता है. हर एक भारतीय की थाली में सालाना 90 अंडे आते हैं. हर साल थाली में एक अंडे की बढ़ोतरी हो रही है. इसमे बैकयार्ड पोल्ट्री से मिलने वाले अंडों की संख्या शामिल नहीं है.
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पोल्ट्री फेडरेशन ऑफ इंडिया (पीएफआई) के कोषाध्यक्ष और पोल्ट्री एक्सपर्ट रिकी थापर ने किसान तक को बताया कि भारत में जगह की कमी और महंगे रेट को देखते हुए केज फ्री अंडा प्रोडक्शन की बात करना बेमानी है. अगर केज फ्री अंडा प्रोडक्शन शुरू करते हैं तो आज जितनी जगह में मुर्गी पालन हो रहा है उसकी तीन गुना जगह की जरूरत होगी. जैसे आज अगर किसी पोल्ट्री फार्म में अंडा देने वालीं 50 हजार मुर्गियां पाली जा रही हैं तो केज फ्री होने पर उतनी ही जगह में सिर्फ 17 हजार मुर्गियां ही पाली जा सकेंगी. गांव हो या शहर हर जगह जमीन की कीमतों से सभी वाकिफ हैं. एक आम पोल्ट्री फार्मर के लिए ज्यादा और महंगी जमीन पर मुर्गी पालना संभव नहीं है.
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दूसरा ये कि केज फ्री होने से प्रोडक्शन पर बड़ा असर पड़ेगा. आज हाईटेक पोल्ट्री केज आ रहे हैं. जिसके चलते अंडा आटोमेटिक तरीके से एक जगह जमा होने लगता है. मुर्गियों की बीट भी एक बटन ऑन करते ही ट्रॉली में गिरना शुरू हो जाती है. जिसके चलते दोनों ही काम के लिए बहुत ज्यादा कर्मचारियों की जरूरत नहीं पड़ती है. कम समय में ज्यादा काम हो जाता है. जबकि केज फ्री होने पर अंडा एक-एक करके हाथ से जमा करना होगा. वहीं बीट भी कर्मचारी हाथ से उठाएंगे.
और तीसरी अहम परेशानी ऐसी है जिसका सीधा असर अंडा खाने वालों पर भी पड़ेगा. आज जिस अंडे की लागत मान लो पांच रुपये आ रही है तो केज फ्री होते ही उसकी लागत 15 रुपये तक हो जाएगी. जबकि रिटेल बाजार में छह से सात में ज्यादा प्रोटीन देने वाला एक मात्र अंडा ऐसा है जिसे गरीब इंसान भी आसानी से खरीदकर खा लेता है. अगर ये भी महंगा हो गया तो फिर गरीब के लिए न्यूट्रीशन का सोर्स क्या बचेगा.
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